पाकिस्तान की इमरान खान सरकार को एफएटीएफ यानी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ओर से बड़ा झटका लगा है। मीडिया रिपार्ट्स के मुताबिक, आर्थिक संकट की मार झेल रहे पाकिस्तान की हालत भविष्य में और भी खराब हो सकती है। दरअसल, इस्लामाबाद स्थित स्वतंत्र थिंक-टैंक ‘तबादलाबी‘ द्वारा प्रकाशित एक रिसर्च पेपर में कहा गया है, ”एफएटीएफ द्वारा साल 2008 से देश को ग्रे लिस्ट में बनाए रखने के कारण पाकिस्तान को 38 अरब डॉलर का भारी नुकसान हुआ है।” यह रिसर्च पेपर नाफी सरदार ने लिखा है। इसका शीर्षक ‘पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर एफएटीएफ की ग्रे-लिस्टिंग का प्रभाव’ है।
शोध पत्र में आगे कहा गया है कि एफएटीएफ (FATF) की ग्रे-लिस्टिंग में पाकिस्तान को 2008 से रखा गया है। अनुमान है कि 2019 तक इससे लगभग 3,800 करोड़ डॉलर का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का नुकसान हुआ है। अनुमान के मुताबिक, सकल घरेलू उत्पाद में कुल 450 करोड़ डॉलर और 360 करोड़ डॉलर का नुकसान के लिए निर्यात और आवक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी आंशिक रूप से जिम्मेदार हैं। ये नुकसान एफएटीएफ ग्रे-लिस्टिंग के नकारात्मक परिणामों की ओर इशारा करते हैं।
रिपोर्ट में पाकिस्तान को भविष्य में होने वाले इस नुकसान से बचाने के लिए जल्द से जल्द FATF की सभी शर्तों को पूरा करने की अपील की गई है। पाकिस्तान ने अब तक FATF की 27 में से 26 मानकों को पूरा किया है। अब उसे मनी लॉन्ड्रिंग और टेटरिज्म की फिनांसिंग से संबंधित FATF की 7 नई शर्तों को पूरा करना है।
वहीं, एफएटीएफ ने पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा है। एफएटीएफ ने कहा, ”पाकिस्तान में रह रहे इन आतंकवादियों में जैश-ए-मोहम्मद का सरगना मसूद अजहर, लश्कर-ए-तैयबा का संस्थापक हाफिज सईद और उसका ऑपरेशनल कमांडर जकीउर रहमान लखवी शामिल हैं।” उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को रणनीतिक रूप से अपनी महत्वपूर्ण कमियों को दूर करने के लिए काम करना जारी रखना चाहिए।
बता दें कि एफएटीएफ मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद को वित्तीय सहायता देने वाले संगठनों पर नजर रखने वाली संस्था है। इसका गठन साल 1989 में किया गया था, जिसमें 37 देश और दो क्षेत्रीय संगठन शामिल हैं। एफएटीएफ द्वारा कुछ मानक बनाए गए हैं, जिससे अपराध और आतंकवाद को वित्तीय सहायता देने से रोका जाता है। एफएटीएफ के मानकों का पालन नहीं करने वाले देशों को अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व बैंक और यूरोपीय संघ से सहायता मिलने में मुश्किल होती है।