महुआ मोइत्रा ने जो ‘बहुत ही क्रांतिकारी’ भाषण संसद के पटल पर दिया था, उस में कुछ लोगों को मार्टिन लॉन्गमैन के 2017 के उस लेख से समानता मिली, जो लॉन्गमैन ने ट्रम्प के अमेरिका का राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर लिखा था। ज़ाहिर तौर पर यह समानता वायरल हो गई, और महुआ मोइत्रा पर ‘plagiarism’ यानि ‘बौद्धिक चोरी’ के आरोप लगने लगे। और इन आरोपों के जवाब में पहले तो लेखक मार्टिन लॉन्गमैन ने कूदते हुए महुआ मोइत्रा को ‘क्लीन चिट’ दे दी कि नहीं, महुआ ने नहीं की मेरे लेख से चोरी! (उन्होंने उसी म्यूज़ियम में लगी एक तख्ती पर यह पढ़ा जहाँ से उठा कर मैंने अपना लेख बना दिया) साथ ही उन्होंने लगे हाथ हिंदुस्तान के ‘राइट विंग’ को केवल ‘राइट विंग’ होने के कारण अपशब्द भी बोल डाले। उन अपशब्दों का लब्बोलुआब यह था कि हर देश के दक्षिणपंथी ‘एक जैसे’ होते हैं।
I’m internet famous in India because a politician is being falsely accused of plagiarizing me. It’s kind of funny, but right-wing assholes seem to be similar in every country.
— Martin Longman (@BooMan23) July 2, 2019
उसके बाद महुआ मोइत्रा भी ‘तलवार लहराते’ मैदान में आ डटीं और सार्वजनिक जीवन की सारी सभ्यता, सभी शिष्टाचार भुला कर उनके अपशब्दों को ज्यों-का-त्यों दोहराना शुरू कर दिया।
#WATCH TMC MP Mahua Moitra responds to media on allegations that her maiden speech in Parliament was plagiarized, quotes American commentator Martin Longman’s tweet “right-wing a**holes seem to be similar in every country.” pic.twitter.com/dU8UDMBirP
— ANI (@ANI) July 3, 2019
अपशब्दों के अलावा उन्होंने लगभग वही सब बातें दोहराईं जिन्हें गला फाड़कर चिल्लाते-चिल्लाते राहुल गाँधी की आज ‘संन्यास’ की नौबत आ गई है, भाजपा ने तृणमूल के गढ़ में सेंध नहीं लगाई है, बल्कि दीवार लगभग ढाह दी है, और ममता बनर्जी ‘मोन्जोलिका’ की तरह श्री राम का उद्घोष सुनकर लोगों पर झपट रहीं हैं। नई बात केवल एक आरोप है, और वह यह कि हर देश के ‘राइट विंग’ वाले एक जैसे होते हैं। इससे हास्यास्पद क्या हो सकता है कि वामपंथी, जिन्होंने एक ही मार्क्सवादी फॉर्मूले से रूस, चीन, पूर्वी जर्मनी, कम्बोडिया, क्यूबा, वेनेज़ुएला और न जाने कितने और मुल्कों में कत्लेआम मचाया है, वह अपने विरोधियों पर ‘एक जैसा’ होने का आरोप लगाएँ।
हर देश में ‘बराबरी’ के नाम पर बराबर खून-खराबा, बर्बादी और भ्रष्टाचार
अपनी ‘बराबरी’ की विचारधारा, ‘सर्वहारा के हित में, बुर्जुआ के ख़िलाफ़’ के नारे और हिंसा, कब्जा और पुनर्वितरण की विचारधारा का पालन करते हुए वह वामपंथ है, जिसने ‘कम्युनिस्ट प्रोजेक्ट’ हर देश में चलाया। हिटलर, नाज़ीवाद, फासीवाद ने तो 1920 के दशक में शुरू होकर 1945 में दम तोड़ दिया, लेकिन पूरी 20वीं शताब्दी भर अपने विरोधियों को ‘एनेमी ऑफ़ द स्टेट एंड द पीपल’ (राज्य और लोगों के दुश्मन) बना कर ‘राज्य और क्रांति के नाम पर’ उनकी हत्या, उनका दमन, उन्हें मजदूरी के कैम्प में भेजने वाला वामपंथ रहा है। वह वामपंथ रहा है, जिसने रूस के रशियन ऑर्थोडॉक्स ईसाई और ईसा-पूर्व के इतिहास से लेकर कम्बोडिया के हिन्दू और बौद्ध व चीन के डाओ इतिहास पर रोडरोलर चलाया, ताकि लोगों को ‘तुम तो हमेशा से अमीरों द्वारा प्रताड़ित किया जा सके’ का प्रोपेगैंडा पढ़ा कर उनकी हिंसक ब्रेनवॉशिंग की जा सके।
