भारत के अलग-अलग हिस्सों में कई ऐसे मंदिर हैं जो अपने इतिहास और अपनी प्रचीन परंपराओं के साथ अपनी वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध हैं। इन मंदिरों की वास्तुकला कुछ ऐसी है कि आज भी नवीन तकनीकी और विज्ञान की सुविधाओं के बाद भी इस प्रकार की वास्तुकला को हकीकत में उतार पाना बहुत ही मुश्किल है। ऐसा ही एक मंदिर स्थित है महाराष्ट्र के औरंगाबाद की एलोरा की गुफाओं में। यह मंदिर मात्र एक चट्टान को काटकर और तराशकर बनाया गया है। हम बात कर रहे हैं एलोरा के कैलाश मंदिर की जिसे बनाने में मात्र 18 वर्षों का समय लगा। लेकिन जिस तरीके से यह मंदिर बना है, ऐसे में अनुमान यह लगाया जाता है कि इसके निर्माण में लगभग 100-150 सालों का समय लगना चाहिए।
संरचना एवं निर्माण का रहस्य
ऐतिहासिक रिकॉर्ड्स के अनुसार एलोरा के कैलाश मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण प्रथम के द्वारा सन् 756 से सन् 773 के दौरान कराया गया। मंदिर के निर्माण को लेकर यह मान्यता है कि एक बार राजा गंभीर रूप से बीमार हुए तब रानी ने उनके स्वास्थ्य के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की और यह प्रण लिया कि राजा के स्वस्थ होने पर वह मंदिर का निर्माण करवाएँगी और मंदिर के शिखर को देखने तक व्रत धारण करेंगी। राजा जब स्वस्थ हुए तो मंदिर के निर्माण के प्रारंभ होने की बारी आई, लेकिन रानी को यह बताया गया कि मंदिर के निर्माण में बहुत समय लगेगा। ऐसे में व्रत रख पाना मुश्किल है। तब रानी ने भगवान शिव से सहायता माँगी। कहा जाता है कि इसके बाद उन्हें भूमिअस्त्र प्राप्त हुआ जो पत्थर को भी भाप बना सकता है। इसी अस्त्र से मंदिर का निर्माण इतने कम समय में संभव हो सका। बाद में इस अस्त्र को भूमि के नीचे छुपा दिया गया।
भगवान शिव का निवास माने जाने वाले कैलाश पर्वत के आकार की तरह ही इस मंदिर का निर्माण किया गया है। 276 फुट लंबे और 154 फुट चौड़े इस मंदिर को एक ही चट्टान को तराशकर बनाया गया है। इस चट्टान का वजन लगभग 40,000 टन बताया जाता है। मंदिर जिस चट्टान से बनाया गया है उसके चारों ओर सबसे पहले चट्टानों को ‘U’ आकार में काटा गया है जिसमें लगभग 2,00,000 टन पत्थर को हटाया गया। आमतौर पर पत्थर से बनने वाले मंदिरों को सामने की ओर से तराशा जाता है, लेकिन 90 फुट ऊँचे कैलाश मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसे ऊपर से नीचे की तरफ तराशा गया है। कैलाश मंदिर एक ही पत्थर से निर्मित विश्व की सबसे बड़ी संरचना है।
इस मंदिर में प्रवेश द्वार, मंडप तथा कई मूर्तियाँ हैं। दो मंजिल में बनाए गए इस मंदिर को भीतर तथा बाहर दोनों ओर मूर्तियों से सजाया गया है। मंदिर में सामने की ओर खुले मंडप में नंदी है और उसके दोनों ओर विशालकाय हाथी तथा स्तंभ बने हुए हैं। कैलाश मंदिर के नीचे कई हाथियों का निर्माण किया गया है और यह मंदिर उन्हीं हाथियों के ऊपर ही टिका है। इस्लामिक आक्रांता औरंगजेब ने इस मंदिर को नुकसान पहुँचाने का बहुत प्रयास किया लेकिन छोटे-मोटे नुकसान के अलावा वह इसे किसी भी प्रकार की क्षति पहुँचाने में असफल रहा।
कुछ अनसुलझे तथ्य
मंदिर की दीवारों पर अलग प्रकार की लिपियों का प्रयोग किया गया है जिनके बारे में आजतक कोई कुछ भी नही समझ पाया। ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेजों के शासनकाल में मंदिर के नीचे स्थित गुफाओं पर शोधकार्य शुरू कराया गया, लेकिन वहाँ हाई रेडियोएक्टिविटी के चलते शोध को बंद करना पड़ा। इसके अलावा गुफाओं को भी बंद कर दिया गया जो आज भी बंद ही हैं। ऐसी मान्यता है कि इस रेडियोएक्टिविटी का कारण वही भूमिअस्त्र और मंदिर के निर्माण में उपयोग किए गए अन्य उपकरण हैं जो मंदिर के नीचे छुपा दिए गए थे।
हालाँकि जिस तरीके से कैलाश मंदिर का निर्माण किया गया है, पुरातत्वविद यह अनुमान लगाते हैं कि इस मंदिर के निर्माण में कम से कम 100-150 वर्षों का समय लगना चाहिए। लेकिन मंदिर का निर्माण मात्र 18 वर्षों में हुआ। यही कारण है कि मंदिर के निर्माण में दैवीय सहायता की भी संभावना जताई जाती है। मंदिर से जुड़ी एक और विचित्र बात यह है कि यह भगवान शिव को समर्पित है, लेकिन मंदिर में न तो कोई पुजारी है और न ही यहाँ किसी प्रकार की पूजा-पाठ की कोई जानकारी मिलती है।
कैसे पहुँचे?
कैलाश मंदिर, औरंगाबाद शहर से 30 किमी दूर स्थित है। मंदिर का सबसे नजदीकी हवाईअड्डा औरंगाबाद ही है जो दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद, तिरुपति, अहमदाबाद और तिरुवनंतपुरम जैसे शहरों से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा रेलमार्ग से हैदराबाद, दिल्ली, नासिक, पुणे और नांदेड़ जैसे शहरों से भी औरंगाबाद पहुँचा जा सकता है। कैलाश मंदिर से औरंगाबाद रेलवे स्टेशन की दूरी लगभग 28 किमी है। महाराष्ट्र की सार्वजनिक परिवहन सेवा की बसों के माध्यम से राज्य के लगभग सभी बड़े शहरों से औरंगाबाद पहुँचने के लिए बस सेवा उपलब्ध है। पुणे से मंदिर की दूरी लगभग 250 किमी है। इसके अलावा मुंबई से कैलाश मंदिर लगभग 330 किमी की दूरी पर स्थित है।