यौगिक विज्ञान के अनुसार हमारा शरीर और यह सारा अस्तित्व पाँच तत्वों से मिलकर बना है। भूमि, जल, अग्नि, वायु और आकाश- ये ही वो पाँच तत्व हैं जो इस शरीर, धरती और सम्पूर्ण सृष्टि के आधार हैं।
इन्हीं पाँच तत्वों से सृष्टि का सृजन होता है। यदि ये पाँच तत्व नकरात्मक स्वरुप में मिलते हैं, तो कीचड़ बन जाते हैं और यदि सकारात्मक प्रकार से मिलते हैं, तो भोजन बन जाते हैं।
यदा-कदा वह मानव रूप भी ले लेते हैं तो कभी चैतन्य बन जाते हैं। आप इस सृष्टि में जो कुछ भी देखते हैं, वह बस इन पाँच तत्वों का ही खेला है।
हमारे पूर्वजों ने, योग में, पाँच तत्वों से मुक्त होने की एक वैज्ञानिक प्रक्रिया बनाई थी, जिसे भूत-शुद्धि कहते हैं। यदि आप इन तत्वों का शुद्धीकरण करते हैं, तो आप ऐसी स्थिति को प्राप्त कर लेते हैं जिसे भूत-सिद्धि कहते हैं।
योग-प्रणाली में भूत-शुद्धि की इस बुनियादी परम्परा से ही कई दूसरी परम्पराएँ निकली हैं। दक्षिणी भारत में, लोगों ने इन पाँच तत्वों के लिए पाँच बड़े मंदिर भी बनाए थे। ये मंदिर अलग-अलग तरह की साधना के लिए बनाए गए थे।
जल तत्व से मुक्त होने के लिए, आप एक विशेष मंदिर में जाते हैं और एक विशेष प्रकार की साधना करते हैं। वायु तत्व से मुक्ति हेतु, आप दूसरे मंदिर में जाते हैं और भिन्न साधना करते हैं।
इसी तरह, सभी पाँच तत्वों के लिए बनाए गए पाँच अद्भुत मंदिरों में विशेष प्रकार की ऊर्जा स्थापित की गई जो उस विशेष प्रकार की साधना में सहायता करती है। पुरातन योगी एक मंदिर से दूसरे मंदिर प्रस्थान करते थे और अपनी साधना करते थे।
पञ्चभूत स्थल दक्षिण भारत में पाँच शानदार प्राचीन मंदिर हैं, जिनका निर्माण मानव चेतना को विकसित करने के एक माध्यम के रूप में किया गया था। हर एक मंदिर का निर्माण पाँच विशेष तत्वों में से एक विशेष तत्व के लिए किया गया था।
श्रीकालाहस्ती मंदिर
श्रीकालाहस्ति में मंदिर वायु तत्व हेतु, कांचीपुरम में पृथ्वी तत्व, तिरुवन्नामलाई में अग्नि तत्व हेतु, चिदंबरम में आकाश तत्व एवं तिरुवनाईकवल में जल तत्च के लिए इन मंदिरों का निर्माण किया गया था।
श्रीकालाहस्ती मंदिर, आंध्र प्रदेश के श्रीकालाहस्ती शहर में स्थित है। यह भगवान शिव के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। यह मंदिर तिरुपति से 36 किलोमीटर की दूरी पर है और यह प्रसिद्ध वायु लिंग का स्थल है, जो पाँच तत्वों में से एक का प्रतीक है, यह मंदिर पंचमहाभूत में से एक तत्व पवन या वायु से जुड़ा है।
पाँचों मंदिरों का निर्माण यौगिक विज्ञान के अनुसार इस तरह किया गया है कि ये सभी मंदिर एक विशेष किस्म के भौगोलिक संरेखण में हैं तथा उनके द्वारा पैदा की जाने वाली अपार संभावनाओं का असर पूरे क्षेत्र पर होता है।
आने वाले कुछ हफ़्तों में आपको श्रीकालाहस्ति, कांचीपुरम, तिरुवन्नामलाई, चिदंबरम एवं तिरुवनाईकवल के मंदिरों की यात्राओं पर ले चलूँगा।
यह लेख मनीष श्रीवास्तव ने लिखा है।