Friday, November 22, 2024
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तुम देखोगे? हम दिखाएँगे…: लिबरलों, वामपंथियों के लिए दंगा साहित्य से उपजी एक कविता

सब याद रखा जाएगा अब! ये याद रहे जब तक हम हैं... न भूले हैं, न भूलेंगे, तुम कहते हो- ‘हम देखेंगे…’ दिल्ली दंगो की व्यथा सुनाती इस कविता को पढ़ें, सुनें औरों तक पहुँचाएँ।

तुम देखोगे?
हम दिखाएँगे!
क्या नेगी जी को देखा है
काटे होंगे जब दोनों हाथ
जब काटे होंगे दोनों पाँव
फिर फेंक दिया धड़ जलने को
भस्मीभूत हुए जब वो
पहचान नहीं पाए हम लाश
ये अंत्येष्टि जो तुमने की
ये याद रहे जब तक हम हैं
न भूले हैं, न भूलेंगे
तुम कहते हो- ‘हम देखेंगे…’

तो देखो न इन लाशों को
मुंशी की है, दिनेश की है
समझा दो उसकी बच्ची को
कि उनके बाबा अब कहाँ गए?
आलोक तिवारी का लड़का
जब ढूँढेगा उनको घर में
तब तुम कहना ‘हम देखेंगे…’
वो दूध की थैली लेने को
निकले थे अपने ही घर से
डेढ़ साल के बच्चे को
समझाना जा कर इस दंगे को
और तब कहना ‘हम देखेंगे…’

तुम देखोगे?
हम दिखाएँगे
अंकित शर्मा की नियति भी
उस परमपिता ने कैसी लिखी
दंगे हटवाने गया था वो
समझाने उनको गया था वो
ताहिर के घर में खींच लिया
छः लोगों ने फिर चाकू से
घंटों तक उन पर वार किया
एक हिस्सा नहीं बचा तन का
जो कटा नहीं, जो बच पाया
मन भरा नहीं, आँखें नोंचीं
आँतों को तुमने फाड़ दिया
वो देश का एक सिपाही था
तुमने नाले में फेंक दिया
ये याद रहे जब तक हम हैं
न भूले हैं, न भूलेंगे
तुम कहते हो- ‘हम देखेंगे…’

तुम कहते हो न देखेंगे
फिर देखो फैसल की छत पर
जो गुलेल बना कर रक्खा है
पेट्रोल बमों की शीशी को
क्यों वहाँ बिछा कर रक्खा है
एसिड की हजारों बोतल को
गंगाजल तुमने लिखा-कहा
अपने घर की महिलाओं से
हिन्दू भीड़ों पर फिंकवाया
हर 10-15वें छत पर से जब
हिन्दू के घरों पर जब सब ने
पेट्रोल की बारिश कर दी थी
तब देखा था क्या तुमने
जो अब कहते हो ‘देखेंगे’

तुम देखोगे?
हम दिखाएँगे
चाँद बाग में हिन्दू की
बच्ची ट्यूशन से लौट रही
छीने तुमने उनके कपड़े
नग्नावस्था में भेज दिया
वो बच्ची भगिनी थी मेरी
वो बहन हमारी भी तो है
वो मुझको राखी बाँधती थी
कैसे उसको मैं देखूँगा
जब पूछेगी वो मुझसे कि
‘भैया, ये मेरे साथ ही क्यों
क्या मेरा भी है इसमें दोष?’
क्या बोलूँगा उन बहनों से?
मैं चूक गया, मैं चूक गया…
उन बहनों की सौगंध मुझे
न भूले हैं, न भूलेंगे
ये याद रहे जब तक हम हैं
न भूले हैं, न भूलेंगे
तुम कहते हो- ‘हम देखेंगे…’

तुम देखोगे?
हम दिखाएँगे
राजस्थान का लाल रतन
जिसको तुमने गोली मारी
उसने तो माँ को बोला था
होली पर घर को आएगा
बिटिया है उसकी सिद्धि, कनक
और राम जो उनका बेटा है
तुम नजरें मिला क्या पाओगे
क्या तुम उनको ये बताओगे
कि शाहरूख ने सड़कों पर
जब धड़-धड़ गोली जलाई थी
कोई शाहरूख ही तो वो होगा
जिसकी गोली से रतनलाल
वीरगति को प्राप्त हुए
पत्नी पूनम को छोड़ गए
और बसते हैं बस यादों में
क्या उनको भी देखोगे?
ये याद रहे जब तक हम हैं
न भूले हैं, न भूलेंगे
तुम कहते हो- ‘हम देखेंगे…’

