महाभारत काल के कई ऐसे स्थान हैं, जो आज भी उस समय के महान इतिहास की गवाही देते हैं। कई ऐसे स्थान हैं, जो भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े हैं तो कई पांडवों की तपस्या और पश्चाताप के साक्षी हैं। महाभारत के विनाशकारी युद्ध के बाद पांडव अपने ही सगे-संबंधियों के वध के पाप से मुक्ति के लिए प्रयास करते रहे।
हिमालयी क्षेत्र में ही कई ऐसे मंदिर हैं, जहाँ पांडवों ने पश्चाताप के उद्देश्य से भगवान शिव की तपस्या की। ऐसा ही एक क्षेत्र गुजरात में अरब सागर तट पर स्थित है, जहाँ भगवान शिव ने पाँचों पांडवों को निष्कलंक बनाया। यही कारण है कि यहाँ स्थापित हुआ निष्कलंक महादेव मंदिर, जहाँ स्थित हैं 5 स्वयंभू शिवलिंग।
5000 साल पुराना है निष्कलंक महादेव मंदिर
महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था। पांडव दुःखी थे कि उन्होंने अपने ही सगे-संबंधियों को युद्ध में मौत के घाट उतार दिया। इसके लिए उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से सलाह माँगी। उन्होंने पांडवों को एक काली गाय और काला ध्वज दिया और कहा कि पांडव ध्वज को लेकर काली गाय का अनुसरण करें। जहाँ भी दोनों का रंग सफेद हो जाएगा, वहाँ पांडवों को उनके पाप से मुक्ति मिल जाएगी।
पांडव कई दिनों तक विभिन्न स्थानों में उस काली गाय का अनुसरण करते हुए घूमते रहे लेकिन न तो गाय का रंग ही बदला और न ही उस ध्वजा का। इसी क्रम में जब पांडव वर्तमान गुजरात के कोलियाक तट पर पहुँचे, तब ध्वजा और गाय दोनों सफेद रंग के हो गए। पांडवों ने प्रसन्न होकर भगवान शिव की तपस्या की।
पांडवों की तपस्या से प्रसन्न होकर पाँचों भाइयों को 5 अलग-अलग शिवलिंग के स्वरूप में भगवान के दर्शन प्राप्त हुए। चूँकि भगवान शिव ने पांडवों को भगवान कृष्ण के कहे अनुसार पाप से मुक्त किया अर्थात निष्कलंक बनाया, इस कारण इस स्थान को निष्कलंक महादेव मंदिर कहा गया।
समुद्र में डूब जाता है मंदिर
भारत के कुछ गिने-चुने समुद्री तट मंदिरों में से एक है भावनगर के समीप स्थित निष्कलंक महादेव मंदिर। अरब सागर में स्थित यह मंदिर तट से लगभग 1 किलोमीटर अंदर पानी में स्थित है। श्रद्धालु पानी से होकर ही इस मंदिर में दर्शन करने के लिए जाते हैं। मंदिर एक चौकोर चबूतरे पर स्थित है। यहाँ 5 स्वयंभू शिवलिंग हैं, जहाँ प्रत्येक शिवलिंग के पास एक नंदी भी विराजमान है।
जब भी समुद्र में ऊँचा ज्वार उठता है, तब मंदिर डूब जाता है। इस दौरान सभी शिवलिंग पानी के अंदर चले जाते हैं। हालाँकि दूर से मात्र मंदिर की ध्वजा ही दिखाई पड़ती है। इसके बाद जब पुनः समुद्र का जल स्तर कम होता है, तब वापस से मंदिर सामने आ जाता है। समुद्र की ताकतवर लहरों के बीच सदियों से यह मंदिर बिना किसी नुकसान के खड़ा है, यह अपने आप में एक रहस्य है।
भाद्रपद महीने की अमावस्या को यहाँ एक विशेष मेला लगता है, जिसे ‘भाद्रवी’ कहा जाता है। निष्कलंक महादेव मंदिर में भाद्रवी का विशेष महत्व है। हालाँकि अमावस्या और पूर्णिमा के दौरान ज्वार सक्रिय रहता है और मंदिर पानी में डूबा हुआ रहता है लेकिन भगवान शिव के भक्त भी ज्वार के उतर जाने की प्रतीक्षा में ही रहते हैं।
कैसे पहुँचें?
निष्कलंक महादेव मंदिर का सबसे नजदीकी मिनी हवाईअड्डा भावनगर ही है। यहाँ से मुंबई और अहमदाबाद के लिए उड़ान उपलब्ध रहती है। भावनगर के सबसे नजदीक स्थित प्रमुख हवाईअड्डा अहमदाबाद में स्थित है, जिसकी दूरी यहाँ से लगभग 180 किमी है।
भावनगर रेलवे डिवीजन में स्थित भावनगर टर्मिनस इस महादेव मंदिर का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है जो वड़ोदरा, अहमदाबाद, सूरत, मुंबई, दिल्ली जैसे लगभग सभी बड़े शहरों से रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है।
मंदिर से भावनगर टर्मिनस की दूरी लगभग 25 किमी है। इसके अलावा सड़क मार्ग से भावनगर गुजरात के लगभग सभी शहरों से जुड़ा हुआ है। गुजरात राज्य परिवहन की बस सेवा का उपयोग करके आसानी से भावनगर पहुँचा सकते हैं, जहाँ से निष्कलंक महादेव मंदिर पहुँचना भी आसान ही है।