कर्नल (रिटायर्ड) हनी बक्शी ने ‘वाद’ नामक YouTube चैनल पर मणिपुर में जारी हिंसा को लेकर बातचीत की है। इस दौरान उन्होंने कहा कि नागा समुदाय भी ST में आते हैं, लेकिन उन्होंने हिंसा में हिस्सा नहीं लिया। उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज के बीच टकराव आज से नहीं है, बल्कि ये उस इलाके की सभ्यतागत लड़ाइयाँ हैं। नागा-कुकी की लड़ाइयाँ होती थीं। 90 के दशक में एक पूरा गाँव जला दिया गया था। नागा समाज के भीतर भी कई समुदाय आपस में लड़ते रहते हैं।
उन्होंने बताया कि जब तक भारतीय सेना उधर थी, ये लड़ाइयाँ नियंत्रण में रहीं। उन्होंने कहा कि मणिपुर का सभ्य समाज, जो लोग केंद्र के विरोध में बोलते थे और AFSPA हटाने के लिए दबाव बनाया गया – वो अब चुप हैं। उन्होंने समझाया कि इस कानून के तहत किसी को भी गोली मारने की इजाजत नहीं थी, कोई किसी को ऐसे ही गोली नहीं मार सकता। उन्होंने बताया कि एनकाउंटर्स के समय एक खास परिस्थिति में गोली चलाने की अनुमति है।
‘AFSPA हटाए जाने के कारण हुआ नुकसान’
उन्होंने बताया कि भारतीय सेना के भीतर संस्थाएँ इतनी कड़ी हैं कि किसी ने गलत किया तो सज़ा मिलती ही मिलती है। कर्नल हनी बक्शी ने ‘संवाद’ कार्यक्रम में जानकारी दी कि आफ्स्पा से सिर्फ एक लीगल प्रोटेक्शन मिलता है, लेकिन 2022 में मणिपुर में 15 पुलिस थानों से आफ्स्पा हटा दिया गया, अगले साल मार्च आते-आते 19 पुलिस थाना क्षेत्रों से ये नियम हट गए, जिसके बाद राष्ट्रहित में काम करने के लिए वहाँ सुरक्षा बलों को प्रोटेक्शन नहीं मिली।
उन्होंने बताया कि सिविल सोसाइटी के दबाव में ऐसा किया गया, क्योंकि इसे राजनीतिक मुद्दा बना दिया गया था। उन्होंने कहा कि भारतीय सेना तो चाहिए, लेकिन वो किस कानून के तहत संचालित हो? उन्होंने बड़ी जानकारी दी कि भारतीय सेना के पास गोली चलाने की भी अनुमति नहीं है, बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के सेना फायर नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि ये लोकतांत्रिक राष्ट्र की सेना है। उन्होंने कहा कि कानूनी बंधन हैं कुछ, सेना आएगी लेकिन लीगल प्रोटेक्शन तो चाहिए?
उन्होंने कहा कि अगर किसी जवान ने गोली चला दी तो जीवन भर कोर्ट का चक्कर लग जाएगा। उन्होंने उदाहरण दिया कि एक ‘शौर्य चक्र’ विजेता कई वर्षों तक अदालत के चक्कर लगाता रहा, ये सब आफ्स्पा के बावजूद हुआ। ऐसा इसीलिए हुआ, क्योंकि सिविल सोसाइटी से कुछ लोगों ने केस कर दिया था। उन्होंने बताया कि कई बार अपराधी उस क्षेत्र में भाग जाते हैं, जहाँ AFSPA लागू नहीं है और वहाँ गोली लगने पर केस हो जाता है। उन्होंने आफ्स्पा हटाने के फैसलों के पीछे कुछ NGO भी थे, जिनमें से कइयों विदेशी फंडिंग अब रोकी गई है।
मणिपुर की स्थिति पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि अपराधियों को पकड़ने के बाद महिलाएँ आकर घेर लेती हैं, ऐसी स्थिति में महिलाओं पर गोली चलाने की बजाए अपराधियों को जाने दिया जाता है। उन्होंने कहा कि अब आफ्स्पा तभी आएगा, जब खुद लोग इसे माँगेंगे। उन्होंने बताया कि ‘नागा नेशनल काउंसिल (NNC)’ जैसी संगठनों के साथ डील के बाद मणिपुर शांत था और वहाँ विकास हो रहा था। उन्होंने बताया कि ऐसे कुछ ग्रुप्स को स्पेशल ट्रीटमेंट मिल गई, जिसके बाद कोई भी समूह बना कर खुद को अलगाववादी बताने लगा।
