पत्रकार दीप देसाई हाँफते-काँपते हमारे घर में प्रविष्ट हुए, और उन्होंने धप्प से दरवाजा बंद किया। हमने सम्मान से उनके समक्ष पानी का गिलास और ओल्ड मोंक का क्वार्टर प्रस्तुत किया। जिस कुशलता से राजनैतिक विश्लेषक गठबंधन कराते हैं, उसी निपुणता से उन्होंने पैग बनाया। साँस और शराब पर नियंत्रण पाते हुए बोलें- लाल सलाम!
भाई समाजवाद को समर्पित थे, और समाजवाद के हवन को उन्होंने अपने नाम का ‘राज’ और उपनाम का ‘सर’ समर्पित कर दिया था और पूर्णतया सर्वहारा पत्रकार हो गए थे। समाजवाद की सीढ़ी चढ़ कर मसाजवाद की दुनिया में प्रवेश करने को प्रयासरत थे।
दो घूँट मार कर उन्होंने अपने बैग को दो थपकी दी “काम की चीज़ है।” “क्या है?” एक घूँट और लेकर दीप भाई बोलें:
“इंटरव्यू, युवा नेता का।”
“पर हाँफ काहें रहे हैं?”
“हम दफ़्तर से चुरा के भागे हैं।”
“तुम तो वहीं काम करते हो, ऐसे घबराए हुए क्यों लग रहे हो?”
दीप भाई ने उठ कर खिड़की बंद की और कुर्सी पर उकड़ूँ बैठ गए। फुसफुसा कर बोले:
“इसको दबाने का निर्देश हुआ था, राष्ट्रहित में। हम ट्रांसक्रिप्ट चुरा लाए।”
“पर घबरा क्यों रहे हैं? आप तो पत्रकार हैं।”
“अरे हम सर्वहारा पत्रकार हैं। हमारे वर्ग पर कभी बिहार में गोली चल जाती है, कभी हम को उत्तर प्रदेश में जानकी बना कर अग्निपरीक्षा मे उतार दिया जाता है। हम वह नहीं हैं बाबू जिनके टूटे एप्पल फ़ोन को देख कर महिला पत्रकारों के मन मे मरोड़ नहीं उठती है।
“ख़ैर, ऊ सब आप नहीं बूझेंगे। आप ये मूल साक्षात्कार पढ़ें और बताएँ कि इसका ठीक दाम क्या लग पाएगा?” यह कह कर दीप भाई ने पढ़ना प्रारम्भ किया जो आम जनता के आनंद हेतु शब्दश: प्रस्तुत है:
प्रश्न: डिम्पल बाबा, आप को ऐसा क्यों भान होता है कि इस चुनाव मे आप विजयी होने वाले हैं।
उत्तर: यह आपने कैसा प्रश्न कर दिया?
पत्रकार: सर, क्रोधित ना हों। प्रकाशन के सेठ जी द्वारा तय किए प्रश्नों में पहला प्रश्न यही था। यह पत्रकारिता की मर्यादा और ग़ल्ले मे गए धन के अनुसार ही है।
नेता: देखिए, सर मत बोलिए। कॉल मी राउल। आप चाहें तो हमारी माता जी को सर कह सकते हैं। हमें सर बोल कर हमारी चिरयुवा वाली भूमिका को चोट पहुँचाएँगे तो हम आपके मालिक बेदमी पुड़ी जी से शिकायत कर के आपको बीट पत्रकार बनवा कर जहानाबाद भिजवा देंगे। फिर आपसे शहाबुद्दीन जी फरिया लेंगे।
पत्रकार: ओके, राउल आप चुनाव में क्यों जीतेंगे?