हिंदुस्तान में तृणमूल, अमेरिका के डेमोक्रैट भी एक जैसे
अगर 20वीं सदी को एक ओर करके अभी के कालखंड में भी लौटें तो भी वह ‘राइट’ नहीं, ‘लेफ्ट’ है, जो ‘एक जैसा’ सुनाई पड़ता है। कुछ कथनों पर नज़र डालिए- “हमारे विरोधी फासीवादी हैं”, “मुस्लमान खतरे में हैं, और बचने के लिए हमें ही वोट दें”, “वो नफरत फैला रहे हैं, हम प्यार बाँट रहे हैं”, “वे प्रतिभाविहीन, अनपढ़ जाहिल लोग हैं”, “वो मज़हब के आधार पर आपको बाँटना चाहते हैं, और हम आपसे उम्मीद करते हैं कि आप उन्हें ही नहीं, मज़हब को भी नकार दें”, से लेकर “हम इसलिए हारे क्योंकि निर्वाचन प्रणाली में खोट था”, “हम इसलिए हारे क्योंकि लोगों ने उनके बहकावे में आना स्वीकार किया”, “ये हमारी नहीं, लोकतंत्र की हार है”, “(जीतने वाले को) हम राष्ट्राध्यक्ष नहीं मानते”। मार्टिन लॉन्गमैन और महुआ मोइत्रा संयुक्त बयान जारी कर बताएँ कि यह वैचारिक और कथनों की समानता हिंदुस्तान और अमेरिका के राइट विंग में है या लेफ्ट?
और महुआ यह कहकर बच नहीं सकतीं कि उनकी पार्टी वामपंथी नहीं, बल्कि वामपंथ से लड़ने वाली है। उनकी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो राज्य में एक ही साथ अराजकता (लेफ्ट का चरम) और फासीवाद (राइट का चरम) का राज्य स्थापित कर लिया है- दुनिया के इतिहास में मुझे नहीं लगता कि और किसी राज्य या देश तो दूर, किसी गाँव के सरपंच ने भी एनार्को-फासिस्ट (अराजकतावादी-फासीवादी) का दोहरा ख़िताब जीता होगा। उनका कैडर मूल तृणमूल से ज्यादा माकपा के गुंडों से बना है, माकपा की ही तरह मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करतीं हैं, उसी की तरह तस्लीमा नसरीन को कठमुल्लों के दबाव में कोलकाता से भगा देतीं हैं, राजनीतिक विरोधियों की हत्याएँ होतीं हैं। अंतर क्या है ममता बनर्जी और कम्युनिस्टों के शासन में?
दक्षिणपंथ परम्पराओं का रक्षक है- परम्पराएँ अलग हैं तो रक्षक एक कैसे होगा?
दक्षिण पंथ, या ‘राइट विंग’ किसी देश, समाज या समूह की परम्पराओं का समर्थक होता है, उनकी रक्षा, पालन और क्रमबद्ध-विकास (evolution) के लिए काम करता है। अब अगर भारत (महुआ मोइत्रा का देश) और अमेरिका (मार्टिन लॉन्गमैन का देश) की परम्पराएँ एक हों, तभी उनके ‘राइट विंग’ एक हो सकते हैं! तो क्या अमेरिका और भारत की परम्पराओं में इतनी समानता है?
अमेरिकी और हिंदुस्तानी राइट विंग में समान केवल एक चीज़ है- अपने-अपने देश में संस्कृति के संरक्षण, और इस्लामी आतंकवाद से लड़ने के प्रति प्रतिबद्धता। अंतर इतने ज़्यादा हैं कि एक-दो अनुच्छेद तो क्या, एक पूरा लेख भी कम पड़ जाएगा। अतः बेहतर होगा कि महुआ मोइत्रा या मार्टिन लॉन्गमैन पहले ट्रम्प और मोदी के आगे घुटने टेकते अपने-अपने देश के वामपंथ को सुधारने, खड़ा करने और अपने-अपने देश के लोगों से जोड़ने पर ध्यान दें। दुनिया के बाकी देशों के राइट विंग की चिंता छोड़ दें।