तुम देखोगे?
हम दिखाएँगे
लोकेन्दर की एक बिटिया थी
जो उन्हें सलाम भी करती थी
भाई जान भी जिसको कहती थी
उन भाईजानों ने ही जब
शिवानी के शादी मंडप पर
पेट्रोल बम फेंका होगा
पत्थर जब बरसाए होंगे
जब टाइल भी फेंकी होगी
क्या उसने तब सोचा होगा
कि ये मुझे भाई कहती थी?
रिश्तों पर थूका है तुमने
उन पर भी आग लगाई है
उसकी मेंहदी के हाथों पर
तुमने कालिख पुतवाई है
ये याद रहे जब तक हम हैं
न भूले हैं, न भूलेंगे
तुम कहते हो- ‘हम देखेंगे…’

तुम देखोगे?
हम दिखाएँगे
राहुल ठाकुर के पेट में जब
या राहुल सोलंकी की गर्दन में
ताहिर, फैसल के गुंडों ने
छत से गोली मारी होगी
क्या गंगा और जमुनी तहजीब को
ये बातें प्यारी होंगी?
इन तहजीबों के नाम पे अब
इन सेकुलर-सेकुलर बातों पर
अब मुँह में उल्टी आती है
जमुना को लील गए हो तुम
तुमने उसको बर्बाद किया
ये झाग जो उजले दिखते हैं
इससे भी छुपा न पाओगे
तहजीबों का जो हाल किया
तुम उसको बचा न पाओगे
ये नग्न सत्य सब सामने है
गंगा-जमुनी-सेकुलर-सेकुलर
ये नौटंकी अब बंद करो
और आँखें खोल के तुम देखो
तुमने ही कहा- ‘हम देखेंगे…’
लो देखो अब, लो देखो तुम

तुम देखोगे?
हम दिखाएँगे
तुम सब बुत उठवा क्या पाओगे
हम प्राण प्रतिष्ठा करते हैं
मिट्टी में प्राण भी भरते हैं
हर नवरात्रि पर दुर्गा को
अस्त्रों-शस्त्रों से भरते हैं
तुम कितने मंदिर तोड़ोगे?
हम रोज ही उनको बनाते हैं
आशीष शारदा का ले कर
लक्ष्मी को घर में पाते हैं
गणपति विशाल को देखो
शिव के विकराल को देखो
तुम देखो विष्णु अनंत रूप
बजरंगी के जीवंत रूप
तुम कितने बुत उठवाओगे
तुम कितने मंदिर ढाहोगे?
क्या-क्या मैं दिखाऊँ अब तुमको
तुम देख कहाँ कब पाओगे!

आजाद जो लब तुम्हारे हैं
कुछ बोल वो क्यों नहीं पा रहे हैं?
इन लाशों का दे दो हिसाब
बच्चों को दे दो तुम जवाब
रिक्शा वाले इमरान का गम
पंचर वाले जुबैर का गम
हमको भी है, तुमको भी है
लेकिन इन हिन्दू लाशों को
तुम देख नहीं क्यों पाते हो?
गोकुलपुरी की नाली तक
टहल के क्यों नहीं आते हो?

बिकती जमीर की किश्तों में
आँख गँवा दी क्या पहले?
फिर भी कहते हो ‘देखेंगे’
कब देखोगे… और वो कैसे?
ये हरा-हरा सा एक फिल्टर
जो तुमने चढ़ा कर रक्खा है
उससे भगवा छँट जाता है
हिन्दू गायब हो जाता है
दिखता है बस इमरान-जुबैर
अंकित-दीपक छुप जाता है
ओ वामपंथ के रखवाले
ओ लम्पट लिबरल तुम साले!
तुम क्या अब घंटा देखोगे
जब दिखा नहीं तुमको गुलेल
जब दिखा नहीं बोतल का तेल
जब दिखा नहीं हाथों में बम
जब दिखा नहीं हिन्दू का गम
तुम क्या अब घंटा देखोगे

तुम देखोगे?
हम दिखाएँगे
सब याद रखा जाएगा ना?
तो हम अब कौन-सा भूल रहे
तुम इन नारों को रटते रहो
हम लाशों को हैं याद रखे
अंकित, दीपक, राहुल, रतन
वीरभान, दिलबर नेगी
शिव विहार का मंदिर भी
मुंशी जी और पुजारी जी
जिन्हें नालों में तुमने फेंका
जिन मंदिर को तुमने तोड़ा
हम भी तो याद करेंगे अब
लाशों को भी, मंदिर को भी
लोगों को भी, इस धरम को भी
ये धरती सनातन है मेरी
ये धर्म सनातन है मेरा
हम भी तो याद रखेंगे ही
तुम्हें जो रखना है याद रखो

सब याद रखा जाएगा अब!
ये याद रहे जब तक हम हैं
न भूले हैं, न भूलेंगे
तुम कहते हो- ‘हम देखेंगे…’

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अजीत भारती
अजीत भारती
पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी

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