सोमवार (15 जनवरी 2024) को ओडिशा के बरगढ़ में सालाना होने वाली धनु यात्रा प्रारम्भ हुई। भगवान कृष्ण के बाल्यकाल को विशेष तरीके से मनाए जाने वाली यह यात्रा आमतौर पर खुले आसमान के नीचे होने वाला विश्व का सबसे बड़ा थिएटर माना जाता है। इस त्यौहार के 76वें संस्करण का उद्घाटन बारगढ़ के सांसद सुरेश पुजारी ने किया।
झाँकी के पहले दिन कलाकार महाराज वासुदेव और महारानी देवकी के विवाह का अभिनय करते हैं। जिस दौरान कंस अपनी बहन का विवाह करा रहा होता है, उस दौरान उसे आकाशवाणी सुनाई देती कि देवकी का आठवाँ पुत्र ही उसका वध करेगा। इसके बाद क्रोधित कंस मथुरा में अपने पिता उग्रसेन का सिंहासन पलट देता है। उसके बाद अपनी बहन देवकी तथा वासुदेव को जेल में डाल देता है।
कृष्णलीला पर आधारित इस पूरे त्यौहार के दौरान बारगढ़ को मथुरा की तरह दिखाया जाता है। बारगढ़ के किनारे बहने वाली जीरा नदी को यमुना बनाया जाता है। इसके साथ ही लगे हुए अम्बापाली गाँव को गोप और वृन्दावन में बदला जाता है। इसी गाँव में बलदाऊ और भगवान कृष्ण का का जीवन नन्द और यशोदा के घर में बीता था।
#BargarhDhanuYatra kickstarted today.
— DD News Odia (@DDNewsOdia) January 15, 2024
The famous Dhanu Yatra which is proclaimed as the world’s largest open-air theatre
Dhanu Yatra is based on Krishna Leela and showcases the mythological story of Lord Krishna and his uncle and demon king Kansa. pic.twitter.com/58VABU9JUA
बारगढ़ की यात्रा कई मायनों में ख़ास है। 11 दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार के दौरान जो भी कलाकार कंस बनता है, उसे बारगढ़ का असली शासक भी बना दिया जाता है। इस दौरान वह कंस के रूप में डीएम, एसपी और अन्य सरकारी अधिकारियों को भी अपने पास बुलाकर उन्हें अपना काम सही से करने को कहता है।
इस त्यौहार के सम्मान में सरकारी कर्मचारी भी अपना भरपूर सहयोग देते हैं। वे महाराज कंस के दरबार में लगातार हाजिरी लगाते हैं और सरकारी कामों के बारे में उन्हें जानकारियाँ देते हैं। इस दौरान सरकारी अधिकारी कंस महाराज को बताते हैं कि वे उनके आदेश के तहत हर काम का सही से पालन कर रहे हैं।
Famous open-air theatre, Dhanu Yatra inaugurated in Bargarh #Odisha pic.twitter.com/wIGflRInBB
— OTV (@otvnews) January 15, 2024
यहाँ कृष्ण और बलराम को घर-घर बुलाकर पूजा की जाती है। जब वे मथुरा के लिए निकलते हैं तो वृन्दावन वाले दुखी होते हैं। कंस महाराज नगर में राजा की तरह अपनी यात्रा निकालते हैं और अपने दरबार में अतिथियों का स्वागत भी करते हैं। इस साल पूरे शहर में 14 अलग-अलग जगह पर मंच सजाया गया है। यहाँ पर कंस महाराज अपना दरबार लगाएँगे।
इस त्यौहार के अंतिम दिन कंस महाराज को कृष्ण भगवान के हाथों मरते दिखाया जाता है। इस वर्ष इस त्यौहार का समापन 25 जनवरी को होगा। इस यात्रा का मुख्य आकर्षण कंस महाराज बनने वाला कलाकार होता है। यह यात्रा 1947-48 में शुरू हुई थी। यात्रा को भारत की आजादी के जश्न के तौर पर शुरू किया गया था।
इस त्यौहार की ख़ास बात ये है कि यहाँ जो भी कलाकार कंस का रोल निभाता है, वह इसके समाप्त होने के बाद पुरी की यात्रा पर जाता है। वहाँ जाकर वह समुद्र में पवित्र डुबकी लगाता है और भगवान जगन्नाथ के मंदिर में जाकर उनसे माफ़ी माँगता है। वह माफ़ी इसलिए माँगता है क्योंकि कंस का अभिनय करने के दौरान उसे भगवान कृष्ण के विरुद्ध अपमानजनक भाषा का उपयोग करना पड़ता है।
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