अयोध्या में भगवान राम की जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का काम जोरों पर है। 22 जनवरी, 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में यहाँ रामलला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की जाएगी। इस अवसर के लिए अभी से पूरे देश में भक्तिभाव में हर्ष और उल्लास का माहौल बना हुआ है। इसी समय पर हिन्दू समाज को कारसेवक कहे गए वो तमाम रामभक्त याद आ रहे हैं जिन्होंने मुगलकाल से मुलायम काल तक रामजन्मभूमि के लिए स्वयं को स्वाहा कर दिया।
दिसंबर 2023 से ऑपइंडिया की टीम अयोध्या में है जहाँ हमने ऐसे तमाम परिवारों से मुलाकात की। इन्हीं में एक परिवार रमेश कुमार पांडेय का भी है। उन्हें 2 नवंबर, 1990 को मुलायम सिंह यादव की सरकार के आदेश पर गोली मार दी गई थी।
किराए के घर में रहता है परिवार
दिवंगत रमेश कुमार पांडेय का परिवार अयोध्या रानी बाजार क्षेत्र में रहता है। यह जगह हनुमान गढ़ी से कुछ ही दूरी पर स्थित है। जब हम उनके घर पहुँचे तो वह बंद था। हमने आवाज दी तो अंदर से एक सुरेश नाम का युवक निकला जिसने खुद को रमेश पांडेय का बेटा बताया। सुरेश हमें अपने घर के अंदर ले गए। घर में जरूरी रोजमर्रा की जरूरत के सामानों का अभाव दिखा। जिस घर में रमेश कुमार पांडेय का परिवार रहता है वो सैकड़ों साल पुराना है।
यह मकान अयोध्या नरेश की प्रॉपर्टी है जिस में रमेश का परिवार लगभग 40 वर्षों से किराए पर है। जब हमने सुरेश से पूछा कि क्या उनके पास निजी मकान नहीं है तो उन्होंने जवाब दिया ‘नहीं’।
ईंट-भट्ठे पर नौकरी कर के पालते थे परिवार
सुरेश ने हमें बताया कि उनके पिताजी मूल रूप से पड़ोसी जिले गोंडा के रहने वाले थे। वो सन 1970-80 के दशक में अयोध्या कमाने के लिए बसे थे। यहाँ वो एक ईंट-भट्ठे पर मुंशी का काम करते थे। भगवान राम के परम भक्त होने के नाते रमेश ने किराए का मकान रामजन्मभूमि के ही आसपास लेना चाहा। आखिरकार हनुमानगढ़ी पर उनको किराए पर कमरा मिल गया जहाँ उनका परिवार आज तक है। अपने पिता की तस्वीर हाथों में ले कर हमें दिखाते हुए सुरेश भावुक हो गए।
पिता के देहांत के बाद माँ ने पाला परिवार
अपने बचपन की याद दिलाते हुए रमेश ने बताया कि 1990 में बलिदान के समय उनके पिता की उम्र 40 वर्ष के आसपास थी। रमेश की पत्नी तब लगभग 35 वर्ष थी। रमेश 2 बेटियाँ और इतने ही बेटे मिला कर कुल 4 बच्चों के पिता थे। उनके न रहने पर उनकी पत्नी ने पूरे परिवार को पाला-पोषा। उन्होंने सभी बेटी-बेटों की शादियाँ की। रमेश के बेटे सुरेश भी बाल-बच्चेदार हैं। फिलहाल वो एक छोटी सी दुकान चला कर अपने परिवार का गुजारा चला रहे हैं। दिवंगत रमेश पांडेय की पत्नी अभी जीवित हैं।
रमेश के सिर में मारी गई थी गोली
