5 अगस्त को अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भव्य राम मंदिर की नींव रखी। देश और दुनिया के तमाम आस्तिकों ने इसके लिए प्रार्थना की थी। कुछ ने प्रार्थना तो कुछ ने प्रतिज्ञा भी की थी, ऐसी अटूट प्रतिज्ञाएँ, जो सालों पुरानी थीं और 5 अगस्त को उनका तर्पण हुआ।
अयोध्या के नज़दीक पूरा बाज़ार और उसके आस-पास लगभग 105 गाँव मौजूद हैं। यहाँ के सूर्यवंशी क्षत्रिय परिवारों ने प्रतिज्ञा की थी कि वे लोग मंदिर निर्माण के बाद ही पगड़ी पहनेंगे। गाँव के क्षत्रियों ने संकल्प लिया था कि वह राम मंदिर निर्माण पूरा होने तक न तो पगड़ी धारण करेंगे और न ही चमड़े का जूता पहनेंगे।
जानकारी के मुताबिक़ राम मंदिर पर हमले के वक्त सूर्यवंशी समाज के क्षत्रियों ने शपथ ली थी। इसके अनुसार जब तक मंदिर निर्माण नहीं होता, तब तक वह पगड़ी नहीं पहनेंगे, छाते से सिर नहीं ढकेंगे। इसके अलावा चमड़े का जूता भी नहीं पहनेंगे।
सूर्यवंशी क्षत्रिय अयोध्या के अलावा बस्ती जिले के कई गाँवों में भी रहते हैं। यह सारे परिवार खुद को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का वंशज मानते हैं। इन सभी गाँवों में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद से पगड़ी बाँटी जा रही है।
क्षत्रिय समाज के लिए यह जितना धर्म का मसला था, उतना ही जज्बातों का भी था। इस मुद्दे पर अयोध्या के रहने वाले महेंद्र प्रताप ने स्वराज्य से कई बातें बताई। उन्होंने कहा “हमारे पूर्वजों ने बहुत पहले ही पगड़ी पहनने से मना कर दिया था। उन्होंने शपथ ली थी कि जब तक रामलला का भव्य मंदिर नहीं बन जाता, तब तक वह बिना पगड़ी और बिना जूतों के ही रहने वाले हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि वो अपने सम्मान से समझौता नहीं करते हैं और न ही हार स्वीकार करते हैं। और पगड़ी उनके लिए सम्मान का विषय है, इसलिए उन्होंने पगड़ी का त्याग कर दिया। इसके बाद प्रताप ने बताया कि उनकी पीढ़ी के लोगों ने तो गमछे का इस्तेमाल करना भी बंद कर दिया था।
साक्षात्कार के दौरान बात करते हुए प्रताप कई बार भावुक तक हुए। उन्होंने कहा, “हमने रामलला को सालों तक टेंट में देखा और इस कष्ट की व्याख्या नहीं की जा सकती है। अपने आराध्य श्रीराम को इस तरह टेंट में देखना बहुत पीड़ा देने वाला दौर था। हम हिंदुओं के साथ यही दिक्कत है, हम एक नहीं हो पाते हैं। हम खुद घरों में रह रहे थे लेकिन इस बात पर अफ़सोस नहीं जताते थे कि हमारे आराध्य टेंट में रह रहे थे।”
अंत में उन्होंने बताया कि भले 5 अगस्त बीत गई है लेकिन अभी तक माहौल वैसा ही बना हुआ है। रामायण और सुंदर-कांड का पाठ अभी भी चल रहा है। लोग अभी भी श्रीराम का भजन गा रहे हैं और खुशी मना रहे हैं।
इसके बाद शीतला सिंह ने खुशी से कहा, “पहनेंगे पगड़ी और साफ़ा पहनेंगे। भूमि पूजन हो चुका है और अब मंदिर निर्माण शुरू होगा। हमारे समुदाय के लोग पगड़ी पहनेंगे, हमसे ज़्यादा खुशी और किसे होगी।” इनके अलावा रमेश सिंह अयोध्या में हुए प्रसाद वितरण में मदद कर रहे थे। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करना होगा कि अतीत में न जाएँ। बल्कि वर्तमान को ही सत्य माना जाए।
अयोध्या के नज़दीक ही सरायरासी नाम की जगह है। बासदेव सिंह यहीं के रहने वाले हैं और पेशे से वकील हैं। भास्कर में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक़ उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय का आदेश होने के बाद सरायरासी में अब तक 400 पगड़ी बाँटी जा चुकी है। अयोध्या और इसके आस-पास स्थित गाँवों में इस समाज के लगभग 1.5 लाख लोग रहते हैं। इनमें से कोई शादी, सामाजिक समारोह और पंचायत तक में पगड़ी नहीं बाँधता था।
अयोध्या के भारती कथा मंदिर की महंत ओमश्री भारती ने भी इस बारे में अपना नज़रिया रखा। उन्होंने कहा “क्षत्रिय समाज अभी तक अपनी प्रतिज्ञा का पालन करते हुए सिर पर मौरी रखता था। जिसमें सिर खुला रहता था। वह अभी तक खड़ाऊ पहनते थे क्योंकि उस ज़माने में जूते-चप्पल चमड़े के बने होते थे। जब बिना चमड़े के जूते चप्पल आए तो उन्हें भी पहनना शुरू किया लेकिन चमड़े का कुछ भी धारण नहीं किया। क्षत्रियों में इस बात को लेकर बहुत ज़्यादा खुशी है, अब तो उन्हें बस मंदिर निर्माण की प्रतीक्षा है।”
इन सभी के अलावा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश डीपी सिंह ने भी इस बारे में जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि 16वीं शताब्दी में ठाकुर गज सिंह ने मंदिर की रक्षा के लिए मुग़लों से लड़ाई लड़ी थी। लेकिन वे मंदिर की रक्षा नहीं कर पाए, क्षत्रिय समाज हार गया। फिर गज सिंह ने जूते और पगड़ी न धारण करने की प्रतिज्ञा ली। इस पर कवि जयराज ने भी लिखा है, “जन्मभूमि उद्धार होय ता दिन बड़ी भाग। छाता पग पनही नहीं और न बांधहिं पाग।”