ऋषि मर्कण्डु की संतान महर्षि मार्कण्डेय जन्म से ही शिवभक्त थे। उन्होंने भारत भर में कई स्थानों पर भगवान शिव के स्वरूप को स्थापित किया। रीवा जिले के देवतालाब नामक स्थान में पवित्र शिव मंदिर की स्थापना के पीछे महर्षि मार्कण्डेय का ही योगदान माना जाता है। मान्यता है कि रीवा का यह मंदिर मात्र एक रात में बन कर तैयार हुआ था।
मंदिर का इतिहास
महर्षि मार्कण्डेय भारतवर्ष में सनातन और शिव भक्ति के प्रचार-प्रसार के लिए भ्रमण किया करते थे। उनकी इसी यात्रा के मध्य उनका आगमन विंध्य के रेवा क्षेत्र में हुआ जो वर्तमान में रीवा के नाम से जाना जाता है। रीवा में देवतालाब नामक स्थान पर जब महर्षि ने विश्राम के लिए अपना डेरा जमाया तब अनायास ही उनके मन में भगवान शिव के दर्शन की अभिलाषा जाग उठी। महर्षि ठहरे शिव भक्त तो उन्होंने अपने आराध्य से कह दिया कि चाहे जिस रूप में दर्शन मिलें किन्तु दर्शन मिलने तक वे यहीं तप करते रहेंगे।
कई दिनों तक महर्षि मार्कण्डेय देवतालाब में तप करते रहे। उनके तप की तीव्रता को देखकर भगवान शिव ने विश्वकर्मा जी को आदेश दिया कि वो उस स्थान पर एक शिव मंदिर का निर्माण करें। भगवान विश्वकर्मा जी ने एक विशालकाय पत्थर से रातों रात उस स्थान पर शिव मंदिर का निर्माण कर दिया। तपस्या में लीन महर्षि मार्कण्डेय को इस पूरी घटना का किंचित मात्र भी आभास नहीं हुआ। मंदिर बन जाने के पश्चात भगवान शिव की मानस प्रेरणा से महर्षि ने अपना तप समाप्त किया। शिव मंदिर देखकर महर्षि अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने वहाँ स्थित कुंड में स्नान कर भगवान शिव की आराधना की। तभी से यह मंदिर पूरे विंध्य प्रदेश में पूज्य है।
विंध्य क्षेत्र में रामेश्वरम के तुल्य है देवतालाब
पूर्वी मध्यप्रदेश में एक मान्यता है कि चार धाम की यात्रा तभी सम्पूर्ण एवं सफल मानी जाती है जब गंगोत्री का जल रामेश्वरम स्थित शिवलिंग के साथ देवतालाब स्थित शिवलिंग पर भी अर्पित किया जाए। इसी कारण तीर्थों की यात्रा पूर्ण करने के पश्चात कई लोग गंगोत्री का जल लेकर देवतालाब आते हैं और अपनी तीर्थ यात्रा को सफल बनाते हैं। इस क्षेत्र में उपस्थित कई पवित्र जल कुंडों के कारण इस क्षेत्र का नाम देवतालाब हुआ।
मंदिर के विषय में एक और मान्यता है कि यहाँ मुख्य मंदिर के नीचे जमीन के अंदर एक और मंदिर है जहाँ चमत्कारिक मणि मौजूद है। कई दिनों तक मंदिर के नीचे से लगातार साँप बाहर निकलते रहे। श्रद्धालुओं को समस्या होने पर अंततः जमीन के नीचे स्थित इस मंदिर के दरवाजे को हमेशा के लिए बंद करा दिया गया।
कैसे पहुँचे?
सबसे नजदीकी हवाई अड्डा प्रयागराज में है। रीवा की प्रयागराज से दूरी लगभग 125 किमी है। इसके अलावा रीवा, वाराणसी और जबलपुर से भी समान दूरी पर है जहाँ हवाईअड्डे हैं। इन दोनों शहरों की रीवा से दूरी लगभग 250 किमी है। दिल्ली, राजकोट, इंदौर, भोपाल और नागपुर जैसे शहरों से रीवा सीधे रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है। देवतालाब मंदिर, रीवा रेलवे स्टेशन से मिर्जापुर मार्ग पर लगभग 60 किमी की दूरी पर स्थित है।
सड़क मार्ग से भी यहाँ पहुँचने में किसी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं है। वाराणसी से मिर्जापुर होते हुए जबलपुर जाने वाले यात्रियों के लिए देवतालाब स्थित भगवान शिव के दर्शन सुलभ हो सकते हैं, क्योंकि यह मंदिर मुख्यमार्ग में ही स्थित है।