कल (गुरुवार, 24 अक्टूबर, 2019 को) पहले रुझान आने पर बैकफुट पर जाते दिख रहे हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर जहाँ 24 घंटे बाद सरकार बनाने को लेकर लगभग आश्वस्त दिख रहे हैं, वहीं महाराष्ट्र में आसान लगने वाली राज्य के निवर्तमान मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की राह रातों-रात मुश्किल हो गई है।
कल ही महाराष्ट्र में भाजपा सरकार के लिए मुश्किलें तब दिखनीं शुरू हो गईं थीं जब पता चला कि कद्दावर भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री रहे गोपीनाथ मुंडे की विरासत और विधानसभा सीट फडणवीस सरकार की मंत्री रहीं पंकजा मुंडे के हाथ से छिटक कर उनके चचेरे भाई धनंजय मुंडे के हाथ में चली गई है। राज्य की फडणवीस सरकार के कुल 8 मंत्री विधानसभा लौटने का जनादेश पाने में नाकाम रहे हैं। इसके अलावा फडणवीस के खुद के ‘घर’ और गढ़, और भाजपा के पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दुर्ग, नागपुर में भी भाजपा को लगभग आधी सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था।
हालाँकि, अगर आँकड़ों में देखें तो अभी भी भाजपा और शिवसेना का गठबंधन बड़े आराम से बहुमत के लिए ज़रूरी 145 के आँकड़े के पार दिख रहा है, लेकिन शिवसेना ने साफ़ कर दिया है कि वह भाजपा से और दबने वाली नहीं है।
शिव सेना के मुखपत्र सामना में आज के सम्पादकीय में विधानसभा नतीजों की जो समीक्षा है, उससे दिवंगत बाला साहेब ठाकरे और उद्धव ठाकरे की भगवा पार्टी का रुख स्पष्ट है। सामना के मुताबिक यह जनादेश कोई “महा जनादेश” नहीं है। यह उनके लिए सबक है जो “सत्ता की मद में चूर” हैं। सामना में शिव सेना ने यह भी कहा है कि इस जनादेश ने वह ग़लतफ़हमी भी दूर कर दी कि चुनाव जीतने का रास्ता दल बदल की इंजीनियरिंग करना और विपक्षी पार्टियों को तोड़ना है।
एक तरफ उद्धव ठाकरे भाजपा पर दूसरे दलों में दल बदल कराने का आरोप लगा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर देवेंद्र फडणवीस चुनावी नतीजों का ठीकरा भाजपा के ही बागियों के सर फोड़ने में जुटे हैं। टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने उनके हवाले से दावा किया है कि भाजपा और गठबंधन को नुकसान कॉन्ग्रेस और राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी के विपक्षी गठबंधन यूपीए से कम हुआ है, अपने बागियों के चलते अधिक हुआ है।
उनका दावा है कि 15 बागियों से वह बातचीत कर रहे हैं, और उन्हें वे जल्दी ही भगवा खेमे में लौटा लाएँगे। अगर वे ऐसा कर ले जाते हैं, तो न केवल भाजपा की शिव सेना पर निर्भरता घट जाएगी, बल्कि शिव सेना के लिए उस समय गठबंधन छोड़ने का औचित्य समझाना मुश्किल हो जाएगा जब बागी भी भाजपा में लौटने लगे हैं।