केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम स्थित पद्मनाभस्वामी मंदिर विश्व का सबसे धनी मंदिर माना जाता है। यहाँ भगवान विष्णु, श्री पद्मनाभस्वामी के रूप में पूजे जाते हैं। यह मंदिर भगवान विष्णु की दिव्यता और भव्यता का बोध कराता है। हिंदुओं के इस प्रसिद्ध तीर्थ स्थल के बारे में मान्यता है कि यहाँ भगवान विष्णु की मूर्ति प्राप्त हुई थी, जिसके बाद इस मंदिर का निर्माण कराया गया।
इतिहास
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रमुख देवता की प्रतिमा अपने निर्माण के लिए जानी जाती है, जिसमें 12008 शालिग्राम हैं जिन्हें नेपाल की नदी गंधकी (गंडकी) के किनारों से लाया गया था। श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का गर्भगृह एक चट्टान पर स्थित है और जहाँ स्थापित मुख्य प्रतिमा लगभग 18 फीट लंबी है। इस प्रतिमा को अलग-अलग दरवाजों से देखा जा सकता है। पहले दरवाजे से सिर और सीना देखा जा सकता है, दूसरे दरवाजे से हाथ और तीसरे दरवाजे से पैर देखे जा सकते हैं। वर्तमान मूर्ति 1730 में मंदिर के पुनर्निर्माण के दौरान त्रावणकोर के राजा मार्तंड वर्मा के द्वारा बनवाई गई थी।
इसके पहले मंदिर में स्थापित लकड़ी की मूल मूर्ति का कोई इतिहास नहीं है। हिन्दू धर्म ग्रंथों में इस मंदिर का उल्लेख मिलता है कि श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम ने मंदिर की यात्रा की थी और मंदिर में स्थित पद्मतीर्थम में स्नान करके पूजा-अर्चना की थी। हिंदुओं के प्रसिद्ध संतों में से एक नौवीं शताब्दी के नम्मा अलवर ने भी श्री पद्मनाभस्वामी की अर्चना की। त्रावणकोर के जाने-माने इतिहासकार स्व. डॉ. एलए रवि वर्मा का यह मानना था कि यह मंदिर कलियुग शुरू होने के पहले ही दिन स्थापित हुआ था। मंदिर में प्राप्त हुए ताम्रपत्र में ऐसा लिखा हुआ है कि कलियुग प्रारंभ होने के 950वें साल में एक तुलु ब्राह्मण दिवाकर मुनि ने मूर्ति की पुनर्स्थापना की थी और 960वें साल में राजा कोथा मार्तंडन ने मंदिर का कुछ हिस्सा निर्मित कराया।
कई बार इस मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ। आज हम जो मंदिर और भगवान श्री पद्मनाभस्वामी का जो स्वरूप देखते हैं वह त्रावणकोर के राजा मार्तंड वर्मा की देन है। माना जाता है कि श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर ऐसे स्थान पर स्थित है जो सात परशुराम क्षेत्रों में से एक है। स्कंद पुराण और पद्म पुराण में भी इस मंदिर का संदर्भ मिलता है।
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम का नाम श्री पद्मनाभस्वामी के नाम पर है जिन्हें अनंत (जो अनंत सर्प पर लेटे हैं) भी कहा जाता है। शब्द ‘तिरुवनंतपुरम’ का शाब्दिक अर्थ है – श्री अनंत पद्मनाभस्वामी की भूमि।
वास्तुकला
विश्व का सबसे धनाढ्य श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर केरल और द्रविड़ वास्तु शैली के मिश्रण का एक अनूठा उदाहरण है। मंदिर के अधिकांश हिस्से में पत्थरों और कांसे पर हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं की मूर्तियाँ उकेरी गई हैं। इनमें प्रमुख हैं, भगवान विष्णु की लेटी हुई प्रतिमा, नरसिंह स्वामी, भगवान गणेश और गजलक्ष्मी। इसके अलावा मंदिर में एक 80 फुट ऊँचा ध्वज स्तम्भ है जिसे सोने से लेपित किए गए तांबे की चादरों से ढ़का गया है।
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर की सबसे सुंदर विशेषता है उसके मंडप, बालिप्पुरा मंडपम, मुख मंडपम और नवग्रह मंडपम। पूर्वी हिस्से से लेकर गर्भगृह तक एक गलियारा है जिसमें ग्रेनाइट के पत्थरों से बने खंभों पर शिल्पकारी की गई है। मुख्य प्रवेश द्वार के नीचे भूतल है जिसके नाटकशाला कहा जाता है। यहाँ मलयालम महीने मीनम और तुलम के दौरान आयोजित वार्षिक दस दिवसीय त्यौहार में केरल के शास्त्रीय कला कथकली का प्रदर्शन किया जाता है।
इन सब के अलावा श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर जाना जाता है अपने खजानों के लिए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मंदिर के कई गुप्त तहखाने खोले गए जहाँ लगभग डेढ़ से दो लाख करोड़ रुपए की संपत्ति होने का अनुमान लगाया गया। हालाँकि मंदिर का एक तहखाना जिसे ‘वॉल्ट बी’ कहा जाता है, आज तक नहीं खोला गया। इस तहखाने की विशेषता है कि इसमें कोई ताला नहीं है और न ही इसे खोलने का कोई विशेष स्थान दिखाई देता है। त्रावणकोर शाही परिवार और मंदिर से जुड़े कई लोगों का मानना है कि यह तहखाना सिद्ध तरीके से किए जाने वाले मंत्रोच्चारण से ही खुल सकता है। हालाँकि मंदिर से जुड़े और पुरातन परंपरा में विश्वास करने वाले विद्वान यही कहते हैं कि तहखानों को ऐसे ही छोड़ देना चाहिए, क्योंकि यह पूरी संपत्ति भगवान की है।
कैसे पहुँचे?
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर से नजदीकी हवाईअड्डा तिरुवनंतपुरम अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा है जो मंदिर से लगभग 6 किमी की दूरी पर है। नजदीकी रेलवे स्टेशन तिरुवनंतपुरम सेंट्रल रेलवे स्टेशन है जिसकी मंदिर से दूरी मात्र 1 किमी है। तिरुवनंतपुरम देश के लगभग सभी बड़े शहरों से रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है।
तमिलनाडु स्थित कन्याकुमारी से तिरुवनंतपुरम स्थित इस मंदिर की दूरी 85 किमी है। चेन्नई और बेंगलुरु जैसे महानगरों से श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर की दूरी 700-750 किमी है, लेकिन सड़कों के बेहतर नेटवर्क के कारण यहाँ सड़क मार्ग से पहुँचना आसान है।