पूरी दुनिया के साथ-साथ भारत में भी कोरोना वायरस का संक्रमण फैलता जा रहा है। इसको देखते हुए सरकार ने 21 दिनों के लिए पूर्ण लॉकडाउन किया हुआ था। फिर हालात को मद्देनजर रखते हुए इसकी समयसीमा बढ़ाकर 3 मई तक कर दी गई। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यावसायिक घरानों से अपील की थी कि वे किसी भी कर्मचारी को उनकी नौकरी से न निकालें। साथ ही उन्होंने उनसे कर्मचारियों के प्रति संवेदना दिखाते हुए उनकी सैलरी भी कम करने या फिर नहीं काटने का अनुरोध किया था। उनका कहना था कि लॉकडाउन के कारण कई कर्मचारी बिना वेतन के अपनी आश्यकताएँ पूरी नहीं कर सकेंगे।
इन दिनों देश कोरोना वायरस महामारी से निपट रहा है और साथ ही आर्थिक मंदी से भी जूझ रहा है। मगर ऐसे में भी कुछ मीडिया घराने हैं, जो मोदी सरकार को निशाना बनाने में पीछे नहीं रहते और फ़र्जी खबरें फैला कर लोगों में दहशत पैदा करने का काम कर रहे हैं। यह फर्जी खबरें ‘द हिंदू’और ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के द्वारा तब प्रकाशित की गई, जब देश महामारी के दौर से गुजर रहा है। इसमें प्रसार भारती को निशाना बनाने के मकसद से लेख लिखा गया। जिसमें यह आरोप लगाया गया कि प्रधानमंत्री के अनुसार लॉकडाउन की अवधि को देखते हुए और कर्मचारियों को को जॉब से न निकालने के निर्देश के बावजूद AIR ने कोरोना वायरस के महामारी की बीच अपने कर्मचारियों को दिया है।
इंडियन एक्सप्रेस ने फर्जी खबरें फैलाईं
इंडियन एक्सप्रेस ने ‘दिल्ली कॉन्फिडेंशियल’ नाम के एक सेक्शन में ‘अगेंस्ट अपील’ शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया। 16 अप्रैल, 2020 को प्रकाशित लेख में दावा किया गया था कि प्रधानमंत्री से अपील के बावजूद प्रसार भारती ने अपने कर्मचारियों का वेतन कम कर दिया था।
लेख में कहा गया, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को नियोक्ताओं को अपने कर्मचारियों और लेबर के प्रति संवेदनशील होने को कहा। साथ ही वित्त मंत्रालयों ने उल्लेख किया था कि संविदा और आकस्मिक श्रमिकों को पूर्ण भुगतान भी किया जाना चाहिए और लॉकडाउन के दौरान भी उन्हें ड्यूटी पर माना जाना चाहिए। हालाँकि, ऑल इंडिया रेडियो ने दोनों की सलाह को नज़रअंदाज़ किया। कई कैजुअल कर्मचारी, जो आकाशवाणी के लिए प्रस्तुतकर्ता, निर्माता, पटकथा-लेखक आदि के रूप में काम करते हैं, उन्हें केवल उन दिनों के लिए भुगतान किया जाता है, जब उन्हें मार्च में बुलाया गया था, हालाँकि उनमें से कई लोगों ने और भी शो में आने की इच्छा जताई थी।”
इंडियन एक्सप्रेस के लेख में निम्नलिखित बातों का उल्लेख किया गया है:
1. भारत की सार्वजनिक सेवा प्रसारक स्वयं प्रधानमंत्री की अपील का पालन नहीं कर रही है।
2. प्रसार भारती के “कर्मचारियों” को पूरी तरह से भुगतान नहीं किया जा रहा।
3. प्रसार भारती उन ‘कर्मचारियों’ को ही भुगतान कर रही है, जिसे उसने अपनी आवश्यकता के अनुसार बुलाया था और उन्हें पूरी राशि देने के बजाए सिर्फ उतनी राशियों का ही भुगतान कर रहा है जितने दिन उन्हें बुलाया गया था।
