लेफ्ट लिबरली जुटे थे। हमेशा की तरह तर्क-वितर्क वगैरह से जगह सजी हुई थी। हर बार की तरह बातचीत से यह साबित हो गया कि ये डेमोक्रेसी शैम है। देश में किसी को बात करने की आज़ादी नहीं है। कार्टूनों को परेशान किया जा रहा है। पत्रकार दुखी हैं। सरकार के कहने पर फेसबुक सेक्युलर लोगों के पोस्ट उतरवा दे रहा है। सरकार के ही कहने पर ट्विटर कार्टूनिस्ट को नोटिस भेज दे रहा है। टूलकिट लीक हो जा रही हैं। किसान आंदोलन की जगह पर बलात्कार की खबरें भी लीक हो जा रही हैं। किसानों की जमीन चोरी कर ली जा रही हैं। भला हो दीदी का नहीं तो अभी तक देश हिंदू राष्ट्र बन जाता।
बातचीत आगे चली तो पता चला कि ये केवल मायूस ही नहीं हैं, बल्कि इनकी मायूसी बढ़ती जा रही है। हाल यह है कि बेचारे सुबह, दोपहर, शाम यही सोचते हुए आधे हुए जा रहे हैं कि या खुदा, शर्मिंदा होने का मौका क्यों नहीं मिल रहा? क्या हम इतने खराब हैं कि हमें शर्मिंदा होने का एक अवसर भी न मिले? कैसे बुरे दिन आ गए हैं कि प्लेकॉर्ड लेकर एक फोटो खिंचवाने का भी उपक्रम नहीं बन पा रहा। खुदा की ऐसी भी क्या लानत कि इंसान खाए, पिए, सोए, ट्वीट भी करे पर शर्मिंदा न हो सके? पूरे आठ महीने बीत गए बिना शर्मिंदा हुए। पिछली बार हाथरस में शर्मिंदा हुए थे।
या खुदा, एक मौका तो दे कि तेरे बंदे शर्मिंदा हो सकें। क्यों हमारा इतना कड़ा इम्तिहान ले रहा है? एक दिन के लिए ही सही, शर्मिंदा हो लेने दे। शर्मिंदा हुए बिना आठ-आठ महीने बिताना मरने के बराबर है। सत्यानाश हो इस चीन का … सॉरी, इस कोरोना का जो शर्मिंदा होने का मौका हाथ लगने नहीं दे रहा। ये न आता तो बाहर निकलते। बाहर निकलते तो उन मित्रों से मिलते जो जरूरत पड़ने पर शर्मिंदा होने का रास्ता निकाल लेते थे। ये सब आइडिये बिना मिले आते भी नहीं।
इस लाइफ में ऐसा समय आएगा, यह सपने में भी नहीं सोचा था। कितने प्यारे दिन थे जब हर दस-पंद्रह दिन में एक बार शर्मिंदा हो लेते थे। जब मन कहता था नारे लगा लेते थे। साथ-साथ डफली बजा लेते थे। मोदी का इस्तीफ़ा माँग लेते थे। भारत को धमकी दे लेते थे कि चाहे जो कर ले, तेरे टुकड़े होकर रहेंगे, इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह। मिलकर नेता प्रोड्यूस कर लेते थे। ब्रह्मीनिकल पैट्रिआर्की का प्लेकार्ड थमा कर जैक के साथ फोटो खिंचवा लेते थे और आज ऐसे बुरे दिन आ गए हैं कि शर्मिंदा भी नहीं हो पा रहे।
