गुजरात के दहेज, भरूच में हुई रोड-रेज की घटना को इंडियन एक्सप्रेस ने साम्प्रदायिक रंग दे दिया है। उनके अनुसार पीड़ित को (केवल) मुस्लिम होने के लिए पाँच लड़कों द्वारा पीटा गया। वहीं पुलिस ने ऑपइंडिया से हुई बातचीत में मामले के किसी भी साम्प्रदायिक एंगल से इंकार किया है।
फैसल खान के अनुसार शनिवार (27 जुलाई, 2019) को वह जोलवा गाँव में टायरों का निर्माण करने वाली अपनी कंपनी के दफ़्तर से कुछ खरीदारी करने निकले थे। ऑफ़िस से 100 मीटर ही वह आगे बढ़े थे कि उन्होंने पाँच लड़कों को एक दूसरे लड़के से बहस करते देखा। वह ध्यान न दे साइड से आगे बढ़ने वाले थे कि उन पाँचों में से एक ने उन्हें पकड़ लिया और नाम-पता पूछने लगे।
उन्होंने जब अपनी कम्पनी का नाम बताया तो उन लोगों ने फैसल के साथ हिंसा शुरू कर दी। विरोध करने और कारण पूछने पर और भी मारा। “मैं वहाँ से किसी तरह निकल भागा क्योंकि मेरी बाइक चालू थी, मैं थोड़ी दूर जा कर छिप गया और अपने सहकर्मी इम्तियाज़ शेख को घटना के बारे में बताया।”
इसके थोड़ी देर बाद जब वह उन गुण्डों को गया हुआ समझ कर लौटने लगे तो दो गुण्डे वहीं मौजूद थे। उन्होंने फिर से फैसल की पिटाई शुरू कर दी और अपने तीनों बाकी साथियों के साथ फैसल को उनकी कंपनी के गेट की तरफ भागते हुए रोक कर अगवा कर लिया, और पास के एक स्थान पर ले जाकर उनके साथ और मारपीट की। उसके बाद वे गुण्डे फैसल को वहीं छोड़ कर भाग खड़े हुए। उनके सहकर्मी उनके फ़ोन करने पर वहाँ पहुँचे और उन्हें अस्पताल ले गए। अस्पताल में अस्पताल वालों ने पुलिस को इत्तला कर दी।
निश्चय ही यह गलत ही नहीं, बहुत ही घृणित हरकत है। और उन गुण्डों को कड़ी-से-कड़ी सज़ा मिलनी भी चाहिए। लेकिन यह समझ पाना मुश्किल है कि इंडियन एक्सप्रेस ने इसमें साम्प्रदायिकता का एंगल कैसे तलाश लिया। ऑपइंडिया ने जब दहेज पुलिस स्टेशन में फ़ोन कर घटना के बारे में जानना चाहा तो वहाँ के पुलिस अफसर ने घटना में साम्प्रदायिकता का पुट होने से इंकार किया। बकौल पुलिस, यह रोड रेज की घटना थी और अज्ञात हमलावरों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया है।
इंडियन एक्सप्रेस का इसमें साम्प्रदायिकता का एंगल अविष्कृत कर लेना कोई नई बात नहीं है। मेनस्ट्रीम मीडिया यही करता ही आ रहा है। इसके पहले भी गुरुग्राम में हुई निंदनीय लेकिन गैर-साम्प्रदायिक मारपीट की घटना को TOI ग्रुप ने साम्प्रदायिक रंग दे दिया था। यही नहीं, जुनैद खान मामले में तो जब तक अदालत का फैसला नहीं आ गया, पत्रकारिता का समुदाय विशेष सीट के झगड़े को लेकर हुई इस हत्या के साम्प्रदायिक कारणों से हुए होने का दावा करता ही रहा।