जैश-ए-मोहम्मद, तालिबान, अलक़ायदा, लश्कर-ए-तैयबा, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, लश्कर-ए-झंग्वी, हिज़्ब-उल-मुज़ाहिदीन के अलावा और भी नमूने हैं जो पहले से ही पाकिस्तान के युवाओं की एक बड़ी संख्या को जन्नत का लालच देकर कश्मीर भेज रहें और भारतीय सेना उन्हें सीधा जहन्नुम। अब पाकिस्तान के नए वज़ीरे आला जनाब इमरान खान साहब नए पाकिस्तान का वादा कर अपने ही युवाओं की खाल में RDX भरवा रहें हैं और वो भी सरकारी तंज़ीमों के साए में।
एक ऐसा देश जो दूसरों के दान और आतंक की खेती पर ज़िंदा है, जहाँ सामान्य जीवन जीना भी दूभर है। जहाँ अगर भारत पानी रोक दे तो लोग प्यास से तड़प उठें। खाने-पीने के सामानों और व्यापार पर आयात शुल्क बढ़ा देने से ही पाकिस्तान की जनता विद्रोह और गृहयुद्ध छेड़ने के मूड में है। वह पाकिस्तान हर बात पर युद्ध की बात करे तो तुग़लक़ याद आता है। इमरान खान साहब फ़िलहाल पाकिस्तान के नए तुग़लक़ ही है।
एक तरफ़ आतंकवाद, चापलूसी, फ़िरकापरस्ती और भिखमंगई का अफ़ीम पीकर पाकिस्तान युद्ध की तैयारियों में व्यस्त नज़र आ रहा है। इसके लिए कहीं अस्पताल खाली करवा रहा है तो कहीं क़मर बाजवा से लम्बी-लम्बी युद्ध की धमकियाँ दिलवा रहा है। ये काफी नहीं लगा तो वहाँ के पत्रकारों को भी स्टूडियो से मोर्चा संभालने के लिए चने की झाड़ पर बैठा दिया गया है। माशाअल्लाह! एक मोहतरमा तो इतनी उतावली हो गई कि स्टूडियों से ही मिसाइल छोड़ने लगीं। पूरे जी जान से पिछली तबाही और इंडियन आर्मी के घर में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक को भूलाकर उन्माद का नया पोस्ता बो रहीं हैं।
लगता है मोहतरमा Terrorist ट्रेनिंग कैंप से सीधे न्यूज़ रूम पहुंची है!!???pic.twitter.com/wbobNW1KSO
— Rishi Bagree ?? (@rishibagree) February 20, 2019
अब इन मोहतरमा को कौन याद दिलाए कि 1965, 1971 और 1999 में क्या हुआ था। भूल गई कि कैसे उनके लख्ते-जिगर मुल्क के दो टुकड़े हुए थे। कैसे एक लाख पाकिस्तानी घुटने टेक धूल चाट रहे थे। वो घाव लगे थे कि आज भी जब हवाएँ पाकिस्तान के ख़िलाफ़ चलती हैं तो साँसे फूलने लगती हैं पाकिस्तान की। जिस पाकिस्तान में ज़म्हूरियत कभी-कभार ही कुछ दिनों के लिए ठहरती हो, वो पाकिस्तान अगर लोकतंत्र और ज़म्हूरियत की बात करे तो मुर्दे को भी हँसी आ जाए। पर जहाँ गधों की फ़ौज़ ज़्यादा हो वहाँ ‘लादी’ से ज़्यादा कुछ नज़र भी नहीं आता।
खैर, अब पाकिस्तान का रायता इतना फ़ैल चुका है कि उसके कारनामों पर अब केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया सवाल कर रही है, सबूत बोल रहे हैं कि उरी से लेकर पुलवामा तक, संसद से लेकर पठानकोट तक सबका ज़िम्मेदार सिर्फ़ पाकिस्तान ही है।
लेकिन, अगर बात समझ आ जाए तो तुग़लक़ काहें का, भुखमरी की शिकार जनता को युद्ध का चरस बेचना उनका नया शगल नहीं है। जो दाने-दाने को तरस रहा वो पाकिस्तान करे भी तो क्या?