4. कर्मचारी काम करना चाहते हैं और इसके लिए भुगतान भी चाहते हैं, लेकिन प्रसार भारती लॉकडाउन के दौरान लागत में कटौती के प्रयास में उन्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं दे रहा है।
इसमें सबसे बड़ी बात यह थी कि “हो सकता है कि इन्होंने सलाह को अनदेखा किया है।” हालाँकि इस झूठी खबर की पुष्टि करने के लिए इंडियन एक्सप्रेस के पास कोई आधार नहीं था। उसके लेख से स्पष्ट था कि उसने द्वेष और फर्जी खबर फैलाने के लिए इस तरह का लेख लिखा। मगर उनका यह झूठ अधिक समय तक नहीं छिप सका। ऑपइंडिया ने प्रसार भारती द्वारा इंडियन एक्सप्रेस को लिखा गया पत्र ढूँढ़ निकाला। जिसमें उसके झूठ की सारी पोल-पट्टी खुल गई है।
पत्र में प्रसार भारती का कहना है कि यह लेख तथ्यात्मक रूप से गलत है। यह न केवल ऑल इंडिया रेडियो की छवि को खराब कर रहा है, बल्कि इसमें पाठकों को गुमराह करने की भी कोशिश की गई है।
प्रसार भारती ने अपने संस्थान की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कुछ बातें बताई हैं।
1. प्रसार भारती द्वारा इंडियन एक्सप्रेस को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि इंडियन एक्सप्रेस जिनके बारे में बात कर रहा है, वह प्रसार भारती के “कर्मचारी” नहीं हैं, बल्कि “अंशकालिक फ्रीलांसर हैं जो केवल एक जरूरत के आधार पर लगे हुए हैं और कैजुअल असाइनमेंट के रूप में काम करते हैं। उन्हें उनके द्वारा किए गए असाइनमेंट के लिए भुगतान किया जाता है।”
2. स्पष्ट कर दें कि इन व्यक्तियों और प्रसार भारती के बीच कोई नियोक्ता-कर्मचारी संबंध नहीं है।
3. इन कैजुअल असाइनी को लॉकडाउन के दौरान भी उनके द्वारा किए गए असाइनमेंट के लिए भुगतान किया जा रहा है। इनका असाइनमेंट के अलावा ऑल इंडिया रेडियो से भुगतान प्राप्त करने का कोई अनुबंध नहीं है। ये जितना असाइनमेंट करते हैं, उन्हें उसके लिए भुगतान किया जाता है।
4. वे अपनी इच्छानुसार किसी अन्य सार्वजनिक या फिर निजी संगठनों में नौकरी करने या फिर बिजनेस के लिए स्वतंत्र हैं। ऐसे व्यक्ति शिक्षक, मैनेजर, इंजीनियर, डॉक्टर, वकील या बिजनेसमैन हो सकते हैं। ये अपने खाली समय में कैजुअल असाइनी के रूप में ऑल इंडिया रेडियो में योगदान दे सकते हैं।
दरअसल प्रसार भारती के सूत्र ने ऑपइंडिया को बताया कि कई असाइनी आकाशवाणी सेवाओं जैसे- एफएम रेनबो, विविध भारती, आकाशवाणी जैसे अन्य समाचार के लिए लॉकडाउन के दौरान भी काम कर रहे हैं।
प्रसार भारती की स्पष्टीकरण के बाद यह बात साफ हो गई है कि संस्थान ने किसी भी तरह से प्रधानमंत्री द्वारा की गई अपील को नजरअंदाज नहीं किया है। कैजुअल असाइनमेंट्स के लिए उसी तरह से भुगतान किया जा रहा है, जैसे पहले किया जाता था। इसके अलावा इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि प्रसार भारती अपने “कर्मचारियों” को कम भुगतान कर रहे हैं, जो कि तथ्यात्मक रूप से गलत है और मनगढ़ंत है।
अब हम आपको बताते हैं कि किस तरह से द हिंदू ने कोरोनोवायरस लॉकडाउन के बीच प्रसार भारती से कर्मचारियों को निकालने की फर्जी खबर फैलाई।
फर्जा खबर फैलाने के लिए जाना जाने वाले द हिंदू ने एक बार फिर से ऐसा ही किया है। 16 अप्रैल को प्रकाशित एक लेख में, द हिंदू ने दावा किया कि दिल्ली एफएम गोल्ड के 80 रेडियो जॉकी (RJs) काम से बाहर हैं और सरकार के आदेशों के बावजूद उन्हें भुगतान नहीं किया गया है।
