अक्सर हिन्दू धर्म को बदनाम करने की कोशिश में मीडिया और तथाकथित बुद्धिजीवियों का लिबरल गिरोह लगा रहता है। इसके तहत हिन्दुओं को आतंकी साबित करने की कोशिश की जाती है। हिन्दू शास्त्रों को विज्ञान विरोधी बताया जाता है। हिन्दू मंदिरों के खिलाफ अभियान चलाए जाते हैं। और अव्वल तो ये कि हिन्दू पर्व-त्योहारों को बदनाम किया जाता है। ऐसा ही एक प्रोपेगंडा चलाया गया था होली में सीमेन भरे बैलूनों को लेकर।
हम जिस प्रकरण की बात कर रहे हैं, वो मार्च 2018 का है। अर्थात, इस घटना को 5 साल हो गए। क्या आपने कभी भारत में वामपंथी गिरोह को क्रिसमस या ईद के खिलाफ अभियान चलाते देखा है? नहीं। लेकिन, महाशिवरात्रि पर दूध बचाने और होली पर पानी बचाने के अलावा दीवाली पर प्रदूषण फैलने की बात करते हुए पटाखे प्रतिबंधित करने जैसे फैसले होते हैं। ज्ञान बाँचा जाता है। ‘सीमेन भरे बैलून’ इसी कड़ी की ‘नेक्स्ट लेवल पेशकश’ थी।
‘जीसस एंड मेरी कॉलेज’ के शिक्षकों और छात्रों ने दिल्ली में पुलिस मुख्यालय के बाहर प्रदर्शन किया था और होली को ‘उपद्रवियों का त्योहार’ बताते हुए इस पर लगाम लगाने की माँग की थी। ये भारत में ही हो सकता है कि इसी धरती पर जिस धर्म को मानने वाले लोग बहुलता में रहते हैं, उनकी ही परंपराओं के खिलाफ बाहरी संप्रदायों के लोग आकर बैन लगाने की माँग करें। 2018 की होली के दौरान आरोप लगाया गया था कि महिलाओं पर ‘सीमेन भरे बैलून’ फेंके गए थे।
प्रोपेगंडा पत्रकार सागरिका घोष ने तब होली पर टिप्पणी करते हुए लिखा था, “ये काफी शर्मनाक और घृणास्पद है। क्या अब ‘सीमेन भरे बैलून’ भी होली के दौरान हिन्दू गर्व का हिस्सा हो गए हैं?” जब किसी ने उन्हें टोका और पूछा कि क्या अब सीमेन का भी रिलिजन होता है? इस पर उन्होंने ज़हर उगलते हुए लिखा था, “तो फिर सीमेन होली के टाइम पर क्यों फेंकते हैं सर? होली किस बड़े धर्म के अंतर्गत आता है? आपके क्या विचार हैं?”
सोचिए, इस तरह की घृणा कि किसी हिन्दू त्योहार के दौरान कोई घटना हो तो हिन्दू धर्म को ही जिम्मेदार ठहरा दो। बकरीद पर दुनिया भर में भले ही लाखों पशु कटते हों, लेकिन क्या इन लोगों ने कभी कहा कि पशु हत्या इस्लामी है? ये भी दें कि ‘सीमेन भरे बैलून’ वाली बात झूठ निकली थी। पहले आप ही अंदाज़ा लगाइए कि कौन से व्यक्ति के पास इतना सीमेन निकालने की क्षमता होगी कि एक पूरा का पूरा बैलून वो भर डाले?
It's the 5th anniversary of the famous Semen-filled-BalloonGate.🎈🎈 pic.twitter.com/rsHZqxnkEt
— Darshan Pathak (@darshanpathak) March 5, 2023
अब सच्ची बात जान लीजिए। ‘फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी’ ने जाँच के बाद पाया था कि कथित छात्रों ने जिस बैलून का सैंपल सौंपा था, उसमें सीमेन की कोई मात्रा मिली ही नहीं थी। फरवरी 2018 में LSR (लेडी श्रीराम) कॉलेज के होली कार्यक्रम के दौरान ही इसे फेंके जाने की घटना सामने आई थी। बैलून में सीमेन वाली बात साबित ही नहीं हो पाई। यानी, ये एक हौव्वा था। एक साजिश थी, हिन्दू त्योहार को बदनाम करने की।
इस घटना को आधार बना कर हिन्दू त्योहार के दौरान लोगों द्वारा महिलाओं की प्रताड़ना की बात कही गई थी। हालाँकि, सवाल ये उठा था कि किस व्यक्ति के पास क्षमता है इतना सीमेन बैलून में भर डालने की। हाँ, उपद्रव पर एक्शन लेना चाहिए, लेकिन जो हुआ ही नहीं उसे आधार बना कर बदनामी की साजिश रची गई। एक छात्र ने इंस्टाग्राम पर पोस्ट लिख कर भी ऐसा दावा किया था। ये भी सामने नहीं आया था कि बैलून फेंकने वाला लड़का था या लड़की।
उस समय लोगों ने वैज्ञानिक ढंग से भी इस घटना को झूठ साबित कर दिया था। होली बैलून का डायमीटर 40 से 100 mm तक हो सकता है। यानी, उसका वॉल्यूम 268 से 4188.8 ml हो सकता है। एक औसत व्यक्ति 2-5 ml सीमेन निकाल सकता है। यानी, इस तरह के बैलून को भरने के लिए 54 से लेकर 2095 लोगों की ज़रूरत होगी। यानी, सैकड़ों-हजारों लोगों का सामूहिक हस्तमैथुन? साफ़ है, हिन्दू धर्म को बदनाम करने के लिए ये सब किया गया था।