वैसे पाकिस्तान की सर्जिकल स्ट्राइक से इस कदर जली है कि अभी तक भभा रहा होगा। और अब पुलवामा के बाद इमरान को फिर ये डर सताने लगा कि कहीं भारतीय सेना उनकी लंका न लगा दे। बाहरहाल, ख़ौफ़ इस क़दर हाई है कि बाजवा ख़ुद सीमाओं का दौरा कर रहे हैं और सर्जिकल स्ट्राइक के बाद की तबाही के बाद पाकिस्तान आतंकी संगठनों को कब्ज़े में लेने के नाम पर उन्हें सुरक्षा मुहैया करा रहा है, यहाँ तक कि अपने हाकिमों को वहाँ नियुक्त कर रहा है ताकि किसी तरह से बस ये माहौल ठंडा हो जाए वरना पता नहीं अब उसे और क्या-क्या बेचना पड़े, देश तो पहले से ही गिरवी है चीन के यहाँ।
महाशय इमरान ख़ान आए तो थे ‘नया पाकिस्तान’ का नारा लेकर। चुनाव के दौरान उन्होंने पाकिस्तान द्वारा विदेशी देशों से आर्थिक मदद माँगे जाने को भी मुद्दा बनाया पर कमबख़्त चुनाव बाद ख़ुद ‘कटोरा लेकर भीख माँगने’ तक की नौबत आ गई। हालत तो इतनी पतली हो गई कि रोजमर्रा के ख़र्चे के लिए भी बर्तन-भाड़े, कार-वार, भैंस-बकरी और यहाँ तक कि बालों (हेयर) के साथ गधे भी बेचने पड़े।
Difference of #HindustanVsPakistan When we are touching the Sky with Development, Pakistan is Happy because their Donkey business is doing well,even they made separate hospital, ? Guys Whole Pakistan is Donkey. pic.twitter.com/YnjLIKFw7Y
— Akshay Singh (@Akshaysinghel) February 23, 2019
और अब गधों की बिक्री से आतंक का पेट भरने वाला पाकिस्तान युद्ध-युद्ध की चिपों-चिपों लगाए हुए है। बात कुछ पच नहीं रही। अमां मियाँ पाकिस्तान युद्ध की सोचने से पहले एक बार अपनी पतलून तो ठीक कर लेते, तुम्हारी नंगई जब पूरे विश्व में साफ दिखने लगी तो बिलबिलाहट और खिसियाहट लाज़मी है पर इसे दूरदर्शिता का नाम दे देश को युद्ध के मोर्चे पर खड़ा कर देना बेवकूफी है।
वैसे इमरान साहब की दूर की नज़र बहुत तेज़ है, जनाब इतने दूरदर्शी हैं कि सत्ता में आते ही पहले लक्ज़री कारें बेच दी और कमाया 15 करोड़, ख़र्च कर दिए आतंकी लॉन्च पैड बनाने में और अब जब सऊदी अरब के सुल्तान आए तो मियाँ उनके सत्कार के लिए चार दिन के कारों के किराए के रूप में ही 7 करोड़ देने पड़ गए। अब नंगा नहाए क्या निचोड़े क्या, आमदनी अठन्नी ख़र्चा रुपइया वाली बात हे गई। भाई जान इमरान की दूरदर्शिता के कायल तो लोग उसी दिन हो गए थे जब इमरान ने तीन शादियों के बाद भी शादी का मुद्दा उलझाए ही रखा।
मन्ने तो लग रिया, जैसे-जैसे भारत एक-एक कर कड़े क़दम उठाते हुए पाकिस्तान को घेर रहा है- चाहे पहले पाकिस्तान से ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन‘ का दर्जा वापस ले लेना हो या अब सरकार ने अपने हिस्से का रावी, ब्यास और सतलुज के पानी को पाकिस्तान को देने की बजाय उस से यमुना को सींचने की योजना या उसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में घुटने टेकने को मजबूर करना। बेचारा जो पाकिस्तान पहले से ही आर्थिक संकट के दौर से गुज़र रहा हो, कोई उसकी पूँछ के साथ टेटुआ भी दबा दे तो वह अपनी कराहटों को भी चीत्कार न बनाए तो क्या करे!
