“3 दिन के लिए मुंबई डूब जाता है और एक हफ्ते के लिए केरल या चेन्नई डूब जाता है तो देश के बुद्धिजीवी लोग सोशल मीडिया पर आँसुओं का सैलाब ला देते हैं। केरल और चेन्नई के बाढ़ का और मुंबई की बारिश एक फोटो देख कर उनका दिल पसीज जाता है। मदद के नाम पर कई एकाउंट्स खाली हो जाते हैं। लेकिन, बिहार के लोगों का क्या?”
ये पंक्तियाँ कोई डायलॉगबाजी नहीं है बल्कि दहकता सवाल है एक ऐसे बिहारी का, जो छाती तक पानी में डूब कर चलने को मजबूर है। एक तरह से ये सवाल है शासन की अकर्मण्यता से जूझ रहे हर उस बिहारी का, जिसके घर में भीतर तक पानी घुस चुका है और वह मदद की उम्मीद भी खो चुका है। यह सवाल है सुशासन बाबू के नाम से जाने जाने वाले नीतीश कुमार के राज्य के वासियों का, जो भीषण बाढ़ की त्रासदी झेल रहे हैं और सोशल मीडिया के अलावा उन्हें अपनी बात पहुँचाने के कोई और जरिया नहीं मिल रहा।
इस आदमी के सवाल जायज हैं। ऐसा इसीलिए, क्योंकि जिन पर बाढ़ से निपटने के लिए उचित इंफ़्रास्ट्रक्चर बनाने और पीड़ितों को राहत देने का काम है, वो ख़ुद राहत की उम्मीद में बैठे हैं। किसी सरकार के लिए इससे ज्यादा बड़ी बेइज्जती की बात क्या हो सकती है? उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ख़ुद अपने घर में फँस गए, जहाँ से उन्हें रेस्क्यू किया गया। एनडीआरएफ की टीम ने नाव की मदद से उन्हें और उनके परिवार को निकाला। इस दौरान वह मीडिया के सवालों से भी बचते नज़र आए। आख़िर बोले भी तो क्या, अपनी नाकामी का सबसे बड़ा उदाहरण उनकी ख़ुद की ही स्थिति बन गई। देखें वीडियो:
बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी के घर में घुसा पानी, परिवार सहित डिप्टी सीएम को NDRF की टीम ने किया रेस्क्यू. मीडिया के सवालों से बचते नजर आए #SushilModi | ( @sumairakh )#BiharFloods #PatnaRains pic.twitter.com/5lshJGD3n6
— TV9 भारतवर्ष (@TV9Bharatvarsh) September 30, 2019
अब वापस आते हैं उस वीडियो पर, जिसमें बाढ़ के बीच एक बिहारी से शासन-प्रशासन से कई सवाल दागे। उसने सवाल पूछा कि जब सबसे ज्यादा आईएएस-आईपीएस बिहार से होते हैं, बिहार को ग़रीबी और बीमारी के रूप में क्यों देखा जाता है? उसने आगे सच्चाई ज़ाहिर करते हुए कहा कि बिहार बीमार नहीं है बल्कि बीमार बिहार के नेतागण हैं, जिन्हें वो चुनते हैं। उसका दर्द इस बात को लेकर है कि जो बिहार की जनता त्रासदी झेलती है, वही जनता चुनाव के समय ऐसे नेताओं को जातिवाद के कारण जीता देती है, जो कुछ भी काम नहीं करते।
आपको बता दें कि जिस वीडियो की हम बात कर रहे हैं, उसमें गालियाँ हैं। एक बाढ़ पीड़ित के मुँह से अगर ऐसी कुछ बातें निकल भी गई तो वह उसके दर्द की पहचान है। परिस्थिति ही ऐसी है कि अब हमें उसके भावों को समझने की ज़रूरत है, फ़ैसला सुनाने की नहीं। आप भी इस वीडियो को देख कर सुनिए और समझिए कि बिहार में ऐसी त्रासद स्थिति भला आती ही क्यों है?
उस व्यक्ति ने यही पूछा कि इसी पटना में 200 वर्ष पहले पानी नहीं लगता था लेकिन अब ऐसी स्थिति कहाँ से आ गई है? उसने मीडिया से लेकर सेलेब्रिटीज तक पर आरोप लगाए हैं कि वे सभी बिहार के लिए पक्षपात कर रहे हैं क्योंकि बाकी राज्यों में बाढ़ आने पर उनकी आँखों में आँसू आते हैं लेकिन बिहार के लिए किसी के मन में कोई संवेदना नहीं।
वापस उस वीडियो की बात करें तो उसमें उस व्यक्ति ने दोष बिहारियों का ही बताया है क्योंकि वे वोट ऐसे ही नेताओं को देते हैं, जो काम ही नहीं करते। उसका कहना है कि ट्वीटर खँगालने पर उसे किसी भी बुद्धिजीवी का सेलेब्रिटी के एक ट्वीट तक नहीं दिखा, जिसमें बिहारियों के लिए संवेदना या मदद से जुड़ा कोई भी पोस्ट नहीं दिखा। बाढ़ आती है और होता क्या है? राहत सामग्री के नाम पर करोड़ों का घोटाला। अब देखना यह है कि भीषण आपदा झेल रहे बिहार में उम्मीद की किरण कब लौटती है?