हाल ही में तमिल अभिनेता सूर्या की फिल्म ‘जय भीम’ को ‘अमेज़न प्राइम’ पर रिलीज किया गया। इंटरनेट पर इसका एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें हिंदीभाषियों के विरुद्ध हिंसा और घृणा को बढ़ावा दिया गया है। अब इस फिल्म पर आरोप लग रहे हैं कि वास्तविक घटनाओं की आड़ में चीजों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है। जहाँ फिल्म के निर्माता-निर्देशकों ने इसे असली घटनाओं पर आधारित कहानी बताया है, लोगों का कहना है कि इसमें कई चीजें वास्तविकता से परे हैं।
इसमें 1990 की कहानी दिखाई गई है, जब एक वकील एक महिला का केस मद्रास हाईकोर्ट में लड़ता है। उस महिला के पति को पुलिस ने लॉकअप में मार दिया होता है। वनवासी समुदाय पर पुलिस क्रूरता इसमें दिखाई गई है। लेकिन, लोगों का कहना है कि कुछ किरदारों की जाति जानबूझ कर बदल दी गई है। गुंडों को ‘वन्नियार’ समुदाय से दिखाया गया है। इसमें दिखाया गया है कि ‘वन्नियार’ समुदाय का सब-इंस्पेक्टर मुख्य विलेन है और वो इरुलर समुदाय का दुश्मन है।
தோழர் சூர்யா வேலய காட்ட ஆரம்பிச்சிட்டாப்ல..#குறியீடு – வன்னியர் சமூக ஆளை வில்லனாக காட்டியிருக்காங்க…#குறிப்பு – படத்த படமா பாருங்க டா னு அட்வைஸ் பன்ற புரட்சி போராளிகளுக்கு என்னோட பதில்
— Jayam.SK.Gopi (JSK.Gopi) (@JSKGopi) November 2, 2021
இதே மாதிரி #திரௌபதி.#ருத்ர_தாண்டவம் படத்தையும் ஏன்டா நீங்க படமா பாக்கல… pic.twitter.com/J97xdAGeDw
जबकि सच्चाई ये है कि वास्तविकता में उस सब-इंस्पेक्टर का नाम ‘एंथोनी सामी’ था और वो ‘वन्नियार’ समुदाय से नहीं था। ‘वन्नियार’ समुदाय ने इसके बाद अभिनेता सूर्या पर उन्हें बदनाम करने का आरोप लगाया है। इसमें सूर्या को ब्राह्मण समुदाय के प्रति घृणा फैलाने के आरोप भी लगे हैं। हमेशा ‘शिवाय नमः’ कहने वाले एक ब्राह्मण वकील से बात करते हुए ऐसा दिखाया गया है कि ब्राह्मणों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। वैसे भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के लिए ये कोई नई बात नहीं है।
#தந்தை_பெரியார் அன்றே சொன்னார்!#பார்ப்பான் எதை ஆதரிக்கிறானோ!#நாம் அதை எதிர்க்க வேண்டும் என்று!
— Saravanan Gandhi (@SaravananGand18) November 3, 2021
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अपना नैरेटिव बनाने के लिए ये लोग अक्सर झूठ का सहारा लेते हैं और वास्तविक घटनाओं के नाम पर बेची जाने वाली फिल्मों में नैरेटिव के हिसाब से छेड़छाड़ का तड़का लगाया जाता है। ‘क्रिएटिव लिबर्टी’ के नाम पर अपनी विचारधारा फैलाई जाती है। वास्तविकता को बदल कर दिखाने वाली ‘जय भीम’ न तो पहली फिल्म है और न ही ये आखिरी होगी। तथ्यों को ट्विस्ट कर के इसे प्रोपेगंडा का रूप देना कोई भारतीय मनोरंजन इंडस्ट्री से सीखे। इनका लक्ष्य कभी वास्तविकता दिखाना होता ही नहीं। उदाहरण हम बताते हैं।
चक दे इंडिया: मीर रंजन नेगी को बना दिया कबीर खान
शाहरुख़ खान की फिल्म ‘चक दे इंडिया’ भी इसी श्रेणी में आती है, जहाँ तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। शाहरुख़ खान ने इसमें एक मुस्लिम हॉकी खिलाड़ी का किरदार अदा किया है, जिसकी देशभक्ति पर सवाल खड़े किए जाते हैं। मुस्लिम बहुल पाकिस्तान के विरुद्ध अच्छा प्रदर्शन न करने पर उस पर ये आरोप लगते हैं। इस फिल्म में भारत में ‘मुस्लिमों के साथ मजहब के आधार पर भेदभाव’ वाला नैरेटिव आगे बढ़ाया गया था। ‘कबीर खान’ बाद में कोच बन कर लौटता है और भारत को जितवा देता है।
उससे पहले उसे उसके पड़ोसी ‘देशद्रोही’ कह कर बुला रहे होते हैं। ये पूर्व भारतीय गोलकीपर मीर रंजन नेगी से प्रेरित फिल्म है। 1982 के एशियन गेम्स में पाकिस्तान के खिलाफ 1-7 से हार के बाद उनका करियर ख़त्म हो गया था। पाकिस्तानी खिलाड़ियों का गोल न रोकने के कारण उन्हें लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा था। कई वर्षों बाद वो लौटे और भारतीय पुरुष व महिला टीम के कोच के रूप में शानदार प्रदर्शन किया। 2002 कॉमनवेल्थ में स्वर्ण पदक विजेता टीम के वो गोलकीपर कोच थे। 2004 एशिया कप विजेता टीम के वो अस्सिस्टेंट कोच थे।