‘चीन भी कर रहा भारत में अशांति के लिए निवेश, दे रहा हथियार’
उन्होंने बताया कि केवल मणिपुर में ही 55-56 अलगाववादी संगठन हैं, जिन्हें आतंकवादी कह लीजिए। वो सभी हथियारबंद हैं। उन्होंने बताया कि पड़ोस से वहाँ हथियार आ रहा है, चीन ने इसमें इतना निवेश किया है। चीन भारत में अशांति चाहता है। उन्होंने बताया कि जिन जज ने मेइती हिन्दुओं को ST में शामिल करने की सलाह दी, वो नॉन-मणिपुर थे, कोई मेइती नहीं थे। उन्होंने बताया कि खुद पहाड़ी कुकी समाज ने कहा था कि विदेशी घुसपैठियों को डिटेंशन सेंटरों में डालने के लिए कहा था।
मणिपुर में मजहब कहाँ से आ गया? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अगर एक ट्राइब ईसाई बैनर के नीचे बात करती है तो कहीं गड़बड़ है। अमेरिकी राजदूत द्वारा मदद के ऑफर पर उन्होंने कहा कि ‘चर्च ऑफ नॉर्थ अमेरिका’ का यहाँ बहुत प्रभाव है, लेकिन उन्हें नहीं लगता ये हो पाएगा क्योंकि ये हमारा आंतरिक मामला है। UCC पर उन्होंने कहा कि शिक्षा और आवागमन के कारण नॉर्थ ईस्ट के लोगों में भारतीयता का भाव आया। उन्होंने कहा कि उन्हें इसका खेद है कि हमारे ही लोगों ने इन्हें स्वीकार नहीं किया।
उन्होंने नॉर्थ ईस्ट के लोगों को ‘चिंकी’ कहे जाने वाले ट्रेंड का विरोध किया। उन्होंने कहा कि चर्च ने मणिपुर में बहुत विभाजन कर दिया है, ईसाइयों में भी अलग-अलग संप्रदाय हैं। उन्होंने समझाया कि अंग्रेजों के आने से पहले ये लोग काफी अलग-थलग थे, ऐसे में 150 वर्षों में यहाँ तक आ पाए हैं। उन्होंने इसकी वकालत की कि नागा समाज को मीडिएटर बन कर सामने आना चाहिए और बातचीत करानी चाहिए। उन्होंने मणिपुर के भूगोल की बात करते हुए कहा कि घने जंगल और पहाड़ियों में काम करना मुश्किल होता है।
उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि सुरक्षा बल जब जाते हैं तो ये लोग घंटी बजा कर सूचना दे देते हैं और सब इकट्ठे हो जाते हैं। उन्होंने इसमें ड्रग्स एंगल की भी बात की। उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा कि अफगानिस्तान के बाद नॉर्थ ईस्ट के ‘माल’ की चर्चा होती है। उन्होंने कहा कि जहाँ आतंकवाद होगा, वहाँ ड्रग्स होगा ही। कर्नल हनी बक्शी ने बताया कि जिन आतंकी संगठनों का जहाँ प्रभाव है वहाँ के व्यापारियों से वो रंगदारी लेते हैं। इस दौरान रिटायर्ड कर्नल ने मणिपुर में हिन्दू बनाम ईसाई एंगल को भी नकार दिया।
उन्होंने कहा कि म्यांमार से कई समूह हथियारों के साथ मणिपुर में आए हैं। कर्नल हनी बक्शी ने बताया कि नागा समाज के भीतर भी 150 से अधिक ट्राइब्स हैं। इनके अधिकतर गाँव पहाड़ों के ऊपर हैं, जबकि पानी के लिए नदी के किनारे घर बनाए जाते हैं सामान्यतः, लेकिन पहाड़ पर से उन्हें सब पर नजर रखने में सहूलियत होती है। उन्होंने नॉर्थ ईस्ट में हत्याओं को बंद करने में चर्च के रोल को स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि आज की तारीख़ में जब हम ग्लोबल विलेज हैं, हर ट्राइब को अलग राज्य देना संभव नहीं है क्योंकि उनके भीतर भी कई समूह हैं।