Friday, November 15, 2024
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मकर संक्रांति: जीवन के विज्ञान और महात्म्य का उत्सव

वैसे तो साल भर में 12 संक्रान्तियाँ होती हैं, पर इनमें से दो संक्रातियों का विशेष महत्व है। पहली मकर संक्रांति और दूसरी, इससे बिल्कुल उलट, जून महीने में होने वाली मेष संक्रांति।

आज मकर संक्रांति है। कल ही तो लोहड़ी बीती है। भारत की सांस्कृतिक विरासत यूँ ही इतनी विविधताओं से भरी नहीं है। यहाँ हर कार्य से पहले उसके सफलतापूर्वक सम्पन्न होने की मंगल कामना और पूरा होने के बाद उत्सवों का दौर। जीवन आनन्द का भोग, तत्पश्चात अगले कार्य की तैयारी फिर उत्सव। मेहनत पहले और आनंद बाद में। इस तरह ख़ुशहाली और कर्म का चक्र चलता रहता है।

भक्काटे बचपन की याद , उड़ी पतंग मन हुआ मलंग

ख़ासतौर से उत्तर भारत में 14 जनवरी को मनाया जाने वाले ‘मकर संक्रांति’ का त्यौहार दही-चूड़ा, लाई, गुड़ और तिल की मिठाइयों और पतंगबाजी के भक्काटे के शोर के लिए मशहूर है। हो सकता है, आप खो गए हों कि आख़िरी बार कब आपने लम्बे नख से किसी की पतंग काटी थी। कटी पतंग के साथ भक्काटे का शोर बच्चों के लिए तो महादेव की डमरू से गूँजा अनहद नाद ही है।

क्या मकर संक्रांति का मतलब इतना ही है? चलिए इसी बहाने भारतीय त्यौहारों के पीछे छिपे गहरे महत्त्व पर प्रकाश डालता हूँ। किस तरह मकर संक्रांति का पर्व ब्रह्मांडीय और मानव ज्यामिति की एक गहरी समझ पर आधारित है। बताता चलूँ कि मकर संक्रांति फ़सल काटने का भी त्यौहार है। मकर संक्रांति को फ़सलों से जुड़े त्यौहार या पर्व के रूप में भी जाना व पहचाना जाता है।

दरअसल, यही वह समय है, जब फ़सल तैयार हो चुकी है और हम उसी की ख़ुशी व उत्सव मना रहे हैं। इस दिन हम हर उस चीज के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं, जिसने खेती करने व फ़सल उगाने में मदद की है। कृषि से जुड़े संसाधनों व पशुओं का भी जिनका खेती में बड़ा योगदान होता है। मगर, इस त्यौहार का खगोलीय और आध्यात्मिक महत्व ज़्यादा है।

‘मकर’ का अर्थ है शीतकालीन समय अर्थात ऐसा समय जब सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध में सबसे नीचे होता है। और ‘संक्रांति’ का अर्थ है गति। इतना ही नहीं, मकर संक्रांति के दिन राशिचक्र में एक बड़ा बदलाव भी आता है। इस खगोलीय परिवर्तन से जो नए बदलाव होते हैं उन्हें हम धरती पर देख और महसूस कर सकते हैं। ये समय आध्यात्मिक साधना के लिए भी महत्वपूर्ण है। तमाम योगी, साधक एवं श्रद्धालु इस अवसर का उपयोग अपनी आत्मिक उन्नति के लिए करते हैं। महाकुम्भ, कुम्भ, अर्ध कुम्भ और मकर संक्रांति के स्नान का भी बड़ा महात्म्य है।

वैसे तो साल भर में 12 संक्रान्तियाँ होती हैं। पर इनमें से दो संक्रातियों का विशेष महत्व है। पहली मकर संक्रांति और दूसरी, इससे बिल्कुल उलट, जून महीने में होने वाली मेष संक्रांति। इन दोनों के बीच में कई और संक्रान्तियाँ होती हैं। हर बार जब-जब राशि चक्र बदलता है तो उसे संक्रांति कहते हैं।

संक्रांति शब्द का मतलब हमें पृथ्वी की गतिशीलता के बारे में याद दिलाना है, और यह एहसास कराना है कि हमारा जीवन इसी गतिशीलता की देन है और इसी से पोषित भी। कभी सोचा है आपने अगर यह गति रुक जाए तो क्या होगा? अगर ऐसा हुआ तो जीवन संचालन से जुड़ा सब कुछ ठहर जाएगा।

हर 22 दिसंबर को अयनांत (Solstice) होता है। सूर्य के संदर्भ में अगर कहूँ तो इस दिन पृथ्वी का झुकाव सूर्य की तरफ़ सबसे ज़्यादा होता है। फिर इस दिन के बाद से गति उत्तर की ओर बढ़ने लगती है। फलस्वरूप, धरती पर भौगोलिक परिवर्तन बढ़ जाता है। हर चीज़ बदलनी शुरू हो जाती है।

