राजस्थान, वह भूमि है जो क्षत्रियों और क्षत्राणियों की शौर्य गाथाओं से सुसज्जित है। राज्य में कई ऐसे स्थान हैं जो अपने ऐतिहासिक महत्व के कारण भारत भर में प्रसिद्ध हैं। यहाँ के किले-कोठियाँ, महल और धर्म स्थल पर्यटकों को विशेष रूप से आकर्षित करते हैं। इन ऐतिहासिक इमारतों के अलावा राजस्थान में कई ऐसे मंदिर भी हैं जिनका इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है। राजसमंद और पाली जिले की सीमा पर स्थित है चमत्कारिक परशुराम महादेव मंदिर का इतिहास सैकड़ों नहीं, बल्कि युगों पुराना है। मान्यता है कि इसी स्थान पर परशुराम ने भगवान शिव की तपस्या की थी और दिव्य अस्त्रों को प्राप्त किया था।
इतिहास
परशुराम, भगवान विष्णु के छठवें अवतार हैं। लेकिन यह सर्वविदित है कि भगवान विष्णु और महादेव एक-दूसरे को ही अपना ईश्वर मानते हैं। इसके चलते परशुराम ने भी भगवान शिव की कठिन तपस्या की। ऐसा माना जाता है कि महान तपस्वी परशुराम ने इस स्थान पर भगवान शिव की आराधना की और उनके दर्शन प्राप्त किए। अरावली पहाड़ियों के बीच स्थित इस मंदिर का निर्माण उन्होंने ही किया था। परशुराम की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें धनुष और अक्षय तरकश प्रदान किया। इसके अलावा जिस फरसे के लिए परशुराम जाने जाते हैं, वह फरसा भी उन्हें भगवान शिव से इसी स्थान पर प्राप्त हुआ था। इसके बाद उन्होंने अपने फरसे से ही चट्टानों को काटकर महादेव के इस गुफा मंदिर का निर्माण किया था।
मंदिर में स्थापित शिवलिंग को स्वयंभू माना जाता है। कहा जाता है कि पृथ्वी के 8 चिरंजीवियों में से एक परशुराम की तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव, शिवलिंग के रूप में यहाँ स्थापित हुए। स्थानीय तौर पर इस मंदिर को अमरनाथ कहा जाता है क्योंकि जिस प्रकार अमरनाथ में भगवान शिव का साक्षात निवास माना जाता है, ठीक उसी प्रकार इस स्थान पर भी महादेव की मौजूदगी को महसूस किया जाता है। पहाड़ी पर बने इस गुफा मंदिर तक पहुँचने के लिए 500 सीढ़ियों का सफर तय करना पड़ता है। समुद्र तल से मंदिर की ऊँचाई लगभग 3600 फुट है। गुफा मंदिर की दीवारों पर एक राक्षस की आकृति दिखाई देती है जिसके बारे में यह कहा जाता है कि उसका संहार भी परशुराम द्वारा किया गया था। इसके अलावा मंदिर में भगवान शिव, माता पार्वती और कार्तिकेय भगवान की मूर्तियाँ बनी हुई हैं।
रोचक तथ्य
ऐसा माना जाता है कि वही व्यक्ति उत्तराखंड स्थित बद्रीनाथ धाम के कपाट खोल सकता है जिसने परशुराम महादेव के दर्शन किए हों। इसके अलावा यह भी माना जाता है कि यह वही स्थान है जहाँ परशुराम ने पांडवों में सबसे ज्येष्ठ कर्ण को शिक्षा प्रदान की थी। हालाँकि कर्ण ने स्वयं को ब्राह्मण बताकर परशुराम से शिक्षा प्राप्त करने का प्रयत्न किया था, लेकिन जब परशुराम को इस बात का पता चला तो उन्होंने कर्ण को मौका आने पर सारी विद्या भूल जाने का श्राप दे दिया था।
मंदिर में स्थापित शिवलिंग भी किसी रहस्य से कम नहीं है। दरअसल इस शिवलिंग में छिद्र हैं, इस कारण जब इसमें जल चढ़ाया जाता है तो यह सैकड़ों लीटर जल को अपने अंदर समाहित कर लेता है, लेकिन जब शिवलिंग को दूध अर्पित किया जाता है तो यह दूध शिवलिंग में समाता ही नहीं है। यह एक ऐसा रहस्य है जो आज भी अनसुलझा है।
परशुराम महादेव मंदिर में अक्षय तृतीया, महाशिवरात्रि, रामनवमी और नवरात्रि जैसे त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं। हर साल श्रावण महीने में यहाँ मेला लगता है। इस मेले में शामिल होने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और भगवान शिव के दर्शन के साथ परशुराम को भी नमन करते हैं।
कैसे पहुँचे
परशुराम महादेव मंदिर का नजदीकी हवाई अड्डा महाराणा प्रताप एयरपोर्ट, उदयपुर है जो यहाँ से लगभग 140 किमी की दूरी पर है। रेलमार्ग के माध्यम से मंदिर तक पहुँचने के लिए फालना या रानी गाँव के रेलवे स्टेशन का सहारा लिया जा सकता है। यह रेलवे स्टेशन गुफा मंदिर से लगभग 40 किमी की दूरी पर है। परशुराम महादेव गुफा मंदिर कुंभलगढ़ किले से लगभग 9 किमी की दूरी पर स्थित है। परशुराम महादेव मंदिर का निर्माण कुछ इस प्रकार हुआ है कि गुफा राजसमंद जिले में आती है तो यहाँ स्थित जल कुंड पाली जिले में।