सोमनाथ के प्रभास पाटन क्षेत्र में स्थित है वेनेश्वर महादेव मंदिर, जहाँ इस्लामिक आक्रांता महमूद गजनवी से अपनी अनन्य भक्त की रक्षा करने के लिए भगवान शिव ने उसे अपने भीतर समाहित कर लिया था और जिसके नाम से ही महादेव वेनेश्वर कहलाए। वेनेश्वर महादेव मंदिर में आज भी इस अद्भुत घटना के प्रमाण मिलते हैं क्योंकि यहाँ स्थापित शिवलिंग को दो टुकड़ों में विभाजित देखा जा सकता है।
मंदिर का इतिहास
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रथम पूज्य सोमनाथ भी इसी प्रभास पाटन क्षेत्र में स्थित हैं। यह स्थान पौराणिक महत्व का है और यहाँ स्थित हैं कई ऐसे मंदिर, जिनका कोई न कोई पौराणिक इतिहास अवश्य रहा है। यह स्थान कई बार इस्लामिक आक्रान्ताओं का शिकार भी बना। वेनेश्वर महादेव मंदिर में भी कई बार निर्माण कार्य कराए गए और मंदिर का जीर्णोद्धार भी हुआ, इसलिए इस मंदिर के निर्माण के बारे पुख्ता जानकारी प्राप्त नहीं है। सन् 1025 में गजनी के महमूद के आक्रमण के समय में यह मंदिर मौजूद था, ऐसे में यह अंदाजा लगाया जाता है कि इस मंदिर का इतिहास 1,000 साल से भी अधिक पुराना है।
महमूद गजनवी से राजकुमारी वेनी की रक्षा
सन् 1025 का समय था। महमूद गजनवी सोमनाथ को लूटने के इरादे से भारत आया हुआ था। सोमनाथ के वैभव के कारण ही यह क्षेत्र अक्सर इस्लामिक आक्रान्ताओं के निशाने पर रहा। जब महमूद गजनवी सोमनाथ को लूटने के लिए आगे बढ़ा तो उसे सोमनाथ के स्थानीय राजपूत शासक से कड़ी टक्कर मिली। राजपूत शासक किसी भी हालत में समर्पण करने को तैयार नहीं थे। सोमनाथ की सुरक्षा में जुटे शासक के साहस के आगे महमूद गजनवी बेबस नजर आ रहा था और उसे सोमनाथ को लूटने का अपना स्वप्न भी अधूरा लगने लगा। ऐसे में उसने अपनी वही कट्टर इस्लामिक प्रवृत्ति अपनाई।
महमूद गजनवी ने राजपूत शासक की बेटी राजकुमारी वेनी के अपहरण की योजना बनाई। महमूद गजनवी की योजना थी कि राजकुमारी का अपहरण करके राजा पर दबाव बनाया जाए। राजकुमारी वेनी एक प्रखर शिवभक्त मानी जाती थीं और प्रभास पाटन किले के बाहर स्थित भगवान शिव के मंदिर में रोज उनकी आराधना करने जाया करती थीं। जब महमूद गजनवी और उसकी इस्लामिक फौज ने राजकुमारी वेनी का अपहरण करने की कोशिश की, तब वेनी ने खुद को उसी मंदिर के अंदर बंद कर लिया और भगवान शिव से अपनी रक्षा करने की प्रार्थना की। कहा जाता है कि उस दिन भगवान शिव ने वो चमत्कार दिखाया, जो संभवतः कभी भी देखा नहीं गया था। राजकुमारी वेनी की प्रार्थना सुनने के बाद मंदिर में स्थापित शिवलिंग दो भागों में विभक्त हो गया और उसने राजकुमारी वेनी को अपने अंदर समाहित कर लिया।
राजकुमारी वेनी से जुड़ा हुआ यह इतिहास महान साहित्यकार केएम मुंशी के द्वारा लिखे गए एक उपन्यास में वर्णित है। उसी दिन से इस मंदिर में भगवान शिव, अपनी अनन्य भक्त के नाम से वेनेश्वर महादेव कहलाए। भगवान शिव ने न केवल अपनी भक्त की रक्षा की बल्कि उसे अमर भी कर दिया। इस मंदिर के शिवलिंग में वेनी की निशानियाँ आज भी देखी जा सकती हैं।
कैसे पहुँचें?
पौराणिक रूप से देव पाटन कहा जाने वाला प्रभास पाटन क्षेत्र गिर सोमनाथ जिले के वीरावल में स्थित है। यहाँ से नजदीक स्थित हवाईअड्डे दीव और राजकोट में हैं, जहाँ से मुंबई समेत कई अन्य शहरों के लिए उड़ाने उपलब्ध हैं। वेनेश्वर महादेव मंदिर से इन दोनों हवाईअड्डों की दूरी क्रमशः 86 किलोमीटर (किमी) और 199 किमी है। इसके अलावा वीरावल शहर और सोमनाथ में रेलवे स्टेशन हैं, जहाँ से गुजरात के कई शहरों से रेलमार्ग के द्वारा पहुँचा जा सकता है। खुद प्रभास पाटन क्षेत्र का रेलवे स्टेशन अपनी मंदिर जैसी संरचना के लिए एक दर्शनीय स्थल माना जाता है।
रेल और वायु मार्ग के अलावा वीरावल और सोमनाथ गुजरात के लगभग सभी बड़े शहरों से सड़क मार्ग से जुड़े हुए हैं। यहाँ से वेनेश्वर महादेव मंदिर पहुँचना बहुत आसान है। प्रभास पाटन मुख्यालय से मंदिर की दूरी मात्र आधा किमी है, जबकि सोमनाथ मंदिर से वेनेश्वर महादेव मंदिर की दूरी लगभग 1 किमी है। वीरावल से मंदिर 8 किमी की दूरी पर स्थित है।