यह गतिशीलता ही है, जो जीवन का आधार बनी। जीवन की प्रक्रिया, आदि और अंत भी। इसके साथ ही महादेव ‘शंकर’ शब्द आपको याद दिलाता है कि इस चराचर ब्रह्माण्ड के पीछे जो है, वह है शिव। शिव अर्थात वह जो नहीं है। जो नहीं है, वही पूर्ण अचल है। निश्चलता ही गति का आधार और मूल भी है।

जब कोई इंसान अपने भीतर की स्थिरता से संबंध बना लेता है, तभी वह गतिशीलता का आनंद ले सकता है। अन्यथा मनुष्य, जीवन की गतिशीलता से डर जाता है। मनुष्य के जीवन में आने वाला हर बदलाव या किसी भी तरह का परिवर्तन उसके लिए अक्सर दुःख या पीड़ा का कारण होता है।

आज इस भागती-दौड़ती दुनिया का तथाकथित आधुनिक जीवन ही ऐसा है। जिसके हर बदलाव में पीड़ित होना तय है। आज बचपन एक तनाव बन चुका है, किशोरावस्था या युवावस्था उससे भी बड़ा दुख। प्रौढ़ावस्था असहनीय है। बुढ़ापा डरा और सकुचा-सहमा हुआ और मृत्यु या जीवन का अंत किसी घोर आतंक या ख़ौफ़ से कम नहीं। आज पैदा होने से लेकर मृत्यु तक जीवन के हर स्तर या चरण पर कुछ न कुछ समस्या है।

वह इसलिए है, क्योंकि इंसान को हर बदलाव से दिक्कत है। दरअसल, इन्सान यह स्वीकार करने को ही तैयार नहीं कि जीवन की असली प्रकृति ही बदलाव है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। आप गतिशीलता का तभी आनंद ले पाएँगे या उत्सव मना पाएँगे, जब आपका एक पैर स्थिरता में दृढ़ता से जमा होगा। और दूसरा गतिशील। मकर संक्रांति का पर्व इस बात का भी उद्घोष है कि गतिशीलता का उत्सव मनाना तभी संभव है, जब आपको अपने भीतर स्थिरता का एहसास हो।

मकर संक्रांति के बाद से सर्दी धीरे-धारे कम होने लगती है। इस तथ्य से तो आप परिचित ही हैं कि हम सभी सौर ऊर्जा से संचालित हैं। तो मकर संक्रांति का महत्व ये समझने में भी है कि हमारे जीवन का स्रोत कहाँ है? इस ग्रह पर व्याप्त हर एक पौधा, पेड़, कीट, पतंगा, कीड़ा, जानवर, पशु-पक्षी, पुरुष, महिला, बच्चा, हर प्राणी सौर ऊर्जा से संचालित होता है। सौर ऊर्जा कोई नई तकनीक नहीं है। हम सभी सौर ऊर्जा से ही संचालित हैं, सौर ऊर्जा धरती पर जीवन के आरम्भ और उत्कर्ष का आधार भी है।

भारतीय संस्कृति में हम साल के इस नए पड़ाव का, जब हमारे पास सर्वाधिक सौर ऊर्जा होती है, हम इसे ‘मकर संक्रांति’ के रूप में मनाते हैं। इसलिए हम सूरज का स्वागत करते हैं। जैसे-जैसे हम हिमालय से दूर जाते हैं। उन जगहों पर आज से ही सूर्य की प्रचंडता बढ़ने लगती है। लोग ग्रीष्म ऋतु के आगमन की आहट पा परेशान होने लगते हैं। उनकी बढ़ती परेशानी की वज़ह ग्लोबल वार्मिंग भी है। आने वाली पीढ़ियों के लिए ज़रूरत है एक ऐसा माहौल बनाने की, जहाँ हम अपने जीवन के स्रोत का अधिकतम लाभ उठा सकें। ये त्यौहार हमें ये भी याद दिलाते हैं कि हमें अपने वर्तमान और भविष्य को पूरी चैतन्यता और जागरूकता के साथ गढ़ने की ज़रूरत है।

यदि आप चाहते हैं कि इस देश की भावी पीढ़ियाँ आने वाली गर्मी का स्वागत करने एवं आनंद लेने के लिए पर्याप्त रूप से सक्षम हो, तो यह तभी संभव है जब हम प्रकृति के साथ एक अनुकूलन पैदा करें। धरती, वनस्पतियों, जल संसाधनों से समृद्ध और मिट्टी में पानी को सोखने में सक्षम हो। तभी हम सही मायने में मकर संक्रांति का जश्न मना सकते हैं।

ऑपइंडिया टीम की तरफ़ से, आप सभी को मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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रवि अग्रहरि
रवि अग्रहरि
अपने बारे में का बताएँ गुरु, बस बनारसी हूँ, इसी में महादेव की कृपा है! बाकी राजनीति, कला, इतिहास, संस्कृति, फ़िल्म, मनोविज्ञान से लेकर ज्ञान-विज्ञान की किसी भी नामचीन परम्परा का विशेषज्ञ नहीं हूँ!

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