देश के नंबर वन अभियंता क्रोधित हैं, कहते हैं कि जी लगाकर उन्हें सम्बोधित नहीं किया गया, यह धृष्टता है। अब कोई अभियंता जी को नाम लेकर ऐसे सम्बोधित करेगा कि जैसे उसके घर में बाप-भाई या कंपनी में मैनेजर-मालिक न हो तो बुरा लगेगा ही। फिर ऐसी बातचीत में से जी उचट जाए और कोई जी भर के मन की भड़ास निकालने लग जाए तो दोष क्यों देना? वैसे भी जो जी लगाकर बात न करे उससे क्या ही मुँह लगाना?
बात तो उन से ही की जानी चाहिए जिनका जी आपमें लगा हो और आपका जी जिनमें लगा हो। जब दोनों के जी मिल जाएँ तो तो जी भर के बातें की जा सकती हैं। नहीं तो जी उमछाने लगता है। वो लोग कितने प्रिय लगते हैं जो जी-जी कर के बात करते हैं और जो जी के अलावा कुछ नहीं बोलते वो तो लाड़ले हो जाते हैं। फिर बात वही होनी चाहिए जो जी को भाए। जैसे अभी पार्टी का जी जिस विषय पर बात करने का हो तो उस विषय की ही बात की जाए। इधर-उधर की बात की भी जाए तो लौटकर उस विषय पर आ जानी चाहिए। बात वैसे ही हो जैसे दो प्रियजन बात कर रहे हों।
“हमारे मोहल्ले की समस्याओं पर ध्यान दीजिए।”
“चलो प्रिये! मोहल्ला क्लिनिक की बात करें।”
“देखिए, लोगों को ऑक्सीजन की कमी हो रही है।”
“चलो प्रिये! मोहल्ला क्लिनिक की बात करें।”
“आप इतना पलटते क्यों हैं?”
“वो देखो अमरीका वाले मोहल्ला क्लिनिक देखने आ रहे हैं। चलो प्रिये! मोहल्ला क्लिनिक की बात करें।”
“अच्छा! ये आपके स्वास्थ्य मंत्री पर आरोप क्यों लग रहे हैं?”
“चलो प्रिये! मोहल्ला क्लिनिक की बात करें।”
“देखो वो जेल जा रहे हैं।”
“लेकिन हमारा हेल्थ मॉडल वर्ल्ड में नंबर वन है, चलो प्रिये! मोहल्ला क्लिनिक की बात करें।”
“आपके राज में कोई नया अस्पताल नहीं बना, आपका वादा और दावा झूठ लग रहा है।”
“चलो प्रिये! हैप्पीनेस क्लास की बात करें।”
“देखो वो आपके स्वास्थ्य मंत्री जेल चले गए हैं।”
“चलो प्रिये! शिक्षा मॉडल की बात करें।”
“लेकिन स्वास्थ्य मंत्री?”
“हमारा शिक्षा मंत्री दुनिया का बेस्ट शिक्षा मंत्री है।”
“आपके राज में नलों में पानी नहीं आ रहा।”
“चलो प्रिये! क्लासरूम की बात करें।”
“आपके राज में नाले उफान पर हैं, बसें डूब जाती हैं।”
“चलो प्रिये! स्कूल की बात करें।”
“वो स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी की बात की थी वो भी नहीं बनी, आप तो कहते थे कि बनवा दी।”
“चलो प्रिये! स्कूल को नंबर वन बनाने की बात करें।”
“आपके स्कूलों का रिजल्ट बिगड़ रहा है।”
“हमारे पास दुनिया का बेस्ट शिक्षा मंत्री है। चलो प्रिये! स्कूल में लगे टाइल्स की बात करें।”
“स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं, जो हैं उनको वेतन नहीं मिल रहा।”
“लेकिन बिजली तो मुफ्त मिल रही है न? मिलनी चाहिए कि नहीं मिलनी चाहिए? चलो प्रिये!, हम तुमको स्कूल दिखा कर लाते हैं।”
“अच्छा ये बताओ आपके शिक्षा मंत्री के बच्चे खुद आपके स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ते।”
“सबको मुफ्त शिक्षा मिलनी चाहिए। चलो प्रिये! फ्री शिक्षा की बात करें।”
“आप तो अटक गए हैं। अच्छा, आपके यहाँ शराब एक पर एक फ्री क्यों मिल रही है?”
