साउथ की ‘कंथारा’ फिल्म के बाद दक्षिण सिनेमा की एक और फिल्म का लोगों को बेसब्री से इंतजार है। इस फिल्म का नाम ‘मलिकप्पुरम’ है, जो बड़े पर्दे पर 30 दिसंबर 2022 को रिलीज होने वाली। इस फिल्म में भगवान अय्यपा के प्रति एक 8 साल की बच्ची की श्रद्धा को दिखाया गया है।
सबरीमाला में भगवान अय्यप्पा के समकक्ष देवता मलिकप्पुरथम्मा या मंजामाथा का लोगों पर उतना ही भावनात्मक प्रभाव है जितना अय्यप्पन का। मलयालम की नई आगामी फिल्म देवी मलिकप्पुरम की कहानी और अवधारणा पर आधारित है, जिसमें नए मलयालम नायक उन्नी मुकुंदन नजर आएँगे हैं। फिल्म दक्षिण से अगली ‘कंथारा’ हो सकती है लेकिन इस बार ये केरल से होगी।
From Tomorrow! ❤️❤️❤️ #Malikappuram
— Unni Mukundan (@Iamunnimukundan) December 29, 2022
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जब आप सबरीमाला तीर्थयात्रा पर जाने के लिए अय्यप्पा की पवित्र मुद्रा (बैज चेन) पहनते हैं, उस क्षण से सभी महिलाएँ आपके लिए “मलिकप्पुरम” होती हैं। आप उन्हें देखते हैं, आप उन्हें पवित्र देवता की तरह देखते हैं और पवित्र मुद्रा की चेन बैज पहनने वाले सभी को “अयप्पा स्वामी” ही कहा जाता है। तो जब तक आप सबरीमाला तीर्थयात्रा पूरी नहीं कर लेते और मुद्रा चेन बैज को सरेंडर नहीं कर देते, तब तक आप सभी महिलाओं में माँ मलिकप्पुरम को देखती हैं। जहाँ तक सबरीमाला का संबंध है, ‘मलिकप्पुरम’ की यही पवित्र अवधारणा है। माना जाता है कि भगवान अय्यप्पा भगवान शिव और भगवान विष्णु के मोहिनी (महिला) के रूप में पैदा हुए थे।
विश्वास और ऐतिहासिक संदर्भों के अनुसार, मलिकप्पुरम मदुरा, तमिलनाडु के श्री मधुरा मीनाक्षी अम्मन का अवतार है और पंथलम साम्राज्य के पारिवारिक देवता भी हैं। भगवान अय्यप्पा पंथला साम्राज्य के राजकुमार थे और उन्होंने सिंहासन और राज्य को छोड़ दिया और वन (सबरीमाला) में चले गए और हमेशा के लिए योगध्यान प्राप्त कर लिया। पंथलम राजा माना जाता है।
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— Jishnu G (@JishnuG2) November 17, 2022
केरल के एक राजनीतिक स्पेक्ट्रम में भी, मलिकप्पुरम फिल्म का अपना महत्व है। केरल सरकार द्वारा मंदिर की प्रथा के विरुद्ध युवा महिलाओं को सबरीमाला जाने की अनुमति देने के फैसले के बाद, लाखों महिलाएँ अपनी आस्था और परंपराओं की रक्षा के लिए सड़कों पर उतर आईं।
सबरीमाला को गिराने के लिए कुछ साल पहले हुई सरकार की साजिश के खिलाफ दुनिया ने केरल की सड़कों पर उन ‘मलिकप्पुरम’ की ताकत देखी है। केरल राज्य भर में उनकी, मलिकप्पुरम की प्रार्थना रैली (नामजप यात्रा) ने केरल सरकार को पैरों पर आने के लिए मजबूर कर दिया और उनका दृढ़ संकल्प टूट गया।