मध्य प्रदेश के आगर-मालवा जिले में नलखेड़ा तहसील में स्थित है माता बगलामुखी का मंदिर। यह शैव और शाक्त संप्रदाय के साधुओं और तांत्रिकों के लिए सिद्ध स्थान है। मंदिर की प्रसिद्धि कुछ ऐसी है कि देश के कई बड़े नेता चुनाव जीतने के लिए यहाँ यज्ञ-अनुष्ठान कराते हैं।
लखुंदर (पुराना नाम लक्ष्मणा) नदी के किनारे स्थित इस देवी मंदिर में त्रिशक्ति माता विराजित हैं जो स्वयंभू अर्थात स्वयं प्रकट मानी जाती हैं। माता बगलामुखी की मूर्ति पूरे विश्व में मात्र तीन स्थानों में विराजित है, जो हैं नेपाल, मध्य प्रदेश का दतिया और मध्य प्रदेश का ही नलखेड़ा। इनमें से नलखेड़ा ही प्रमुख और सिद्ध बगलामुखी माता का मंदिर माना जाता है।
मंदिर का इतिहास
प्राण तोषिणी, तंत्र विद्या पर आधारित एक पुस्तक है जिसमें माता बगलामुखी की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है। कहा जाता है कि सतयुग में एक ऐसा विनाशकारी तूफान आया जिसमें सम्पूर्ण विश्व का नाश करने की क्षमता थी। इस तूफान को रोकने के लिए भगवान विष्णु ने सौराष्ट्र क्षेत्र में हरिद्रा सरोवर के पास तपस्या की। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर चतुर्दशी तिथि को माता बगलामुखी प्रकट हुईं और उस विनाशकारी तूफान से विश्व की रक्षा की।
मंदिर में स्थापित माता बगलामुखी त्रिशक्ति माता कही जाती हैं क्योंकि संभवतः भारत में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहाँ माता की स्वयंभू मूर्ति में तीन देवियाँ समाहित हैं। मध्य में माता बगलामुखी, दाएँ भाग में माँ लक्ष्मी और बाएँ भाग में माँ सरस्वती विराजित हैं। माता बगलामुखी को महारुद्र (मृत्युंजय शिव) की मूल शक्ति के रूप में जाना जाता है।
माता बगलामुखी के वर्तमान मंदिर के इतिहास के बारे में मुख्य पुजारी कैलाश नारायण बताते हैं। उनके अनुसार इस सिद्ध मंदिर की स्थापना भगवान कृष्ण के कहने पर पांडवों ने की थी। ज्येष्ठ पांडव महाराज युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए इस मंदिर में माता बगलामुखी की आराधना की। मंदिर में माता बगलामुखी के अलावा दक्षिणमुखी हनुमान जी, भगवान कृष्ण और काल भैरव का मंदिर है। मंदिर के सामने ही एक दिव्य दीपमालिका है जिसकी स्थापना महाराज विक्रमादित्य ने करवाई थी। इसके अलावा मंदिर का सिंह द्वार भी अपने आप में अद्वितीय है।
तंत्र साधना का महान स्थल
नलखेड़ा स्थित माता बगलामुखी मंदिर सामान्य श्रद्धालुओं के अलावा सिद्ध साधु-संतों और तांत्रिकों के लिए साधन का सर्वश्रेष्ठ स्थान माना जाता है। चारों ओर से श्मशान से घिरा होने और नदी के किनारे बसा होने के कारण यह स्थान तांत्रिक विद्या साधना के लिए उपयुक्त माना जाता है। नवरात्रि में इस मंदिर का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।
मंदिर के आसपास और नदी के किनारे साधु-संतों की कई समाधियाँ हैं जो इस बात का प्रमाण है कि यहाँ साधु-संत अपने जीवन के अंतिम समय तक निवास करते रहे। मंदिर का मिर्ची हवन पूरे भारत में प्रसिद्ध है जो सभी प्रकार के कष्टों के निवारण और शत्रुओं के नाश के लिए किया जाता है। मंदिर के पीछे हवन स्थल है जहाँ एक साथ 25-30 हवन होते रहते हैं। इस हवन क्रिया को प्रत्यक्ष रूप से देखना अपने आप में एक दैवीय अनुभव है।
गुप्त अनुष्ठान के लिए आते हैं नेता
चुनावों में विजय प्राप्त करने और अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए देश के कोने-कोने से नेता इस मंदिर में गुप्त अनुष्ठान के लिए आते हैं। भारतीय राजनीति के कई बड़े नेता इस मंदिर में माता बगलामुखी का आशीर्वाद प्राप्त करके चुनावों में विजय प्राप्त कर चुके हैं। जब भी देश में लोकसभा चुनाव और विभिन्न राज्यों में विधानसभा चुनावों का दौर शुरू होता है, माता बगलामुखी के मंदिर में बड़े-बड़े नेताओं का आना-जाना शुरू हो जाता है।
कैसे पहुँचे?
श्रद्धालु माता बगलामुखी के इस दिव्य मंदिर की यात्रा कभी भी कर सकते हैं। मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले इंदौर शहर से नलखेड़ा करीब 158 किमी दूर है। इंदौर सड़क मार्ग से नलखेड़ा से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा नलखेड़ा पहुँचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन उज्जैन का है जो मंदिर से लगभग 100 किमी की दूरी पर है। आगर-मालवा जिला इंदौर और उज्जैन के अलावा, भोपाल, कोटा और अन्य शहरों से भी सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है।