डि.बा. (डिम्पल बाबा): कल रात को जब हम सुबह उठ गए थे तो हमने इस पर विचार किया। इट ईज़ अ डम्ब क्वेश्चन। हमारे गाल पर डिम्पल है, मोदी जी के फ़ेस पर दाढ़ी; हमारा क्लीनशेव डिम्पल युक्त गाल राजनैतिक पारदर्शिता बताता है।
हमारे हिंदी के ट्यूटर थरूर जी के अनुसार चोर कि दाढ़ी में तिनका होता है। चूँकि, मोदी जी की दाढ़ी है, वहाँ तिनका होने की सम्भावना हमारे डिम्पलयुक्त मुख से अधिक है। तालियाँ।
(पत्रकार, सम्पादक एवम् कैमरामैन का डिम्पल बाबा के उत्तर को तालियों द्वारा अनुमोदन)
प्रश्न: क्या आपको सच मे लगता है कि राफ़ेल मे घोटाला हुआ है?
डि. बा. : देखिए, इतिहास की ओर देखिए। भारत के इतिहास मे हमारे परनाना जी से महान व्यक्तित्व नहीं हैं इस पर तमाम बुद्धिजीवी एक मत हैं। श्रीराम ने भी इस संदर्भ मे कहा है कि वे मर्यादा पुरूषोत्तम नेहरू जी की प्रेरणा से बने।
पत्रकार: सर, वो भगवान राम ने नहीं, रामचंद्र गुहा ने कहा है।
डिबा: श्री गुहा भी कम मर्यादापुरूषोत्तम नहीं हैं। मुद्दा यह है कि परनाना नेहरू ने जीप स्कैम के समय से सैनिक सौदों मे अहिंसक परिवारों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने की परंपरा रखी।
अंकलों द्वारा “बेटा, आगे क्या सोचा है” आंटियों द्वारा शादी के मंडप पर “गुड न्यूज़ कब दे रही हो” की भाँति ही रक्षा सौदों में घोटाले की अमर परंपरा रही है। आज यदि कोई यह कहता है कि रक्षा सौदे में घोटाला नहीं हुआ है, अपने आप मे घोटाला है। आरोप हमनें लगा दिया है, आप साक्ष्य बनाएँ।
सीनियर पत्रकार ने डिबा जी के हमनाम राउल विफल को आग्नेय दृष्टि से देखा, और डिबा जी से कहा-
“सर, हम आपके जटायु बन कर साक्ष्य जुटाएँगे। कितने का घोटाला बनाना है?”
“दाम कितना लगाओगे? प्रतिलाख करोड़ के हिसाब से बेदमी जी को बोलो रेट कार्ड युवा कार्यकर्ता मोतीलाल वोरा जी को दें।”
पत्रकार : राउल जी, क्या आप विदेशी नागरिक हैं।
(डिबा आँखें बंद कर के विचारों मे खो गए। कल का माल बहुत पोटेंट था।)
डिबा: जात ना पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान। देखिए भाईयों, क्या आपको वाक़ई लगता है महापुरूष आप जैसे टुच्चे मनुष्यों की भाँति पैदा होते हैं। महामानव अवतरित होते हैं। महामानव मनुष्य जाति को प्रकृति का वरदान हैं और इन्हें राष्ट्रीयता की सीमाओं मे नहीं बाँधा जा सकता है। ऐसे बेवक़ूफ़ाना प्रश्न उठाने वाले प्रतिद्वंद्वियों के लिए मेरा एक ही उत्तर है कि यदि डिबा भारतीय होकर भी ब्रिटिश हैं और इतालियन होकर भी भारतीय हैं तो इसका कारण है महिला सशक्तिकरण। जो लोग हमारी नागरिकता पर प्रश्न उठा रहे हैं वे महिला विरोधी हैं। हमारी सरकार आते ही हम ऐसे लोगों को देख लेंगे।
पत्रकार: परंतु इसका महिलाओं से क्या संबंध है?
