अमरनाथ यात्रा पूरे जोर-शोर से चल रही है। पहले 8 दिनों एक लाख से भी अधिक लोगों ने दर्शन किए। श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए कड़े इंतजाम किए गए हैं। ख़ुद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह इस मामले पर सम्बंधित अधिकारियों से बैठकें कर लगातार नज़र बनाए हुए हैं। अस्थिर मौसम को देखते हुए तकनीक का भी सहारा लिया गया है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए भी व्यवस्थाएँ की गई हैं। राज्यपाल सत्यपाल मालिक ने कैम्प्स का दौरा कर स्थिति का जायजा लिया। लेकिन, कश्मीर के दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती ने इस पर नाराज़गी जताई है। उनका कहना है कि इस यात्रा के लिए किए गए इंतजामों से कश्मीरियों को दिक्कत हो रही है।
लेकिन, ऐसा नहीं है। असल में अमरनाथ यात्रा से कश्मीरियों का फायदा होता है। इससे उन्हें रुपए कमाने के अवसर मिलते हैं। इसके अलावा, इससे उन्हें रोज़गार के अवसर भी मिलते हैं। अमरनाथ यात्रा कश्मीरियों के लिए वरदान बन कर आती है; उन कश्मीरियों के लिए, जिनका नाम लेकर महबूबा-अब्दुल्ला राजनीति करते हैं, जिन्हें अलगाववादी भड़काते हैं, जिन्हें आतंकी बरगलाकर अपने संगठन में शामिल करते हैं। दरअसल, जम्मू कश्मीर में नेता, अलगाववादी और आतंकी, ये तीनों ही कभी नहीं चाहेंगे कि वहाँ की जनता को रोज़गार मिले और उसका कारण एक हिन्दू तीर्थयात्रा हो।
आगे बढ़ने से पहले जानते हैं कि किस तरह से कश्मीरी जनता को अमरनाथ यात्रा से फायदा मिलता है। जुलाई 2017 में ट्रिब्यून इंडिया की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें कश्मीरियों के लिए अमरनाथ यात्रा द्वारा पैदा होने वाले एक ऐसे रोज़गार के बारे में बताया गया था, जिसको हम-आप नज़रअंदाज़ कर देते हैं। लेकिन, यही उनकी कमाई का एक बड़ा जरिया है। कई ऐसे श्रद्धालु हैं, जो 22 किलोमीटर तक पद यात्रा कर बाबा बर्फानी के दर्शन करने जाते हैं। दक्षिण कश्मीर के कुलगाम में कई ऐसे लोग हैं, जो यात्रा के मौसम में ऐसे श्रद्धालुओं के लिए ‘वॉकिंग स्टिक’ यानी लाठी तैयार करते हैं, जिसके सहारे पदयात्री बाबा के धाम तक पहुँचते हैं।
पूरी अमरनाथ यात्रा के रास्ते में सैकड़ों ऐसे दुकानदार हैं, जिनकी रोज़ी-रोटी अमरनाथ यात्रा से चलती है। स्थानीय मुस्लिमों के हवाले से ट्रिब्यून इंडिया ने अपनी उस रिपोर्ट में लिखा था कि वे लोग हर साल बड़ी उम्मीद से इस यात्रा का इन्तजार करते हैं। कई ऐसी दुकानें हैं, जो पहले से चल रही होती हैं। वहीं, यात्रा के मौसम में कई अस्थाई दुकानें भी स्थापित हो जाती हैं, जिनकी पूरी कमाई इस यात्रा पर निर्भर है। कई तरह के पूजा के सामान भी वहाँ की स्थानीय दुकानदारों द्वारा यात्रियों को बेचीं जाती हैं, जिससे निश्चित तौर पर उनकी अच्छी-ख़ासी आमदनी होती है।
जैकेट, रेनकोट, हैट इत्यादि की दुकानें भी खुल जाती हैं। ये सभी अस्थाई होती हैं। अर्थात, आम दिनों में शायद ही ऐसे सामान बिकते हों, लेकिन यात्रा के दौरान इन दुकानदारों की चाँदी रहती है। इसके अलावा कई स्थानीय लोग अपने घोड़ों को इस यात्रा में शामिल करते हैं और कमाते हैं। कई अन्य लोग पालकियाँ ढो कर कमाई करते हैं। यह एक व्यापारिक रिश्ता है जो अमरनाथ के यात्रियों और स्थानीय जनता के बीच विकसित हो गया है। महबूबा-अब्दुल्ला भले ही इसे देखना न चाहें, लेकिन अमरनाथ यात्रा से कश्मीरियों को काफ़ी फायदा होता है, उन्हें रोज़गार के अवसर मिलते हैं।
कई स्थानीय युवा ‘पिठ्ठू’ बनकर कमाई करते हैं। पहलगाम के आसपास के टैक्सी ड्राइवरों की भी चाँदी रहती है। यात्रा के दौरान उनकी भी अच्छी-ख़ासी कमाई होती है। लेकिन, सोशल मीडिया पर ऐसी कुछ तस्वीरों को उठा कर यह दिखाने का प्रयास किया जाता है कि स्थानीय मुस्लिम यात्रियों की मदद कर रहे हैं और यात्रा में उनकी सहायता कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर इसे कश्मीर की ख़ासियत के रूप में प्रचारित किया जाता है। यह ऐसा ही है, जैसे कुछ मुस्लिमों ने हिन्दुओं को खाना परोस दिया और उस तस्वीर को वायरल कर यह दिखाया गया कि मुस्लिम कितने दरियादिल हैं।
असल में कश्मीर में अगर अमरनाथ यात्रा रुक जाए, तो इसका सबसे बड़ा फायदा वहाँ के नेताओं, अलगाववादियों व आतंकियों को होगा। नेताओं को भारत सरकार व शेष भारत को गाली देकर वोट बटोरने का मौका मिलेगा। अलगाववादी पूरी दुनिया में यह प्रचार करेंगे कि कश्मीरियों को रोज़गार के अवसर नहीं दिए जा रहे हैं। आतंकी यह चाहेंगे कि रुपए की कमी से जूझ रहे युवा उनके संगठन में भर्ती हो जाएँ। इन तीनों के प्रयासों में सबसे बड़ा घाटा कश्मीरी जनता का है।
This is not called helping. This is their profession and are paid for it. This yatra is a big source of income for taxi drivers , restaurants, hotels, horse owners. So please do not misguide people. https://t.co/GMKnxqR8G7
— Ashoke Pandit (@ashokepandit) July 11, 2019
जिन कश्मीरियों को अमरनाथ यात्रा से रोज़गार मिल रहा है, क्या वे कभी भी चाहेंगे कि उनके रोज़गार का अवसर छिन जाए? अब महबूबा और अब्दुल्ला के बयानों को देख कर समझा जा सकता है कि ये लोग कश्मीरी जनता की भावनाओं को प्रतिबिंबित नहीं करते, बल्कि उल्टी गंगा बहाते हैं। अगर अमरनाथ जाने वाले यात्रियों की संख्या में बढ़ोतरी होती है तो इनकी वजह से होने वाली कमाई में भी वृद्धि होगी, जो कि कश्मीरियों के लिए एक अच्छी बात है।