भाजपा शासित कर्नाटक में मदरसों की शिक्षा को आधुनिक बनाने के प्रस्ताव पर बहस छिड़ी गई है। इस संबंध में राज्य के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री श्रीमंत पाटिल की एक टिप्पणी से विवाद खड़ा हो गया है। उन्होंने कहा कि मजहबी शिक्षा से बच्चों की जिंदगी नहीं चल सकती इसलिए सरकार मदरसों में शिक्षा को रेगुलराइज करने पर विचार कर रही है।
मुस्लिम समुदाय के कुछ नेताओं ने इसका स्वागत किया है, वहीं कई ने इस पर चिंता जताई है। ऐसे लोगों का आरोप है कि मदरसों पर प्रदेश सरकार नियंत्रण करना चाहती है।
टाइम्स नाउ की रिपोर्ट के मुताबिक़ मंगलुरु में बोलते हुए श्रीमंत पाटिल ने कहा कि कर्नाटक में हज़ारों मदरसे हैं। मदरसों में आने वाले बच्चों को सिर्फ मज़हबी तालीम दी जाती है। इसका उनके भविष्य में कोई उपयोग नहीं है। ऐसी शिक्षा से न तो उनके कौशल का विकास होता है और न ही वह रोज़गार के लायक बनते हैं।
कर्नाटक के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री ने कहा, “हमारी योजना के तहत एक मानक पाठ्यक्रम (standard syllabus) तैयार किया जाएगा। इसके अंतर्गत बच्चों को SSLC (सेकेंड्री स्कूल लीविंग) की बराबरी का सर्टिफ़िकेट दिया जाएगा। इसकी मदद से छात्रों को कॉलेज में दाख़िला लेने में या पेशेवर पाठ्क्रमों का चुनाव करने में आसानी होगी। मज़हबी शिक्षा से उनकी ज़िंदगी नहीं चल सकती है। इसलिए यह कदम बेहद ज़रूरी है और इसके लिए हमने अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों से बातचीत भी शुरू कर दी है। हमें इस मुद्दे पर काफी सकारात्मक प्रतिक्रियाएँ हासिल हुई हैं।”
कर्नाटक सरकार के इस कदम पर जनता दल (सेक्यूलर) के अल्पसंख्यक नेता ने कहा, “अल्पसंख्यक समुदाय के सिर्फ 50 फ़ीसदी बच्चे स्कूल जाते हैं। उनमें से भी मदरसा जाने वालों की संख्या सिर्फ 4 फ़ीसदी है। सरकार को मदरसे में मज़हबी तालीम हासिल करने वालों की चिंता करने की जगह उन मुस्लिम बच्चों की चिंता करनी चाहिए जो स्कूल नहीं जाते हैं, या जिनकी पढ़ाई पूरी नहीं हो पाती है।”
इससे पहले बीजेपी शासित असम में सरकार ने राज्य मदरसा बोर्ड को भंग कर उसकी सभी शैक्षणिक गतिविधियों को माध्यमिक शिक्षा निदेशालय को हस्तांतरित करने का फैसला किया था।