Sunday, December 22, 2024
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विराजमान भगवान विष्णु, प्रसिद्धि माता पार्वती और भगवान शिव को लेकर: त्रियुगीनारायण मंदिर की कहानी

मंदिर में एक हवन कुंड हैं जहाँ सदैव अग्नि प्रज्ज्वलित रहती है। मान्यता है कि इसी अग्नि के माता पार्वती और भगवान शिव ने फेरे लिए थे।

देवभूमि उत्तराखंड कई प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ स्थलों की भूमि है। यहाँ के गाँव, कस्बे, नदियाँ, पहाड़ और जंगल सभी सनातन धर्म की कई मान्यताओं और परंपराओं को अपने में समेटे हुए हैं। यह वही भूमि हैं जहाँ केदारनाथ और बद्रीनाथ जैसे दिव्य और आध्यात्मिक स्थान हैं। ऐसा ही एक मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। एक ऐसा अनूठा मंदिर जहाँ विराजमान हैं भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी के साथ लेकिन मंदिर जाना जाता है, भगवान शिव और माता पार्वती के कारण। ऐसा इसलिए क्योंकि यहाँ हुआ था भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह और दुल्हन के भाई बने थे, भगवान विष्णु। हम बात कर रहे हैं त्रियुगीनारायण मंदिर की जो अपने आप में एक दिव्य और अद्वितीय धर्म स्थान है।

त्रेतायुगीन है मंदिर

त्रिजुगीनरायण गाँव पौराणिक क्षेत्र हिमवत की राजधानी था। यहीं स्थित है त्रियुगीनारायण मंदिर जहाँ सतयुग में माता पार्वती का विवाह भगवान शिव के साथ हुआ था। इस दिव्य विवाह में समस्त ऋषि-मुनि और देवी देवताओं ने भाग लिया था। इस मंदिर में सम्पन्न हुए विवाह की पूरी जिम्मेदारी भगवान विष्णु ने स्वयं की थी और विवाह में माता पार्वती के भाई के रूप में सभी परंपराओं का निर्वहन भी भगवान विष्णु ने ही किया था। मंदिर की संरचना बिल्कुल केदारनाथ मंदिर के समान ही है। ऐसी मान्यता है कि यह मंदिर त्रेतायुगीन है।

त्रियुगीनारायण मंदिर, रुद्रप्रयाग (फोटो : अमर उजाला)

मंदिर में एक हवन कुंड हैं जहाँ सदैव अग्नि प्रज्ज्वलित रहती है। ऐसी मान्यता है कि यह अग्नि उसी विवाह समारोह की है और इसी अग्नि के चारों ओर माता पार्वती और भगवान शिव ने फेरे लिए थे। तब से ही यह निरंतर प्रज्ज्वलित है। तीन युगों से इस अग्नि का अस्तित्व है, संभवतः यही कारण है कि मंदिर त्रियुगीनारायण कहलाता है।

मंदिर में स्थित हवन कुंड

गाँव में मंदिर के आसपास तीन कुंड हैं, रुद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्म कुंड। ऐसा कहा जाता है कि ब्रह्म कुंड में ही स्नान करके ब्रह्मा जी ने माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह सम्पन्न कराया था। विष्णु कुंड में स्नान करने के बाद भगवान विष्णु ने माता पार्वती के भाई के नाते सभी परंपराओं का निर्वहन किया था और रुद्र कुंड में स्नान करके भगवान शिव विवाह में शामिल हुए। मंदिर में ही एक स्तम्भ भी है। इसके बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव को उपहार स्वरूप जो गाय मिली थी उसे इसी स्तम्भ में बाँधा गया था।

माना जाता है कि वर्तमान मंदिर की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। उन्होंने पूरे उत्तराखंड में कई मंदिरों की स्थापना की थी जिनमें केदारनाथ और बद्रीनाथ भी शामिल हैं। मंदिर में चाँदी की एक दो फुट की भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित है।

सुखी वैवाहिक जीवन की कामना

वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाने के लिए जोड़े दूर-दूर से यहाँ आते हैं। मान्यता है कि यहाँ विवाह करने वालों के दाम्पत्य जीवन को सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं। इतना ही नहीं मंदिर में सहस्त्राब्दियों से जल रही अग्नि की राख को भी लोग अपने घरों को लेकर जाते हैं और किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले उसी राख को भगवान का आशीर्वाद समझ कर ग्रहण करते हैं।

मंदिर में भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी के साथ विराजित हैं लेकिन यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती के लिए ही प्रसिद्ध है। देश के कोने-कोने से आने वाले शिव भक्तों और विष्णु भक्तों के लिए यह एक ऐसा स्थान है जहाँ दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

कैसे पहुँचे?

सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून में है। यह रुद्रप्रयाग से 159 किमी की दूरी पर है। रुद्रप्रयाग से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो लगभग 152 किमी की दूरी पर है। देहरादून और ऋषिकेश तक पहुँचने के बाद सड़क मार्ग से रुद्रप्रयाग पहुँचना आसान है, क्योंकि सड़क मार्ग से यात्रा करने के लिए कई बसें और टैक्सियाँ सरलता से उपलब्ध हो जाती हैं।

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ओम द्विवेदी
ओम द्विवेदी
Writer. Part time poet and photographer.

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