जब कॉन्ग्रेस की तरफ़ से प्रियंका गाँधी के राजनीति में आने की बात का ऐलान हुआ था, तब सारी मीडिया ने उनके नाक की सीधाई से लेकर बालों के पेंचोखम तक पर लेख लिखे। उस समय का समझ में आता है क्योंकि उस समय प्रियंका गाँधी कॉन्ग्रेस के अंतिम तीर की तरह तरकश से बाहर निकाली गई थी। लेकिन, कल शाम जो हुआ, और आज जो होता रहा, वो भारतीय मीडिया के ‘स्वर्णिम दौर’ की अलग गाथा है।
काफ़ी दुःखद है कि तैमूर अली खान को भरे बाल्यावस्था में मीडिया ने, एक तरह से इस्तेमाल कर, छोड़ दिया। जब वो हाथ हिलाकर अभिवादन करना सीख ही रहा था कि मीडिया राम मंदिर, कन्हैया, बजट, सीबीआई और ममता जैसे बेकार के मुद्दों पर ध्यान लगाने लगी। वो तो अच्छा है कि तैमूर अभी बहुत छोटा है वरना वो इस उपेक्षा को बर्दाश्त कर पाता या नहीं, ये कहना मुश्किल है।
24 घंटे चलने वाले चैनलों और लाइव ब्लॉग चलाने वाले वेबसाइटों के सामने भी कंटेंट के न होने पर बड़ी दिक्कत हो जाती है। ऐसे में प्रियंका से जुड़ी काम की ख़बर मिल नहीं रही थी तो न्यूज़-18 की पल्लवी घोष कॉन्ग्रेस मुख्यालय पहुँच गई और उभरते हुए तमाम पत्रकारों के लिए एक मिसाल के तौर पर प्रियंका गाँधी के नए ऑफिस के दरवाज़े और नेम प्लेट की रिपोर्टिंग करने लगीं।
इसमें बहुत कुछ सीखने लायक है। जैसे कि, खलिहर होने पर खुद को कैसे व्यस्त रखा जाए; पार्टी में अपनी पहुँच बनाने के लिए किस स्तर तक जाया जाए; जहाँ ख़बर न हो, लेकिन एक्सक्लूसिव का आदेश हो तो क्या किया जाए आदि। इससे नए पत्रकार ये सीख ले सकते हैं कि जब प्रियंका के बाल, साड़ी, नाक और मुस्कुराहट से लेकर उनके दुर्गावतार और मोदी-मर्दनी की बातें खप चुकी हों तो आप एक दीवार पर लगे नेमप्लेट पर भी कैमरा ले जा सकते हैं।
Congress General Secretary for Uttar Pradesh east Priyanka Gandhi Vadra at the Congress Headquarters in Delhi. pic.twitter.com/e4yjVFRa3g
— ANI (@ANI) February 6, 2019
उसके बाद प्रियंका ने कार्यभार संभाला, गेट खोला, कुर्सी पर बैठीं, फिर हाथ बढ़ाकर क़लम निकाला, किसी को देखकर मुस्कुराई (मुस्कुराते हुए दाँत दिखे जो कि इंदिरा गाँधी जैसे थे), दो लोगों से बात की, फिर सर झुकाकर काम करने लगीं, जैसी खबरें चलीं जो कि तैमूर से मीडिया के प्रेम से 19-20 ही है।