शेरनी: असगर अली खान को बना दिया ‘पिंटू भैया’
विद्या बालन की फिल्म ‘शेरनी’ में भी ऐसा ही ‘खेला’ किया गया है। इसमें अवनि नाम के एक बाघिन की कहानी दिखाई गई है। ये बाघिन आदमखोर बन गई थी और उसने 14 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। इसे असगर अली खान नाम के एक शिकारी ने मार गिराया था। लेकिन, फिल्म में बाघिन को मार गिराने वाला शिकारी कलावा पहनता है और उसे हिन्दू दिखाया गया है। इसमें उसका नाम ‘रंजन राजहंस’ उर्फ़ ‘पिंटू भैया’ होता है। इसी तरह IFS केएम अभरणा ने उस शिकारी को सज़ा दिलाई थी।
लेकिन, फिल्म में इसी किरदार को अदा कर रहीं विद्या बालन को ईसाई नाम दिया गया है। अधिकतर वरिष्ठ फॉरेस्ट अधिकारी जो हिन्दू हैं, उन्हें भ्रष्ट और अनैतिक दिखाया गया है। जबकि हसन नूरानी नाम का अधिकारी ईमानदारी की प्रतिमूर्ति होता है। हिन्दू अधिकारियों को जानबूझ कर बुरा दिखाया गया है। एक गुंडे को तो सरकारी दफ्तर में पूजा और भजन करते हुए दिखाया गया है। हिन्दू प्रथाओं और परंपराओं का मजाक बनाने में बॉलीवुड तो आगे है ही।
आर्टिकल 15: बदायूँ रेप काण्ड के दोषियों को बना दिया ब्राह्मण
इसी तरह की एक फिल्म आई थी ‘आर्टिकल 15’, जिसमें आयुष्मान खुराना ने पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाई थी। अनुभव सिन्हा की इस फिल्म को सच्ची घटनाओं के आधार पर तैयार बताया गया था। उत्तर प्रदेश के बदायूँ में दो लड़कियों के बलात्कार एवं हत्या पर ये आधारित था। इसे तब ‘दलितों पर उच्च-जाति का अत्याचार’ बता कर प्रचारित किया गया था। यूपी में तब अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा की सरकार थी। आरोपितों के नाम थे – पप्पू यादव, उर्वेश यादव, छत्रपाल यादव, सर्वेश यादव।
छत्रपाल और सर्वेश पुलिस अधिकारी थे। पुलिस की जाँच पर सवाल उठे थे। सपा सरकार पर यादव होने के कारण आरोपितों को बचाने के आरोप लगे थे। CBI ने अपनी जाँच में 14-15 वर्ष की दोनों लड़कियों की हत्या व बलात्कार की बात नकारते हुए आरोपितों को क्लीन चिट दे दी। अनुभव सिन्हा मनी लॉन्ड्रिंग केस में फँसे रहे हैं और उन्होंने पाकिस्तानियों को अवैध रूप से ‘मुल्क’ फिल्म देखने की सलाह दी थी। फिल्म में सभी बुराइयों की जड़ को एक ‘महंत जी’ को बताया गया है, जो योगी आदित्यनाथ को बदनाम करने की कोशिश थी। दोषी पुलिस अधिकारी को ब्राह्मण बना दिया गया है।
चंद्रकांता: मुस्लिमों को अच्छा दिखाने के लिए जोड़ दिया एक किरदार
1990 के दशक की शुरुआत में ‘चंद्रकांता’ नाम के एक सीरियल का खूब क्रेज था। इसे देवकी नंदन खत्री के इसी नाम के एक उपन्यास के आधार पर बनाया गया था। दर्शकों के बीच ये काफी लोकप्रिय हुआ था। लेकिन, ये सीरियल उस उपन्यास का ठीक से प्रतिनिधित्व नहीं करता था। उपन्यास में कोई ऐसा अच्छा किरदार है ही नहीं, जो कि मुस्लिम हो। उसमें विलेन या कॉमेडी के किरदारों में कुछ मुस्लिम किरदार हैं। दूरदर्शन पर ये सीरियल उस समय आता था।
इसीलिए, दूरदर्शन वालों को इससे बड़ी चिंता हुई कि भला इस सीरियल में कोई ‘अच्छा मुस्लिम’ क्यों नहीं है। इसीलिए, उन्होंने उपन्यास की कहानी से छेड़छाड़ कर के एक ‘अच्छा मुस्लिम’ का किरदार इसमें जोड़ दिया। ‘जांबाज’ नाम के उस मुस्लिम किरदार को मुकेश खन्ना ने अदा किया था। इसमें वो हिन्दू हीरो को उसके प्यार को पाने में सहायता करता है। जब वो किरदार स्क्रीन पर आता था, जो पीछे से अजान की आवाज़ आती थी। यानी, मुस्लिमों को अच्छा दिखाने के लिए कला के नाम पर ये किसी भी हद तक जा सकते हैं।
‘काबुली वाला’: रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी से भी छेड़छाड़
इसी तरह रवींद्रनाथ टैगोर की कहानी ‘काबुलीवाला’ के साथ भी छेड़छाड़ की गई। ये सीरीज इससे पहले ‘एपिक’ नाम के चैनल पर आई थी। इसे अनुराग बासु ने बनाया था। इसमें दिखाया गया है कि लड़की ‘मिनी’ नमाज पढ़ रही होती है, क्योंकि उसका दोस्त ‘काबुलीवाला’ उस दिन नहीं आया होता है। असली कहानी में ऐसा कुछ भी नहीं है। इसमें उसे ‘काबुलीवाला के गॉड’ से प्रार्थना करते हुए दिखाया गया है, ताकि वो आ जाए। ओरिजिनल कहानी में कहीं भी हिन्दू लड़की के नमाज पढ़ने का जिक्र नहीं है।