मद्रास हाई कोर्ट ने यूट्यूबर मारिदास (Maridhas) के खिलाफ दर्ज एक और प्राथमिकी (FIR) रद्द कर दी है। अदालत ने कहा है कि किसी संगठन की आलोचना, मजहब की आलोचना करना जैसा नहीं है। साथ ही स्पष्ट किया है कि तबलीगी जमात की तुलना इस्लाम से नहीं की जा सकती है। मारिदास को पिछले दिनों इस मामले में गिरफ्तार किया गया था।
तमिलनाडु पुलिस ने इस मामले में चर्चित यूट्यूबर को तब गिरफ्तार किया था जब हाई कोर्ट ने उनके खिलाफ एक अन्य मामले में दर्ज प्राथमिकी रद्द की थी। हाई कोर्ट का ताजा फैसला 2020 के उस वीडियो से जुड़ा हुआ है जिसमें COVID-19 के तेजी से प्रसार में जमात और मुस्लिम समुदाय की भूमिका पर सवाल उठाया गया था। इस संबंध में दर्ज एफआईआर मद्रास उच्च न्यायालय (Madras high court) की मदुरै बेंच ने रद्द कर दी है।
मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने कहा कि यूट्यूबर ने कोरोना महामारी को लेकर जो वीडियो बनाया था उसमें उसने कहीं भी मुस्लिमों की आस्था पर सवाल नहीं उठाया है। अदालत ने कहा कि मारिदास ने वीडियो में तबलीगी जमात के गैर ‘जिम्मेदाराना व्यवहार’ को लेकर चिंताएँ जाहिर की थी। साथ ही लोगों से अस्पताल में टेस्टिंग करवाने की अपील की थी।
गौरतलब है कि तमिलनाडु पुलिस ने 17 दिसंबर को यूट्यूबर के खिलाफ आईपीसी की धारा 2 9 2(ए), 2 9 5 (ए) और 505 (ii) के तहत केस दर्ज किया था। खास बात यह है कि मारिदास को तबलीगी जमात की आलोचना के कारण तमिलनाडु सरकार ने तब गिरफ्तार किया, जब इस्लामी मुल्क सऊदी अरब में ने भी इस संगठन को प्रतिबंधित कर दिया है। सऊदी सरकार ने तबलीगी जमात को खतरनाक करार देते हुए उसे ‘आतंकवाद का द्वार’ बताया था।
इससे पहले 14 दिसंबर 2021 को यूट्यूबर मारिदास के खिलाफ तमिलनाडु सरकार द्वारा दर्ज एफआईआर को मद्रास हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था। यह एफआईआर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत का हेलिकॉप्टर क्रैश होने के बाद किया गया था। मारिदास ने ट्वीट में साजिश की आशंका जताते हुए अलगाववादी ताकतों को रोकने के लिए देश के लोगों से साथ आने की अपील की थी। उन्होंने एक अलग ट्वीट में लिखा था कि सीडीएस रावत की मौत का डीएमके और डीके समर्थकों ने मजाक उड़ाया था। इसके बाद पुलिस ने मारिदास पर आईपीसी की कई धाराओं के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया था।