गुरुग्राम में सार्वजनिक स्थानों पर नमाज पढ़ने को लेकर उत्पन्न हुए विवाद के बीच कुछ मीडिया समूहों ने खबर दी कि अब सब कुछ सामान्य हो गया है। खबरों के मुताबिक, हिन्दू समूहों और मुस्लिम संगठनों में समझौता हो गया है। इस मामले में गुरुग्राम के प्रशासनिक अधिकारियों के बयानों का भी हवाला दिया गया। लेकिन, जब ऑपइंडिया ने इस पूरे घटनाक्रम की जमीनी पड़ताल की तब सच कुछ और ही निकल कर सामने आया।
NDTV ने गुरुग्राम DC के हवाले से कहा था कि अब गुरुग्राम में सार्वजनिक जगहों पर नमाज़ नहीं होगी। हिंदू और मुस्लिम संगठनों के साथ प्रशासन की बैठक के बाद यह तय हुआ है।
TV9 ने नमाज़ की 18 जगहों पर हिन्दू-मुस्लिम दोनों को राजी बताया था और सिर्फ 6 सार्वजनिक जगहों पर नमाज की इजाजत की बात कही थी।
न्यूज़ 18 ने इसे ‘अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा, बताते हुए इसके समापन की खबर दी थी। साथ ही इस पर सहमति बन जाने की बात कही थी।
इस मामले की जानकारी के लिए ऑपइंडिया ने सबसे पहले गुरुग्राम के DC के कार्यालय में सम्पर्क किया। DC गुरुग्राम के स्टाफ ने फोन उठाया और DC के व्यस्त होने की बात कही। कुछ समय बाद फोन एक अन्य अधिकारी को ट्रांसफर किया गया। उन्होंने बताया कि समझौते की कोई भी आधिकारिक प्रेसनोट या लिखित कॉपी DC ऑफिस से जारी नहीं की गई है।
इसके बाद ऑपइंडिया ने गुरुग्राम के पुलिस कमिश्नर कार्यालय में सम्पर्क किया। वहाँ भी फोन उठाने वाले अधिकारी/कर्मचारी ने बताया कि नमाज़ से संबंधित कोई भी फैसला उनके कार्यालय द्वारा नहीं हुआ है। इसी के साथ उन्होंने बताया कि इस मामले में गुरुग्राम पुलिस की तरफ से कोई आधिकारिक बयान भी जारी नहीं किया गया है।
इस फैसले में सबसे ज्यादा नाम गुरुग्राम इमाम संगठन का चर्चित हुआ था। उसके लेटरपैड पर बाकायदा उन स्थानों के नाम दिए गए थे, जहाँ वो नमाज़ के लिए जगह की तलाश कर रहे थे। जब इस संगठन के सदर (मुखिया) मौलाना शामून कासफ़ी को सम्पर्क किया गया तब उन्होंने व्यस्त होने की बात कही। इसी समूह के सचिव मौलाना अरशद मिफ्ताही से जब बात की गई तो उन्होंने बताया, “हमारे सदर (मुखिया) से हम नाराज हैं। मैंने गुरुग्राम इमाम संगठन को छोड़ दिया है। हम इस संगठन की किसी भी सहमति या समझौते से इत्तेफाक नहीं रखते। हम ही नहीं हमारे तमाम मुस्लिम भाई भी नाराज हैं। मैं अपनी कौम के साथ खड़ा हूँ और कौम का फैसला इस समझौते के खिलाफ है।”
मौलाना अरशद मिफ्ताही ने आगे बताया, “हम सिर्फ 5 जगहों पर ही नमाज़ पढ़ने में इत्तेफाक नहीं रखते। ऐसा फैसला करने वाले महज चंद लोग हैं। लेटर पर मेरे दस्तखत पहले जबरदस्ती करवाए गए। जब मैंने इनकार कर दिया, तब मेरे दस्तखत उन्होंने खुद इस्तेमाल किए। मेरे साथ गुरुग्राम इमाम एसोसिएशन के लोगों ने बड़ी बदतमीजी की है। इन्हें RSS ने हाईजैक कर लिया है। 3 भाई मिलकर ये इमाम एसोसिएशन चला रहे। ये संगठन मुस्लिमों की नुमाइंदगी नहीं करता, बल्कि ये उनके खुद के घर का संगठन है।”
नमाज़ प्रकरण में हिन्दू संगठनों द्वारा बार-बार विरोध में लिए जाने वाले नाम हाजी मोहम्मद शहज़ाद से ऑपइंडिया ने बात की। शहज़ाद ‘मुस्लिम एकता मंच’ नाम का संगठन चलाते हैं। उन्होंने बताया कि किसी भी सूरत में मुस्लिम गुरुग्राम इमाम एसोसिएशन और हिन्दू संगठनों द्वारा किए गए समझौते पर राजी नहीं हैं। गुरुग्राम इमाम एसोसिएशन को बाहरी लोगों का समूह बताते हुए शहज़ाद ने कहा, “ये संघ (RSS) के इशारे पर चलने वाले लोग हैं। वो तमाम लोग सिर्फ DC साहब को अपनी बात बताने गए थे। उन्होंने उनकी बात भर सुन ली थी। गुरुग्राम इमाम एसोसिएशन एक परिवार भर का समूह है। इन्होंने मुस्लिमों को ब्लैकमेल किया है।”
हाजी मोहम्मद शहज़ाद ने आगे बताया, “गुरुग्राम इमाम एसोसिएशन द्वारा लिए गए फैसले के खिलाफ हम कई मुस्लिम संगठनों ने फिर से DC ऑफिस जाकर अपनी आपत्ति और विरोध दर्ज करवाया है। इमाम संगठन द्वारा लिया गया फैसला हमारे लिए 6 दिसंबर के बाबरी गिराने जैसा ही काला दिन है। फैसला लेने वाले मुस्लिम संगठनों के साथ कोई भी स्थानीय नागरिक नहीं था। वो सब बाहरी लोग थे। इस संगठन ने बस अपनी राजनैतिक रोटी सेंकने का काम किया है। हमसे जुड़ा गुरुग्राम का कोई भी निवासी इस फैसले से सहमत नहीं है। फैसला लेने वाला खुर्शीद राज़ दूसरा वसीम रिज़वी बनने की फिराक में है। हम गुरुग्राम में कोई दूसरा वसीम रिज़वी नहीं बनने देंगे।”
इन बयानों को देखते हुए कहा जा सकता है कि कथित समझौता सिर्फ स्थाई नहीं है। इसमें प्रशासन की भी कोई भूमिका नहीं है और ना ही अधिकारियों की तरफ से इस पर कोई आधिकारिक बयान दिया गया है। गुरुग्राम इमाम एसोसिएशन द्वारा जारी पत्रों पर भी किसी सक्षम अधिकारी के हस्ताक्षर नहीं हैं।