त्रिपुरा में अब सार्वजनिक जगहों पर पशु वध नहीं किया जा सकेगा। साथ ही हाई कोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों या सड़कों के किनारे माँस उत्पादों की बिक्री पर भी रोक लगा दी है। नए निर्देशों के अनुसार बूचड़खाने शुरू होने से पहले वैकल्पिक जगह उपलब्ध कराने के निर्देश भी राज्य सरकार को दिए गए है।
हाई कोर्ट ने पिछले सप्ताह ये निर्देश वकील अंकन तिलक पॉल की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए। याचिका में राजधानी अगरतला सहित पूरे राज्य में सार्वजनिक स्थलों पर माँस की बिक्री और पशु वध पर रोक लगाने की अपील की गई थी। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार चीफ जस्टिस इंद्रजीत महंती और जस्टिस एसजी चट्टोपाध्याय की खंडपीठ ने राज्य सरकार को इस बाबत एक दीर्घकालीन योजना तैयार करने के निर्देश दिए हैं। निर्देशों को लागू करने के लिए अगरतला नगर निगम और राज्य सरकार को छह महीने का समय दिया गया है। इसके तहत केवल बूचड़खाने ही स्थापित नहीं किए जाएँगे, बल्कि कचरे के वैज्ञानिक तरीके से निपटान की व्यवस्था भी करनी होगी।
इससे पहले नवंबर 2021 में दो अन्य याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए त्रिपुरा हाई कोर्ट ने अगरतला में चल रही अवैध दुकानों को बंद करने के निर्देश नगर निगम और पशुपालन विभाग को दिए थे। इनमें से एक याचिका में कहा गया था कि राजधानी की सड़कों और फुटपाथों पर कई जानवरों मछलियों को बिना लाइसेंस के मारकर बेचा जा रहा है।
जब बलि प्रथा बैन करने को दिए अजीब तर्क
त्रिपुरा हाईकोर्ट ने सितंबर 2019 में एक फैसला बलि प्रथा पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगाने को लेकर भी दिया था। इसके खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का फैसला किया था। हाई कोर्ट ने इस फैसले के पीछे अजीब तर्क दिए थे जिससे फैसला देने वालों की सोच में हिन्दू रीति-रिवाजों को न समझ पाने की असमर्थता साफ झलकती थी। पूर्वाग्रह से ग्रसित अपने इस जजमेंट में कोर्ट ने पूछा था- कौन सा धर्म या संप्रदाय जानवर पर बेवजह दर्द और पीड़ा डालने की बात करता है? किस धर्म में कहा गया है कि वध से पहले जानवर को मानसिक या शारीरिक कष्ट मुक्त नहीं करना चाहिए? कौन सा ऐसा धर्म है जो अपने अनुयायियों को जानवरों पर इंसानियत के नाते दया दृष्टि न रखने के लिए कहता होगा?