केरल साहित्य अकादमी ने वर्ष 2019 के लिए पुरस्कारों की घोषणा की। एस हरीश के ‘मीशा’ को सर्वश्रेष्ठ उपन्यास चुना गया। यह उपन्यास मंदिर जाने वाली हिंदू महिलाओं और पुजारियों के किरदार को गलत तरीके से दर्शाने के लिए विवादों में रहा।
@thegeminian_ नाम के एक ट्विटर यूजर ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे उपन्यास ने मंदिर जाने वाली महिलाओं को सेक्स की चाहत रखने वालों के रूप में चित्रित किया।
“No. Just think, why do women dress up so beautifully and wear their best clothes to pray? They go to temples to let men know that they’re available to have sex. This is also why they don’t go to temples for a few days in a month. Especially to let the priests know.”
— N (@thegeminian_) February 15, 2021
इसमें वह दो दोस्तों के बीच की बातचीत का वर्णन करती है। इसमें एक दोस्त दूसरे से कहता है कि महिलाएँ अच्छे से सज-धज कर मंदिर इसलिए जाती है कि वो लोगों को, खासकर पुजारियों को यह बता सके कि वह सेक्स के लिए तैयार है।
सुप्रीम कोर्ट में उपन्यास को चुनौती
2018 में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उपन्यास को चुनौती दी गई थी। उपन्यास में मंदिर जाने वाली महिलाओं के चरित्र को लेकर गंदी टिप्पणी की गई थी। कोर्ट में दलील दी गई थी कि उपन्यास ‘मीशा’ के कुछ पैराग्राफ आपत्तिजनक हैं, क्योंकि उसमें हिंदू धर्म और हिंदू पुजारी का अपमान किया गया है।
मंदिर में हिंदू महिलाओं के जाने के संबंध में उपन्यास के आपत्तिजनक अंश को उजागर करने के लिए उपन्यास में दो पात्रों के बीच बातचीत का अनुवाद प्रस्तुत किया गया था। बातचीत में मंदिर में जाने वाली महिलाओं को सेक्स ऑब्जेक्ट के रूप में दिखाया गया है, जो मंदिर इसलिए जाती हैं, ताकि यह पता चल सके कि वे सेक्स के लिए तैयार हैं। किताब के अंश इस तरह हैं-
6 महीने पहले मॉर्निंग वॉक पर जाने के दौरान एक मित्र ने पूछा, “मंदिर जाने के लिए ये लड़कियाँ नहाती क्यों हैं और अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन क्यों करती हैं?”
मैंने कहा, “प्रार्थना करने के लिए।”
उसने कहा, “नहीं।”
उसने कहा, “ध्यान से देखो, उन्हें प्रार्थना करने के लिए सबसे अच्छे कपड़े पहनने की क्या ज़रूरत है? वो अनजाने में घोषणा करती हैं कि वो सेक्स करने के लिए तैयार हैं।” मैं हँसा।
उसने आगे कहा, “नहीं तो वे महीने में चार या पाँच दिन मंदिर क्यों नहीं आते? वे लोगों को यह बताती हैं कि वे इसके लिए तैयार नहीं हैं। विशेष रूप से, मंदिर के उन ब्राह्मण पुजारियों को सूचित करती हैं। क्या वे अतीत में इन मामलों में मास्टर नहीं थे?”
हालाँकि, भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीश पीठ ने उपन्यास पर प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया था। उन्होंने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता करार दिया था। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की थी, “आप इस तरह की चीजों को अनुचित महत्व दे रहे हैं। इंटरनेट के युग में, आप इसे एक मुद्दा बना रहे हैं।”
उपन्यास को बैन करने के लिए उठी थी काफी माँग
उपन्यास को पहली बार मलयालम साप्ताहिक मातृभूमि में प्रकाशित किया गया था। साप्ताहिक में तीन अध्याय प्रकाशित करने के बाद इसे बंद कर दिया गया था। इसे बाद में डीसी बुक्स द्वारा एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। इस उपन्यास को मंदिरों में जाने वाली महिलाओं के चित्रण के लिए भारी विरोध का सामना करना पड़ा था।
केरल के भाजपा प्रमुख के सुरेंद्रन ने उपन्यास को केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार दिए जाने की निंदा करते हुए कहा कि इसे हिंदू समुदाय के खिलाफ कार्रवाई के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “केरल ने ऐसा अपमानजनक उपन्यास नहीं देखा है। मीशा को पुरस्कार देने के फैसले को हिंदू समुदाय के खिलाफ एक कृत्य के रूप में देखा जाना चाहिए। यह सबरीमाला मुद्दे के बाद हिंदुओं का अपमान करने का सिलसिला है।”