हमें याद है वह दिन जब नारा लगवा कर उमर खालिद को नेता बना दिए थे और आज हाल यह है कि महीनों से मार्च तक नसीब नहीं हुआ है। एक मौका न बन पाया कि खान मार्केट में मिलकर सौ मीटर का ही कोई मार्च कर लेते। ये लॉकडाउन न होता तो दिल्ली की ऑक्सीजन जो मोदी ने अपने कब्ज़े में कर ली है, उसी के खिलाफ एक मार्च कर लेते। यहाँ हाल यह है कि टुकड़े-टुकड़े वाले नारे तक नहीं लगा सकते। किसी के साथ सॉलिडेरिटी तक नहीं दिखा पा रहे। ऊपर से 370 से ये भी पता नहीं चल रहा कि कश्मीर में कौन सा इंटेलिजेंट स्टूडेंट गन एक्टिविस्ट बन गया। अभी लास्ट वीक तिहाड़ में किसी से जय श्रीराम बोलवाने की खबर आई थी तब लगा था कि बहुत दिन बाद शर्मिंदा हो लेंगे पर पता चला कि वो कोई ISIS वाला है। जानते ही हैं कि ऐसे लोगों के लिए शर्मिंदा होना आसान नहीं है।
प्रोपेगेंडा का बॉलीवुडिया टेम्पलेट पड़े-पड़े धूल खा रहा है। एक्ट्रेस बेचारी परेशान हैं। उन्हें भी शर्मिंदा हुए डेढ़ बरस हो गए हैं। पिछली बार कठुआ में शर्मिंदा हुई थी। व्यक्तिगत स्तर पर स्वरा हर दूसरे दिन शर्मिंदा हो लेती हैं पर सामूहिक शर्मिंदगी देखे बहुत समय बीत गया। फिल्मों के लगातार फ्लॉप होने से पब्लिक में शर्मिंदा हो सकती हैं, पर जो मज़ा एक्टिविज्म वाली शर्मिंदगी में है, वो मज़ा प्रोफेशन वाली शर्मिंदगी में कहाँ? अभी परसों की बात है, सोनम पूछ रही थी कि ऐसा भी क्या हो गया है कि शर्मिंदगी का एक मौका भी नहीं निकल रहा? क्या जवाब देते? चुप रह जाना पड़ा। कैसे कहते कि हम इतने निकम्मे हो गए हैं कि शर्मिंदा होने का माहौल भी नहीं बना पा रहे?
बातें हो रही थीं तभी किसी का फ़ोन बज़ा। उसने हेलो कहा और उधर से मिले सन्देश में बाद उछल पड़ा। किसी ने पूछा; क्या हुआ? उसने जवाब दिया; आखिर अल्लाह ने हमारी सुन ली। जलील का फोन था। किसी ने कहा; वो फैक्टचेकर? जवाब आया; अरे हाँ वही। बता रहा था कि शर्मिंदा होने का मौका आ गया है। सब अपने-अपने फोन पर ट्विटर खोल लो और ट्वीट करके शर्मिंदा हो लो।
किसी ने पूछा; अरे तो हुआ क्या है वो बताओ न? जवाब आया; अरे वह एक वीडियो भेज रहा है। हमारे एक बुजुर्ग चिचा को मार कर जय श्रीराम बुलवाया गया है। उसका वीडियो जलील के पास आ गया है।
निस्तेज भी वहीं थे। उन्होंने कहा; इस वीडियो का जलील ने फैक्ट चेक तो नहीं कर लिया है?
जवाब आया; हाँ, वो बता रहा था कि वीडियो का फैक्ट चेक उसने कर लिया है। बस वो ट्वीट करने ही वाला है। जैसे ही उसका ट्वीट आए वैसे ही दस मिनट के अंदर हम सब को शर्मिंदा हो लेना है।
निस्तेज सुन कर बोले; जलील ने फैक्ट चेक करके वीडियो को सही बताया है तो घटना हंड्रेड परसेंट फेक है लेकिन फिर भी चलो, शर्मिंदा हो लेते हैं। महीनों बाद मौका मिला है। पता नहीं अगला मौका कब मिले।
सुनते ही सबने अपना अपना फोन सँभाल लिया। अगले पॉंच मिनट में सब एक साथ शर्मिंदा हो रहे थे।