“हम कट्टर ईमानदार हैं। हम शिक्षा की बात कर रहे हैं आप शराब की।”
“हाँ वो ठीक है, लेकिन आपके यहाँ शराब मामले में कुछ घोटाला हुआ है।”
“हमारे शिक्षा मंत्री दुंनिया में बेस्ट हैं, दुनिया भर से लोग स्कूल देखने आते हैं।”
“आते तो हैं लेकिन अभी बात तो शराब की हो रही है। शिक्षा मंत्री ही आबकारी मंत्री हैं। उनको जवाब देना चाहिए न।”
“हाँ तो शिक्षा के बारे में पूछिए।”
“लेकिन आबकारी मंत्री होने के नाते वो जवाब नहीं देंगे क्या?”
“नहीं, शिक्षा मंत्री होने के नाते देंगे।”
“हम आपसे शराब की बात कर रहे हैं, आप शिक्षा की बात क्यों बीच में ला रहे हैं।”
“शराब की बात भी कोई करता है क्या? शिक्षा सबका अधिकार है।”
“लेकिन जहाँ घोटाला हुआ प्रश्न तो वहाँ का पूछा जाएगा न?”
“हमने दिल्ली को शिक्षा में नंबर वन बनाया है। दिल्ली को हर क्षेत्र में पच्चीस साल में नंबर वन बना देंगे।”
“पच्चीस साल तो न हम रहेंगे न आप, आप अभी का जवाब क्यों नहीं देते। वो देखिए, आपके शिक्षा मंत्री पर छापा पड़ गया।”
“लेकिन न्यूयॉर्क टाइम्स में खबर छपी है वो देखिए। कितना मुश्किल होता है उधर खबर छपवाना। यह सब इसलिए हुआ कि हमारे पास दुनिया का नंबर वन शिक्षा मंत्री है।”
“मतलब वो खबर आपने छपवाई?”
“छपी तो है! न्यूयॉर्क टाइम्स, कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। देखना हमारे स्कूल अब न्यूयॉर्क में भी खुलेंगे।”
“वो खबर तो लगता है आपके ही आदमी ने छापी है, तस्वीरें भी गलत है। उधर देखिए आपके शिक्षा मंत्री के घर सीबीआई बैठी है।”
“नहीं, आबकारी मंत्री के घर बैठी है। शिक्षा मंत्री के बारे में न्यूयॉर्क टाइम्स में खबर छपी है वो देखिए। “
“पर वो तो एक ही आदमी हैं!”
“नहीं, सीबीआई हमारे शिक्षा मंत्री को उठा कर नहीं ले जा सकती, चाहे तो आबकारी मंत्री को उठा ले जाए। शिक्षा मंत्री के बारे में न्यूयॉर्क टाइम्स में छपा है।”
“लेकिन आदमी तो एक ही है।”
“हाँ तो! उसमे से आबकारी वाला जो है, सो सीबीआई ले जाए।”
“कैसी बातें कर रहे हैं?”
“हम अपने देश को नंबर वन बनाएंगे।”
“कैसे नंबर वन बनाएँगे? वो शराब वाले मामले में जवाब तो दीजिए?”
“हम दुनिया को नंबर वन बनाएंगे।”
“हैं? दुनिया को?”
“हम रुकने वाले नहीं हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स देख लीजिए देखिए क्या खबर छपी है।”
“खबर तो छपी है, लेकिन क्या अब शिक्षा मंत्री भी जेल जाएँगे? “
“ये सब हमारे खिलाफ साजिश है, क्योंकि हम दुनिया को नंबर वन बनाना चाहते हैं, इसलिए पहले हमारे नंबर वन स्वास्थ्य मंत्री को जेल में ड़ाल दिया, फिर शिक्षा मंत्री के घर छापा मारा है और अब देखिए, परिवहन मंत्री पर भी छापा मारने की तैयारी कर रहे हैं।”
“लेकिन परिवहन मंत्री की तो बात ही नहीं की?”
“देखो बदतमीजी से बात कर रहे हो, जी लगाकर बात करो। न्यूयॉर्क टाइम्स क्यों नहीं देखते। “
“ऐसा लगता है आपके ही किसी कार्यकर्ता ने खबर छापी है। वो देखिये शिक्षा मंत्री बौखलाए घूम रहे हैं।”
“तमीज से बात करो। बड़ों से ऐसे बात की जाती है?”
“लेकिन जो पूछ रहे हैं, वह तो बता दीजिए कि आप इन मंत्रियों पर कोई एक्शन कब लेंगे?”
“जी लगाकर बात करो।”
“अरे?”
“जी लगाकर बात करो।”
“लेकिन… “
“जी लगाकर बात करो।”
“जी! अब तो कह दीजिए यह सब क्या हो रहा है जी?”
“चलो प्रिये! दुनिया को नंबर वन बनाने की बात करें। प्रिये! मिसकॉल करें।“