(डिबा ने नेत्र बंद कर के विचार किया और बोले।)
डिबा: देखिए भाईयों, हमारी दाढ़ी नहीं है। रवि किशन जैसी कॉम्यूनिस्ट महिलाओं को छोड़ दें तो महिलाओं की भी दाढ़ी नहीं होती। हमारे जैसे व्यक्ति पर प्रश्न उठाना हर उस व्यक्ति पर प्रश्न उठाना है जिसका अस्तित्व दाढ़ी मूँछ से वंचित है। चुनाव को मोदी जी ने दाढ़ी और क्लीन शेव में बाँटा है।
पत्रकार: सर वो रविकिशन नहीं है।
डिबा: यार, वो जो भी हैं, किशन या कृष्णन, आप समझ गए ना। मुद्दा दाढ़ी प्रमुख है इस चुनाव में। राष्ट्रीयता, भ्रष्टाचार इत्यादि तो मोदी ने बना रखा है। प्रश्न यह है कि राजनेताओं को जनता को मूर्ख बनाने का और जनता का शेव बनाने का अधिकार है या नहीं?
वरिष्ठ पत्रकार ताड़ गए कि बाबा उखड़ रहे हैं। बोलें-
“बाबा ठीक कह रहे हैं। ऐसे डिम्पल युक्त गाल वाला व्यक्ति झूठ बोल ही नही सकता है। विफल जी का अनुभव कम है सो भटक जाते हैं। आगे पूछो विफल।”
पत्रकार: बाबा, आपने कहा था कि दलित कानून मोदी जी ने हटा दिया। क्या वह झूठ था?
डिबा: आपने बहुत अच्छा प्रश्न पूछा। इसका उत्तर यह है कि मैं आपको पूछता हूँ कि क्या यह झूठ है।
बाबा के बग़ल में बैठा तोता बोला – झूठ है, झूठ है।
उत्साहित हो कर विफल जी बोलें- बाबा, वो तो झूठ था।
बाबा के सुंदर मुख पर वेदना की रेखाएँ खिंच आईं, पर वे कुछ ना बोले।
वरिष्ठ पत्रकार ने कनिष्ठ को अगला प्रश्न पूछने को कहा।
पत्रकार : आपने कहा कि मोदी जी ने कानून बनाया कि आदिवासियों को गोली मारी जा सकती है। क्या वह झूठ था?
तोता फिर बोला- झूठ था, झूठ था।
(बाबा तोते को देख मुस्कुराए, बोलें,
“आपके प्रश्न का उत्तर है कि क्या वह झूठ था?”
तोते से उत्साहित होकर विफल जी फिर बोले- झूठ था।
डिम्पल बाबा तमतमा कर खड़े हो गए। एसपीजी से बोलें, इस धृष्ट पत्रकार को जहाज से बाहर फेंक दो।
विफल जी घबरा गए, बोले, ”क्षमा प्रभु, यही तो तोते ने कहा पर आपने उसे कुछ न कहा।”
वरिष्ठ पत्रकार ने समझाया, “देखो, कनिष्ठ आज मेरे पास पंचशील मे बँगला है, बैंक बैलेंस है, सोनिया जी जैसी माता हैं और मैं सफल हूँ क्योंकि मैं तोते को देख उत्साहित नही होता हूँ। जब पंख ना हों तो सत्य बोल कर हवा में नही उड़ना चाहिए, और जब फंडिंग ना हो तो पत्रकार को अर्नब गोस्वामी या बरखा दत्त नहीं बनना चाहिए।”
इसी ज्ञान के साथ साक्षात्कार समाप्त हो गया। कह कर दीप भाई थमे। अब तुम मेरी कहीं डील करा दो ताकी मैं राष्ट्रहित में इस साक्षात्कार को दबा कर किसी पॉश इलाक़े मे कोठी प्राप्त करूँ और महान पत्रकार के नाम से जाना जाऊँ। जब गर्मियों में उत्तर प्रदेश में चुनाव हों तो कश्मीर से रिपोर्ट करूँ।