कोरोना वायरस संक्रमण के बीच मीडिया गिरोह आधी-अधूरी जानकारी पर अफवाहें फैलाने का काम कर रहा है। पिछले दिनों इस संबंध में ‘द वायर’ के एजेंडे की पोल खुली थी और अब बारी इंडियन एक्सप्रेस की है। दरअसल, बुधवार (अप्रैल 15, 2020) को इंडियन एक्प्रेस में एक खबर प्रकाशित हुई जिसमें दावा किया गया कि अहमदाबाद सिविल अस्पताल में धर्म व मजहब को देखते हुए मरीजों के लिए अलग-अलग वार्ड बनाए गए हैं। रिपोर्ट में वजन डालने के लिए ये भी कहा गया कि अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट गुणवंत एच राठौड़ ने खुद दावा किया है कि सरकार के फैसले के अनुसार हिंदुओं और मुस्लिमों के लिए अलग-अलग वार्ड तैयार किए गए हैं।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक डॉक्टर राठौड़ ने कहा, “आमतौर पर महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग वार्ड होते हैं। लेकिन यहाँ हमने हिंदू और मुस्लिम मरीजों के लिए अलग-अलग वार्ड बनवाए हैं।” इतना ही नहीं रिपोर्ट ये भी कहती है कि जब डॉक्टर से इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ये सरकार का निर्णय है। आप उनसे पूछ सकते हैं।
Myth – USCIRF says #COVID19 patients are being segregated on religious lines in a Gujarat hospital, citing a news item. Reality – unfortunate that this claim is based on a news item, already found fake and denied by the State govt: Govt of India pic.twitter.com/V8cIfIUhiH
— ANI (@ANI) April 15, 2020
इंडियन एक्सप्रेस की ये रिपोर्ट वाकई चौंकाने वाली है कि धर्मनिरपेक्ष देश में ऐसा भेदभाव क्यों? अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग USCIRF ने भी अपनी रिपोर्ट में इसी तरह का दावा किया। लेकिन इन सभी रिपोर्टों पर उस समय सवालिया निशान लग गया, जब गुजरात सरकार ने ऐसे किसी भी वर्गीकरण को ख़ारिज कर दिया। गुजरात के स्वास्थ्य विभाग ने भी इस बिंदु को पूरी तरह से खारिज करते हुए अपनी ओर से बयान जारी किया।
स्वास्थ्य विभाग ने कहा कि अहमदाबाद सिविल अस्पताल में किसी भी मरीज के लिए धार्मिक आधार पर विभाजन नहीं किया गया है। कोरोना मरीजों को उनके लक्षण, उनकी गंभीरता के आधार पर और डॉक्टरों की सिफारिशों आदि पर इलाज किया जा रहा है।
इसके बाद, डॉक्टर राठौर का खुद भी इस संबंध में बयान आया। उन्होंने कहा ”मेरा बयान कुछ खबरों में गलत तरीके से पेश किया जा रहा है कि हमने हिंदू और मुस्लिमों के लिए अलग-अलग वार्ड बनवाएँ। मेरे नाम पर गढ़ी गई ये रिपोर्ट झूठी और निराधार है। मैं इसकी निंदा करता हूँ।” उन्होंने ये भी बताया कि वार्डों को महिला-पुरुष और बच्चों के लिए अलग-अलग किया गया है, वो भी उनकी मेडिकल स्थिति देखकर न कि धार्मिक आधार पर।
It must stop adding religious colour to our national goal of fighting the pandemic and distract from larger efforts. No segregation is being done in civil hospitals on the basis of religion, as clarified by the Gujarat Government: Anurag Srivastava, MEA Spokesperson https://t.co/XsEqFDP7MV
— ANI (@ANI) April 15, 2020
वहीं विदेश मंत्रालय ने इस संबंध में अमेरिकी आयोग के दावे को ख़ारिज किया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी अमेरिकी आयोग भारत में कोविड-19 से निपटने के लिए पालन किए जाने वाले पेशेवर मेडिकल प्रोटोकॉल पर गुमराह करने वाली रिपोर्ट फैला रहा है।
विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी आयोग की टिप्पणी पर कहा, “अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में धार्मिक आधार पर कोविड-19 के मरीजों को अलग-अलग नहीं किया गया। इसलिए, यूएससीआईआरएफ को कोरोना वायरस महामारी से निपटने के भारत के राष्ट्रीय लक्ष्य को धार्मिक रंग देना बंद करना चाहिए।
The news which has appeared in some dailies has misquoted me, that “we have made separate wards for Muslims & Hindus.” This report in my name is false and baseless and I condemn it: Professor GH Rathod, Surgeon, Civil Hospital, Asarwa in Ahmedabad. #Gujarat #COVID19 pic.twitter.com/yRfNcj5WFo
— ANI (@ANI) April 15, 2020
गौरतलब है कि ये पहला मौक़ा नहीं है जब इंडियन एक्सप्रेस ने किसी खबर को धार्मिक रंग देने का प्रयास किया हो। 2019 में भी ऐसा मामला आया था। उस समय इंडियन एक्प्रेस में एक घटना को साम्प्रदायिक रूप देकर तूल दिया था और रिपोर्ट की थी कि 5 लोगों ने धर्म जानने के लिए 1 मुस्लिम को बुरी तरह मारा। जबकि पीड़ित ने खुद इस तरह का कोई बयान नहीं दिया था। मगर, इंडियन एक्प्रेस ने इस घटना को बिना आधार मजहबी रंग दिया।
इसी प्रकार साल 2015 में इंडियन एक्प्रेस ने दावा किया अहमदाबाद में नगर निगम द्वारा संचालित जो स्कूल मुस्लिम बहुल इलाके में हैं उनकी यूनिफॉर्म हरे रंग की है। वहीं हिंदू बहुल इलाके में केसरिया। बाद में पता चला कि यह मीडिया संस्थान की कल्पना से इतर कुछ नहीं था। असल में यूनिफॉर्म के कलर को लेकर फैसला स्कूल की प्रबंधन समिति ने अपनी पसंद के हिसाब से किया था।
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मैग्जीन ने दावा किया था कि ICMR टास्क फोर्स को मोदी सरकार ने किनारे कर दिया है। टास्क फोर्स के अध्यक्ष विनोद पॉल ने ऑपइंडिया को बताया कि मीडिया की ऐसी हरकतों से, महामारी के इस दौर में, एक राष्ट्रीय स्तर की लड़ाई में हानि ही होती है।