राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने सोमवार (जनवरी 25, 2021) को महाराष्ट्र सरकार से कहा कि वह बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ तत्काल अपील दायर करे, जिसमें कहा गया कि बिना ‘शरीर से शरीर के स्पर्श’ (स्किन टू स्किन) को यौन शोषण नहीं माना जा सकता है।
महाराष्ट्र के मुख्य सचिव को लिखे पत्र में, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के चेयरपर्सन प्रियांक कानूनगो ने कहा कि फैसले में ‘यौन इरादे से बिना किसी पेनेट्रेशन के स्किन टू स्किन’ की भी समीक्षा किए जाने की जरूरत है और राज्य को भी इस पर संज्ञान लेना चाहिए। यह फैसला इस मामले में नाबालिग पीड़िता के लिए अपमानजनक प्रतीत हो रहा है।
एनसीपीसीआर प्रमुख ने कहा कि ऐसा लगता है कि पीड़ित की पहचान का खुलासा कर दिया गया है और आयोग का विचार है कि राज्य को इस पर ध्यान देना चाहिए और आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
आयोग ने कहा, “उपरोक्त समस्या को देखते हुए और इस मुद्दे की गंभीरता को समझते हुए आयोग POCSO अधिनियम, 2012 की धारा 44 के तहत निगरानी निकाय होने के नाते आपसे अनुरोध करता है कि आप इस मामले में आवश्यक कदम उठाएँ और माननीय न्यायालय द्वारा पूर्व में लिए गए फैसले के खिलाफ तत्काल अपील दायर करें।”
कानूनगो ने कहा, “आपसे अनुरोध है कि नाबालिग पीड़िता (सख्त गोपनीयता बनाए रखने) का विवरण प्रदान करें, ताकि आयोग बच्चे के सर्वोत्तम हित में कानूनी सहयोग आदि जैसी सहायता प्रदान कर सके।”
गौरतलब है कि हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने एक फैसला सुनाया है, जिसके मुताबिक़ सिर्फ ग्रोपिंग (groping, किसी की इच्छा के विरुद्ध कामुकता से स्पर्श करना) को यौन शोषण नहीं माना जा सकता है। कोर्ट के मुताबिक इसके लिए शारीरिक संपर्क या ‘यौन शोषण के इरादे से किया गया शरीर से शरीर का स्पर्श’ (स्किन टू स्किन) होना चाहिए।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह फैसला उस आरोपित की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया, जिसे एक नाबालिग लड़की के साथ यौन शोषण करने लिए जेल की सज़ा सुनाई गई थी। हाईकोर्ट के मुताबिक सिर्फ नाबालिग लड़की की छाती को छूना यौन शोषण की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है।