भारतीय जनमानस में भगवान श्रीकृष्ण एक ऐसे महानायक के रूप में जाने जाते हैं, जिन्होंने अपने गीता के ज्ञान के माध्यम से समस्त अनुयायियों को जीवन के कठिन से कठिन प्रश्नों के उत्तर प्रदान किए। श्रीकृष्ण का सम्पूर्ण जीवन ही उनके भक्तों के लिए पूजनीय है। श्रीकृष्ण ने जहाँ अठखेलियाँ की, जहाँ अपना बचपन बिताया, वो मथुरा, वृंदावन और बृज धाम आज भी हिंदुओं के लिए सबसे बड़े तीर्थ हैं।
बाद में श्रीकृष्ण ने द्वारका को अपना निवास स्थान बनाया, जो हिंदुओं के चार प्रमुख तीर्थों में से एक है। हालाँकि भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा एक ऐसा स्थान भी है, जो आज भी उतना प्रसिद्ध नहीं हो पाया जितना दूसरे धार्मिक स्थल हैं। यह स्थान है गुजरात का श्री भालका तीर्थ, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने अपना मानव शरीर का त्याग किया था और अपने बैकुंठ धाम के लिए प्रस्थान कर गए थे।
भालका तीर्थ, सौराष्ट्र (गुजरात) के प्रभास क्षेत्र में स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रथम पूज्य सोमनाथ मंदिर से 5 किमी की दूरी पर स्थित है। यही वह स्थान है, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मानव अवतार का अंतिम समय बिताया। मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की एक मुस्कुराती हुई प्रतिमा है और पास में ही वह बहेलिया बैठा हुआ है, जिसके बाण ने भगवान श्रीकृष्ण के बाएँ पैर को भेद दिया था। मंदिर में हजारों वर्ष पुराना वह पीपल का वृक्ष भी है, जिसके नीचे श्रीकृष्ण उस घटना के समय विश्राम कर रहे थे।
विश्राम करने आए थे श्रीकृष्ण
सोमनाथ मंदिर से लगभग 5 किमी दूर वेरावल में स्थित भालका तीर्थ के बारे में मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण विश्राम करने के लिए आए थे। मंदिर परिसर में स्थित पीपल के वृक्ष के नीचे ही वो ध्यान मुद्रा में लेटे हुए थे। उनकी इस मुद्रा में उनका बायाँ पैर सामने की तरफ था। श्रीकृष्ण के पैर के तलवे में बना पदम का निशान ऐसे चमक रहा था, मानो किसी हिरण की आँख हो। इसे देखकर जरा नाम का एक बहेलिया भ्रम में आ गया और उसने हिरण का शिकार करने के लिए बाण चला दिया। बहेलिया का विषबुझा बाण श्रीकृष्ण के तलवे को भेद गया।
जरा जब नजदीक आया तब उसके भय का ठिकाना ही नहीं था। जिसे वह हिरण की आँख समझ रहा था, वह भगवान श्रीकृष्ण का पैर था। ग्लानि में जरा भगवान के सामने हाथ जोड़कर बैठ गया। वह श्रीकृष्ण से क्षमा याचना करने लगा। लेकिन भगवान ने उसे समझाया कि यही नियति है। भगवान श्रीकृष्ण ने जरा को कहा कि अब उनके इस धरती से प्रस्थान करने का समय आ गया है और वह इसका मात्र एक कारण ही है। यह सत्य भी था क्योंकि जो श्रीकृष्ण इस सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी हैं, उनकी इच्छा के बिना भला क्या ही संभव है?
बाण लगने से लहूलुहान हुए भगवान श्रीकृष्ण भालका तीर्थ से थोड़ी दूर स्थित हिरण नदी पहुँचे, जो कि सोमनाथ से मात्र डेढ़ किमी की दूरी पर बहती है। नदी के किनारे पहुँच कर भगवान ने अपना मानव शरीर त्याग दिया और अपने बैकुंठ धाम प्रस्थान कर गए। माना जाता है कि नदी के किनारे आज भी भगवान श्रीकृष्ण के चरणों के निशान मौजूद हैं। इस स्थान को देहोत्सर्ग तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है।
श्रीकृष्ण की नश्वर देह का अग्नि संस्कार समुद्र के त्रिवेणी संगम, जहाँ तीन नदियाँ हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है, वहाँ पर हुआ। भालका मन्दिर का जीणोर्द्धार सोमनाथ ट्रस्ट ने करवाया और 1967 में भारत के उपप्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने यहाँ मूर्ति की स्थापना की। चूँकि बाण को भल्ल भी कहा जाता है, अतः इस स्थान का नाम भी भालका तीर्थ पड़ा।
यह घटना द्वापरयुग के अंत का भी प्रतीक मानी जाती है। मंदिर सोमनाथ ट्रस्ट द्वारा संरक्षित और संचालित है। भालका तीर्थ का वर्णन महाभारत, श्रीमदभागवत महापुराण, विष्णु पुराण और अन्य हिन्दू धर्म ग्रंथों में है। मंदिर में वह पीपल भी है, जिसके नीचे अंतिम समय में भगवान श्रीकृष्ण ने विश्राम किया था। सदैव हरा-भरा रहने वाला पीपल का यह वृक्ष श्रद्धालुओं में उतना ही पूज्य है जितनी कि मंदिर में विराजमान मूर्ति।
कैसे पहुँचे?
भालका तीर्थ का नजदीकी रेलवे स्टेशन वेरावल है। मंदिर से वेरावल रेलवे स्टेशन की दूरी मात्र 3.3 किमी है। इसके अलावा हवाई मार्ग से पहुँचने के लिए नजदीकी हवाईअड्डा राजकोट है, जो भालका तीर्थ से लगभग 190 किमी की दूरी पर है। भालका तीर्थ तक सड़क मार्ग से पहुँचना भी बहुत ही आसान है क्योंकि यह स्थान सोमनाथ से थोड़ी ही दूरी पर है और सोमनाथ गुजरात के सभी प्रमुख शहरों से सड़क मार्गों से जुड़ा हुआ है।