Friday, November 22, 2024
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भारत बायोटेक ने बताया TOI-वायर-डेक्कन हेराल्ड जैसों ने कोरोना वैक्सीन पर कैसे झूठ फैलाया, ‘सही रिपोर्टिंग’ की दी डोज

भारत बायोटेक ने मीडिया संस्थानों से रिपोर्ट करते हुए जिम्मेदार बनने को कहा और बताया कि दवाई, विज्ञान, वैक्सीन जैसे चीजों पर आर्टिकल वैज्ञानिक तथ्यों और आँकड़ों के आधार पर होना चाहिए, न कि वैचारिक, राजनीतिक और आर्थिक झुकाव की तरफ।

कोरोना काल में भारत में दो स्वदेशी वैक्सीन बनी। पहली सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII) ने कोविशील्ड (Covishield) बनाई और दूसरी भारत बायोटेक (Bharat Biotech) ने कोवैक्सीन (Covaxin)। कोविशील्ड को ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका (Oxford AstraZeneca) द्वारा विकसित किया गया जबकि भारत बायोटेक कोवैक्सीन स्वदेशी तरीके से ही विकसित की गई। भारत सरकार ने जब इस कोवैक्सीन को अप्रूव किया तो कई मीडिया संस्थानों ने भारत पर सवाल उठाते हुए यहाँ निर्मित वैक्सीन को भी निशाना बनाया और झूठी खबरों से अपना प्रोपगेंडा चलाते रहे।

दिलचस्प बात ये है कि मीडिया संस्थान उस वैक्सीन पर अपना खेल खेलने में लगे थे जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पास कर दिया था। अब इसी प्रोपगेंडा का पर्दाफाश करने के लिए भारत बायोटेक ने कुछ मीडिया रिपोर्ट्स का फैक्ट चेक किया है।

मनीकंट्रोल की रिपोर्ट का फैक्ट चेक

भारत बायोटेक ने जनहित में ये फैक्ट करते हुए एक-एक रिपोर्ट की पोल खोली। सबसे पहले बारी आई मनी कंट्रोल की। भारत बायोटेक ने मनी कंट्रोल में 29 दिसंबर 2021 को प्रकाशित एक लेख का फैक्ट चेक किया। इसमें उन्होंने संशय जताया था कि 15-18 साल वाले समूह को 10 करोड़ वैक्सीन मिल पाना थोड़ा संदेहास्पद है।

भारत बायोटेक का फैक्ट चेक

भारत बायोटेक ने कहा कि उन्होंने पिछले 11 माह में करोड़ों डोज वैक्सीनेशन अभियानों में पहुँचाई है और 15-18 साल वाले समूह के लिए भी इसे किया जाता रहेगा। भारत बायोटेक के टेक ट्रांस्फर प्रोजेक्ट को असफल बताने वाले मीडिया कंट्रोल के बयान बर बायोटेक ने बताया कि वो टेक ट्रांस्फर प्रोजेक्ट 3 कंपनियों के साथ कर रहे हैं। एक में पहले ही निर्माण किया जा रहा है और जिस कंपनी (Haskins Veterinary Institute) का नाम खबर में लिखा गया है वो तो अस्तित्व में ही नहीं है।  फिर मनीकंट्रोल में भारत बायोटेक को लेकर ये भी कहा कि ये कंपनी उन चंद कंपनियों में से हैं जिनके पास ’18 ऑड’ आयु वर्ग में परीक्षणों का अनुभव है। हालाँकि कंपनी ने उन्हें कहा कि वो अपने क्लिनिकल ट्रायल 2-18 साल वाले बच्चों पर लेते रहे हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया

इसी तरह टाइम्स ऑफ इंडिया के फेक न्यूज का पर्दाफाश करने के लिए 25 दिसंबर की खबर उठाई गई। आर्टिकल में लिखा था कि ऐसा दावा है कि बेंगलुरु के प्राइवेट अस्पतालों में जो 5.5 लाख डोज हैं कोवैक्सीन की, वो एक्सपायर हो गई हैं। भारत बायोटेक ने इस रिपोर्ट पर बयान दिया कि उनके पास जो डेटा है उसके मुताबिक ये आंँकड़ा सिर्फ 1 लाख डोज का है।

भारत बायोटेक का फैक्ट चेक

डेक्कन हेराल्ड का फर्जी दावा

डेक्कन हेराल्ड ने 5 जनवरी 2022 के आर्टिकल में बच्चों को टीका लगने से पहले उनके अभिभावकों को डराने का काम किया और बताया गया कि कैसे बच्चों को लगने वाली वैक्सीन का कम ट्रॉयल हुआ है। इस पर भारत बायोटेक ने बताया कि उन्होंने अब तक 26000 लोगों पर क्लिनिकल ट्रॉयल किया है, जिसके रिव्यू विदेशी जर्नल्स में भी छपे हैं। शेल्फ लाइफ एक्स्टेंशन पर डेक्कन हेराल्ड के झूठ से पर्दा हटाते हुए कंपनी ने बताया कि जो बात कही जा रही है 6 लाख डोज में से 90% एक्सपायर थीं, उसका सच ये है कि कंपनी सप्लाई की जाने वाली डोज और मौजूदा डोज का डेटा रखती हैं। बेंगलुरु के अस्पतालों में 6 लाख एक्सपायर डोज है ही नहीं। ये आँकड़ा एक लाख से भी कम का है।

द वायर का झूठ

भारत बायोटेक ने द वायर में प्रकाशित 29 दिसंबर 2021 की रिपोर्ट का फैक्ट चेक किया और इस लाइन का जवाब दिया जिसमें दावा किया गया था कि कोवैक्सीन से पैदा होने वाली इम्यून पर कोई डेटा नही है। भारत बायोटेक ने कहा कि कोवैक्सीन से कितना इम्यून बनता है इस पर कई अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में रिपोर्ट छपी हैं। इसके अलावा बूस्टर का डेटा भी अधिकारियों पर जमा है।

भारत बायोटेक ने कहा कि ये मीडिया संस्थानों द्वारा फैलाई गई फर्जी न्यूज का केवल उदाहरण हैं। कई लोगों ने वैक्सीन और कंपनी को लेकर झूठ बोला है और वो इन फर्जी दावों का फैक्ट चेक करना जारी रखेंगे। उन्होंने मीडिया संस्थानों को सलाह दी कि वो रिपोर्टिंग के दौरान थोड़े जिम्मेदार बनें और ही रिपोर्टिंग करें। कंपनी ने कहा कि दवाई, विज्ञान, वैक्सीन जैसे चीजों पर आर्टिकल वैज्ञानिक तथ्यों और आँकड़ों के आधार पर होना चाहिए, न कि वैचारिक, राजनीतिक और आर्थिक झुकाव की तरफ।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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