दिलचस्प बात यह है कि लेख में लेखक ने यह स्वीकार किया कि वे कैजुअल वर्कर हैं। कैजुअल वर्कर होने के नाते, उन्हें केवल तभी बुलाया जाता है जब उनकी जरूरत होती है और इसलिए उनके बीच नियोक्ता-कर्मचारी का कोई संबंध नहीं होता है। दिल्ली एफएम गोल्ड ऑल इंडिया रेडियो की पेशकश है और इसलिए यह लेख सरकार को टारगेट करने के लिए लिखा गया लगता है।
यहाँ पर गौर करने वाली बात ये है कि जब कोई नियोक्ता-कर्मचारी संबंध नहीं है, और इन RJ को जरूरत पड़ने पर बुलाया जाता है तो फिर ये किसी के अधिकार क्षेत्र में नहीं है कि वो उन पर दबाव डाले कि उन्हें असाइनमेंट के लिए बुलाया ही जाए। यह संस्थान के ऊपर निर्भर करता है कि वो कब उन्हें असाइनमेंट के लिए बुलाएँगे, कब नहीं। दरअसल इनकी हेडलाइन ही अतार्किक और हास्यास्पद है, क्योंकि कोई भी रेडियो चैनल पेरोल पर 80 रेडियो जॉकी नहीं रखता है।
प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) ने भी द हिंदू की खबर का खंडन किया।
क्या कहा प्रसार भारती के सीईओ ने
प्रसार भारती के सीईओ शशि शेखर ने कहा, “विभिन्न पैनल से निकाले गए कई कैजुअल असाइनी उनकी उपलब्धता और आवश्यकता के आधार पर @AkashvaniAIR के नेटवर्क पर लगे रहते हैं और 6 असाइनमेंट की उचित सीमा के भीतर काम करते हैं।” दिलचस्प बात यह है कि शशि शेखर ने यह भी खुलासा किया कि प्रति व्यक्ति 6 असाइनमेंट की सीमा है जो पहले से ही ऑल इंडिया रेडियो से संबंधित है।
उन्होंने आगे कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मीडिया तथ्यात्मक स्थिति की पुष्टि किए बिना कैजुअल असाइनी की स्थिति के बारे में भ्रामक विवरण प्रकाशित कर रहा था।
झूठ फैलाने का इंडियन एक्सप्रेस का पुराना इतिहास रहा है। बुधवार (अप्रैल 15, 2020) को इंडियन एक्प्रेस में एक खबर प्रकाशित हुई जिसमें दावा किया गया कि अहमदाबाद सिविल अस्पताल में धर्म व मजहब को देखते हुए मरीजों के लिए अलग-अलग वार्ड बनाए गए हैं। रिपोर्ट में वजन डालने के लिए ये भी कहा गया कि अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट गुणवंत एच राठौड़ ने खुद दावा किया है कि सरकार के फैसले के अनुसार हिंदुओं और मजहब विशेष के लिए अलग-अलग वार्ड तैयार किए गए हैं। गुजरात सरकार ने ऐसे किसी भी वर्गीकरण को ख़ारिज कर दिया। गुजरात के स्वास्थ्य विभाग ने भी इस बिंदु को पूरी तरह से खारिज करते हुए अपनी ओर से बयान जारी किया।
इसमें कहा गया कि स्वास्थ्य विभाग ने कहा कि अहमदाबाद सिविल अस्पताल में किसी भी मरीज के लिए धार्मिक आधार पर विभाजन नहीं किया गया है। कोरोना मरीजों को उनके लक्षण, उनकी गंभीरता के आधार पर और डॉक्टरों की सिफारिशों आदि पर इलाज किया जा रहा है।
इसके अलावा डॉक्टर राठौर का खुद भी इस संबंध में बयान आया था। उन्होंने कहा था, ”मेरा बयान कुछ खबरों में गलत तरीके से पेश किया जा रहा है कि हमने हिंदू और दूसरे मजहब के लिए अलग-अलग वार्ड बनवाएँ। मेरे नाम पर गढ़ी गई ये रिपोर्ट झूठी और निराधार है। मैं इसकी निंदा करता हूँ।”