ये वह समाज है जिससे मोदी कह दें कि विष्ठा मलद्वार से करनी चाहिए तो वह अपने मुख से करने लगेगा। इनका ऑक्सीजन भी मोदी-विरोध है। इनका गड़बड़ाया पाचन तंत्र भी मोदी को गाली देकर दुरुस्त होता है। इस समाज के गाँजा और सेक्स लाइफ का एक्स फैक्टर है मोदी विरोध।
सामान्य जन को JNU के नाम पर न तो समर्थन और न ही विरोध में हाइप क्रिएट करना चाहिए। JNU वो नहीं रहा जिसके लिए उसे 1969 में बनाया गया था। इससे खुद को दूर रखें, आसपास की बेहतरी को देखें तो हमारे आपके अलावा देश के लिए भी बेहतर होगा।
यह ब्रह्मांड का पहला पुरस्कार है, जो जीतने वाले को उस चीज के लिए मिला है, जिसको वो गलत ठहराता और झूठ कहता रहा। देश में असहिष्णुता है, डर का माहौल है और अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है, ऐसा कहने वाले रवीश जी को अपनी अभिव्यक्ति के लिए ही पुरस्कार मिल गया।
रवीश वास्तविकता में मुश्क़िल सवाल न तो सामने वाले से पूछते हैं और न ही खुद से… उन्हें बड़े जहाज़, मंच पर जाकर फोटोबाजी और महँगे प्रसाधन से भी परहेज नहीं। ऐसे में मोदी जी को भी बिना झिझक… प्रधानमंत्री रहते रवीश के सामने बैठ कर कहना चाहिए - 'पांडे जी तुम भी कम नहीं हो बे… हें हें हें'!