कहते हैं ना कुत्ते की पूंछ आसानी से सीधी नहीं होती तो भला पाकिस्तान इतनी आसानी से कैसे सुधर जाए उम्मीद करना भी बेमानी है। पर भारतीय होते बड़े आशावादी हैं पहले हम किसी पर वार नहीं करते पर अगर किसी ने गुस्ताख़ी करने की ज़ुर्रत की तो घर में घुसकर भी ठोक आते हैं। अब पाकिस्तान को सर्जिकल स्ट्राइक के बाद इस बात का कोई सबूत भी नहीं चाहिए।
दोष इसमें पाकिस्तान का नहीं वहाँ के नेताओं का ज़्यादा है जो अभी तक फिदाइन और आतंक पर ही अटके हुए हैं जबकि दुनिया चाँद पर पहुँच गई है। जैसे ही नई पीढ़ी जवान हो शिक्षा, रोज़गार की बात करे, उसे शिक्षा के नाम पर जेहादी तालीम दे, बम बाँधकर जहन्नुम भेज दो उन 72 काल्पनिक हूरों के पास, सिसकने दो उनके परिवारों को, और उन्हें भी ज़ख्म दो यतीम करो जिनका इस पूरे जेहादी व्यापार और आतंक से कुछ लेना-देना नहीं है।
पुलवामा इसी बात का ताज़ा दस्तावेज़ है। जैश-ए-मुहम्मद के सीधे क़बूलनामे के बाद भी, उसके सरगना मसूद अज़हर को संरक्षण जारी है। पहले तो पाकिस्तान ने सोचा की शायद इस बार भी मामला यूँ ही टल जाए तो पहले आनाकानी करता रहा और अब जब लगा कि अब आका चीन भी इस बार कुछ नहीं कर सकता तो पहले से ही हुँआ-हुँआ शुरू कर दिया।
भारतीय शेरों का खौफ़ इतना ज़्यादा है कि उधर पाकिस्तान अपनी भूखी प्यासी जनता में भी हवा भर युद्ध का गुलदस्ता बाँट रहा। शायद भूल गया है कि भारत अगर युद्ध पर आया तो इस बार उसके चड्ढी बनियान भी बिक जाने हैं।
फिर भी जहाँ बचपन से ही जन्नत और ज़ेहाद का बीज बोया जा रहा हो वहाँ यूँ बार-बार खुलेआम युद्ध का उन्माद छेड़ अपनी आवाम की रगों में युद्ध का अफ़ीम बोना कोई नई बात नहीं। आख़िर कब तक 72 हूरों की कहानी और काफ़िरों के गुनाहों की शिक्षा देकर पाकिस्तान में आतंक का खेल यूँ ही चलता रहेगा? कब तक शांति को बनाए रखने वाला इस्लाम लगभग हर आतंकी संगठन का मज़हब होगा? सवाल बड़ा तो है पर सवाल ही रहेगा। युद्ध तो छोड़िए अभी भारत ने कुछ दिनों के लिए मात्र व्यापार रोक दिया तो उधर टमाटर के भी लाले पड़ गए।
जहाँ सेना सत्ता पर हावी हो वहाँ जहन्नम सी ज़िन्दगी को जन्नत के रैपर में ज़्यादा दिन तक बेच पाना संभव नहीं है। फसलों की जगह बंदूके बोने वाला पाकिस्तान कब तक यूँ ही अपने यहाँ के मासूमों की नशों में ज़ेहाद और छद्म युद्ध का ज़हर फूँककर उनकी ज़िन्दगी स्वाहा करता रहेगा, ये उसे कौन समझाए। उम्मीद है कि पाकिस्तान केवल ख़ुद को गीदड़ भभकियों तक ही सीमित रखे वरना इस बार किसी तुग़लक़ की वज़ह से पाकिस्तान कहीं दुनिया के नक्शे से ही न मिट जाए। इंशाल्लाह पाकिस्तान के हुक्मरानों को खुदा इतनी सद्बुद्धि दे। वरना भारत अब एक ऐसे मजबूत हाथों में है जो सेना के मनोबल को टूटने नहीं देगा, खदेड़ के मारेगा और गिनेगा भी नहीं।