सुरेश पांडेय ने 2 नवंबर, 1990 की घटना का जिक्र करते हुए बताया कि उस दिन क्या हुआ था। 30 अक्टूबर, 1990 को गोलीकांड के बाद तत्कालीन मुलायम सरकार को लगा कि उन्होंने रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन को कुचल दिया है। सुरेश के अनुसार, तब उनके पिता भगवान राम का दर्शन करने की इच्छा लिए एक जत्थे एक साथ जन्मभूमि की तरफ निकले थे। जत्थे में अयोध्या के ही कई अन्य निवासी शामिल थे। इसी दौरान मुलायम सिंह सरकार के आदेश पर गोलियाँ बरसा दी गईं। रमेश कुमार पांडेय जत्थे में सबसे आगे चल रहे थे। गोली उनके सिर पर लगी जिस से मौके पर ही उनका प्राणांत हो गया।
जिस स्थान पर रमेश को गोली मारी गई वो जगह हनुमानगढ़ी के पास ही है। यह स्थान रमेश के घर से महज 300 मीटर दूर ही होगा। अयोध्या पुलिस स्टेशन भी रमेश के घर और उनके बलिदान स्थल से महज आधे किलोमीटर दूरी पर मौजूद है। बताया जा रहा है कि जत्थे को राम का भजन गाते हुए जाता देख कर वहीं से निकली फ़ोर्स ने घेराबंदी कर के गोलियों की बौछार कर दी और उसमें रमेश कुमार पांडेय की मृत्यु हो गई। सुरेश का कहना है कि उनके मन में यह टीस पूरी जिंदगी बनी रहेगी भले ही वो 1990 में महज 2 साल के थे।
शव लेने के लिए भी करना पड़ा संघर्ष
सुरेश ने बताया कि उनकी माता को अपने पति का शव लेने के लिए बहुत जद्दोजहद करनी पड़ी थी। दावा है कि पहले तो कोई प्रशासनिक अधिकारी बताने को ही तैयार नहीं हो रहा था कि रमेश पांडेय के साथ क्या हुआ। अपने पति की मौत की जानकारी उनको जत्थे में साथ चल रहे लोगों से हुई। बकौल सुरेश, उनकी माँ ने कई जगहों पर मिन्नत की और अन्न-जल त्याग कर अपने पति की लाश लेने के लिए दौड़ती रहीं। आखिरकार तमाम शवों के बीच रमेश कुमार की भी डेड बॉडी मिली।
कानूनी औपचारिकताओं के बाद रमेश का अंतिम संस्कार अयोध्या में ही हुआ। अंतिम संस्कार के समय भी पूरी अयोध्या पुलिस छावनी बनी थी और शव यात्रा में शामिल लोग भी बंदूकों के साये में रहे थे।
सम्मान को भी मोहताज रहा परिवार
सुरेश ने हमें बताया कि पिता के देहांत के बाद जब उनकी माँ 4 बच्चों का परिवार पालने के लिए जूझ रहीं थीं तब उनकी कहीं से कोई मदद नहीं हुई। स्थानीय प्रशासन की तरफ से 1 लाख रुपए दिए गए थे जो इस परिवार के भरण-पोषण के लिए नाकाफी थे। सुरेश का यह भी कहना है कि बीते 3 दशकों में आर्थिक मदद तो दूर वो और उनका परिवार किसी बड़े मंच आदि पर सम्मान के लिए भी मोहताज रहा क्योंकि उनको कहीं बुलाया ही नहीं गया। हालाँकि सुरेश को आशा है कि बदले माहौल में सरकार और हिन्दू समाज के लोग उनके घर की सुध लेंगें।
‘राम मंदिर बनना पिता की आत्मा को शांति’
दिवंगत रमेश पांडेय का परिवार राम मंदिर बनने से बेहद खुश है। उनके बेटे सुरेश ने इसे अपने पिता की आत्मा को शाँति मिलने जैसा बताया। मंदिर निर्माण के लिए सुरेश ने सबसे बड़ा श्रेय उन रामभक्तों को दिया जिन्होंने अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया। इसी के साथ रमेश के परिजनों ने अयोध्या के विकास के लिए मोदी और योगी सरकार की भी तारीफ की। सुरेश को यह भी उम्मीद है कि उनके बलिदानी पिता की याद में वर्तमान सरकार अयोध्या में स्मारक भी बनवाएगी जो वर्तमान और भविष्य के रामभक्तों की प्रेरणा का स्रोत बनेगा।