Thursday, November 21, 2024
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महाकवि जो आपातकाल के दौरान भी बने थे कॉन्ग्रेस की टेंशन, फिर उन्हीं के नाम से राहुल गाँधी के नीचे से ‘खिसक रही जमीन’: PM मोदी ने पढ़ी दुष्यंत कुमार त्यागी की पंक्ति

ष्यंत कुमार का जन्म 1 सितंबर, 1933 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर के राजपुर नवादा गाँव में हुआ था। उनका पूरा नाम दुष्यंत कुमार त्यागी है।

राष्ट्रपति के अभिभाषण पर लाए गए धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान बुधवार (8 फरवरी, 2023) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में दुष्यंत कुमार के शेर सुनाकर विपक्ष पर हमला बोला। प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष पर निशाना साधने के लिए दुष्यंत कुमार का एक शेर पढ़ा। पीएम मोदी के शायराना तंज पर NDA के सांसद ठहाका लगाने लगे।

अपने संबोधन के दौरान पीएम ने कहा, “मुझे विश्वास है कि भविष्य में कॉन्ग्रेस की बर्बादी पर हॉर्वर्ड ही नहीं, बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में अध्ययन होना ही होना है और कॉन्ग्रेस को डुबाने वाले लोगों पर भी अध्ययन होने वाला है। ऐसे लोगों के लिए दुष्यंत कुमार ने बहुत बढ़िया बात कही है। उन्होंने कहा है- “तुम्हारे पाँव के नीचे कोई जमीन नहीं, कमाल यह है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं।”

कौन हैं दुष्यंत कुमार?

दुष्यंत कुमार की यह रचना “तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं” उनके रचना संग्रह “साये में धूप” में छपी है। इस संग्रह में दुष्यंत कुमार के कई मशहूर रचनाएँ छपी हैं। जिनमें “हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए” जैसी रचना भी शामिल है। दुष्यंत कुमार ने सूर्य का स्वागत, आवाजों के घेरे, जलते हुए वन का बसंत, छोटे-छोटे सवाल, आँगन में एक वृक्ष, दुहरी जिंदगी जैसे कई उन्यास भी लिखे हैं।

दुष्यंत कुमार का जन्म 1 सितंबर, 1933 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर के राजपुर नवादा गाँव में हुआ था। उनका पूरा नाम दुष्यंत कुमार त्यागी है। दुष्यंत कुमार ने इलाहबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी। इसके साथ-साथ लेखन का कार्य भी करते रहे। दुष्यंत कुमार ने आकाशवाणी भोपाल में सहायक निर्माता के रूप में भी कार्य किया था। प्रारंभ में वे परदेशी के नाम से लिखा करते थे लेकिन बाद में दुष्यंत कुमार ने अपने ही नाम से लिखना शुरू कर दिया।

दुष्यंत कुमार ने प्रेम के अलावा आस पास के परिवेश, समाज, भ्रष्टाचार और शासन-प्रशासन व्यवस्था पर भी कटाक्ष किया है। उनकी रचनाओं को लोगों ने हाथों-हाथ लिया। समाज में पनप रही संवेदनहीनता और खत्म होते मानवीय मूल्यों पर दुष्यंत लिखते हैं-

इस शहर में वो कोई बारात हो या वारदात,
अब किसी भी बात पर खुलती नहीं हैं खिड़कियाँ।

दुष्यंत कुमार ने कई प्रेरणा दायक (Motivational) रचनाएँ भी की हैं। जैसे-

एक चिंगारी कहीं से ढूंढ लाओ दोस्तों
इस दीये में तेल से भीगी हुई बाती तो है।
कैसे आकाश में सुराख नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालों यारों।।

गज़लों और उपन्यास के अलावा दुष्यंत कुमार ने नाटक और लघुकथाएँ भी लिखीं हैं। उनके लघुकथाओं के संग्रह का नाम ‘मन के कोण’ है। 30 दिसम्बर, 1975 को महज 42 वर्ष की आयु में दुष्यंत कुमार का निधन हो गया।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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