तमिलनाडु में तिरुचिरापल्ली से 12 किमी की दूरी पर स्थित है श्रीरंगम, जहाँ स्थित है एक विशाल मंदिर परिसर, जो लगभग 150 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। श्रीरंगम के इस विशाल मंदिर परिसर में विराजमान हैं भगवान विष्णु, जिन्हें श्रीरंगनाथस्वामी के रूप में पूजा जाता है। कावेरी और उसकी सहायक नदी कोल्लिदम के द्वारा बनाए गए द्वीप पर बसा श्रीरंगम का रंगनाथस्वामी मंदिर विश्व का सबसे विशाल संचालित मंदिर क्षेत्र है और हिन्दू ग्रंथों एवं पुराणों में ऐसी मान्यता है कि यह क्षेत्र सृष्टि के आरंभ से ही अस्तित्व में है।
दिव्यदेशों में प्रथम और भगवान विष्णु के स्वयं व्यक्त क्षेत्रों में एक है श्रीरंगम
श्रीरंगम का रंगनाथस्वामी मंदिर 108 दिव्य देशम कहे जाने वाले क्षेत्रों में प्रथम माना जाता है। श्रीरंगम भगवान विष्णु के 8 स्वयं व्यक्त क्षेत्रों में से एक है। श्रीरंगम के अलावा सात अन्य स्वयं व्यक्त क्षेत्र हैं, श्रीमुष्णम, वेंकटाद्रि, शालिग्राम, नैमिषारण्य, पुष्कर, तोताद्रि और बद्री। इसके अलावा यह क्षेत्र कावेरी नदी के किनारे बसे पंच रंग क्षेत्रों में से भी एक है।
ब्रह्मा जी और कावेरी की तपस्या
गंगा, यमुना, कावेरी और सरस्वती के मध्य इस बात को लेकर बहस छिड़ गई कि उनमें से कौन श्रेष्ठ है? यमुना और सरस्वती तो बहस से हट गईं लेकिन गंगा और कावेरी में निर्णय नहीं हो पाया। दोनों ने भगवान विष्णु से इसका जवाब माँगा। गंगा ने कह दिया कि वह भगवान के चरणों से निकली है इसलिए श्रेष्ठ है। भगवान विष्णु ने भी गंगा की हाँ में हाँ मिलाई तब कावेरी ने गंगा से श्रेष्ठ बनने के लिए भगवान विष्णु की तपस्या की। भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर कावेरी को वरदान दिया कि वो एक ऐसी जगह स्थापित होंगे, जहाँ कावेरी उनके गले के हार की तरह बहेगी।
ब्रह्मा जी ने भी सृष्टि के आरंभ में भगवान विष्णु के वास्तविक स्वरूप ‘महा विष्णु’ के दर्शन करने के लिए तपस्या की। इसके बाद भगवान विष्णु क्षीरसागर से रंगविमान में प्रकट हुए। यह विमान भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ के द्वारा गतिमान हुआ। आदिशेष ने भगवान के ऊपर छाया कर रखी थी और उनके साथ उनकी विश्वक सेना भी थी। नारद जैसे महान ऋषि उनकी स्तुति कर रहे थे और सभी देवी-देवता उनकी जयकार कर रहे थे। भगवान विष्णु के आदेशानुसार ब्रह्मा जी ने विराज नदी के किनारे उनके इस रूप की स्थापना की और दैनिक पूजा करने लगे।
ब्रह्मा जी के बाद सूर्यदेव, फिर मनु और अयोध्या के राजा इक्ष्वाकु ने भगवान विष्णु के महारूप की पूजा की। बाद में जब भगवान राम लंका विजय के पश्चात अयोध्या आए तो उन्होंने रावण के भाई विभीषण को रंगनाथस्वामी को लंका में ले जाकर स्थापित करने की अनुमति दी। जब विभीषण उन्हें लेकर कावेरी नदी के किनारे पहुँचे तो वहाँ उनकी दैनिक पूजा के लिए नीचे रखा लेकिन पूजा के पश्चात जब वापस उठाना चाहा तो असफल रहे। इस पर विभीषण दुखी हो गए और भगवान से प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु ने उन्हें कावेरी के वरदान की कथा बताई। इसके बाद से ही मान्यताएँ हैं कि विभीषण रोज श्रीरंगनाथस्वामी की पूजा करने आज भी आते हैं। कई मान्यताएँ है कि विभीषण प्रत्येक 12 वर्ष में श्रीरंगम आते हैं।
आधुनिक मंदिर का निर्माण
सबसे पहले चोल साम्राज्य के शासकों ने रंगनाथस्वामी मंदिर का निर्माण कराया था। हालाँकि मंदिर का निर्माण लगातार चलता रहा और चोल साम्राज्य के अंतिम शासकों ने भी इसके कई हिस्सों का जीर्णोद्धार कराया। चोल शासकों के अलावा पांड्य शासकों ने भी मंदिर के निर्माण में अपना योगदान दिया। मंदिर में चोल, पांड्य, होयसाला और विजयनगर राजवंशों के शिलालेख मिलते हैं।
हालाँकि 14वीं शताब्दी के दौरान मंदिर इस्लामी कट्टरपंथियों के निशाने पर भी आया। दिल्ली सल्तनत की क्रूर सेना मोहम्मद बिन तुगलक के नेतृत्व में मंदिर पर हमला करने आई लेकिन तब तक हिंदुओं ने मंदिर के गर्भगृह में स्थापित भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की प्रतिमा को मंदिर से दूर हटा दिया। हिन्दू इन प्रतिमाओं को लेकर केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु के कई गाँवों में भटकते रहे। 1371 में अंततः विजयनगर साम्राज्य के शासन में पुनः मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ और भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की प्रतिमाएँ मंदिर में स्थापित की गईं।
रंगनाथस्वामी मंदिर चारों ओर से 7 परत में दीवारों से घिरा हुआ है। इन दीवारों की कुल लंबाई लगभग 10 किमी है। मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के अलावा 50 अन्य मंदिर हैं। इस परिसर में 17 विशाल गोपुरम सहित कुल 21 गोपुरम हैं। परिसर में कुल 39 मंडप और 9 पवित्र सरोवर हैं। मंदिर का मुख्य मंडप अयिरम काल मंडपम है, जो 1000 स्तंभों वाला एक विशाल हॉल है।
मंदिर के गर्भगृह में आदिशेष पर विराजमान भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित है। इन्हें ही रंगनाथस्वामी या रंगनाथर कहा जाता है। इसके अलावा गर्भगृह में देवी लक्ष्मी की मूर्ति भी स्थापित है, जिन्हें रंगनायकी थायर कहा जाता है।
कैसे पहुँचे?
श्रीरंगम का निकटतम हवाईअड्डा तिरुचिरापल्ली का अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट है। यहाँ से मंदिर की दूरी लगभग 12 किमी है। इसके अलावा श्रीरंगम, तिरुचिरापल्ली रेलवे स्टेशन से 7.5 किमी की दूरी पर है, जो भारत के कई बड़े शहरों से रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा श्रीरंगम की चेन्नई से दूरी लगभग 325 किमी है। सड़क मार्ग से भी श्रीरंगम पहुँचा जा सकता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 38 पर स्थित यह तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु और दूसरे राज्यों के बड़े शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है।