‘अमेज़न प्राइम वीडियोज’ ने बृहस्पतिवार (अक्टूबर 22, 2020) को अपनी बहुचर्चित वेब सीरीज ‘मिर्जापुर’ का दूसरा सीजन 10 एपिसोड्स के साथ लाइव कर दिया। इसे तय समय से 3 घंटे पहले ही लाइव किया गया। इसमें अली फजल और दिव्येंदु शर्मा मुख्य किरदारों में हैं लेकिन दूसरे सीजन को कालीन भइया यानी, पंकज त्रिपाठी के नाम पर ही बेचा गया। सीजन-2 में विजय वर्मा को 2 जुड़वाँ किरदारों के रूप में एंट्री दी है है, जो ‘बिहार के गुंडे’ होते हैं।
अब सीधा पॉइंट पर आते हैं। अली फजल ने किस कदर दिल्ली के दंगाइयों का समर्थन किया था और हिन्दुओं की लाशों में अपने लिए ‘मजा’ ढूँढा था, ये तो सभी को पता है। दिव्येंदु शर्मा ने विरोध को दरकिनार करते हुए दावा किया था कि इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है। वहीं, इस शो के निर्माताओं में से एक फरहान अख्तर, जो बिना कुछ जाने-समझे CAA विरोधी रैलियों में जाते थे, उनसे हिन्दुओं की भावनाओं के सम्मान की अपेक्षा ही बेमानी है।
पहले सीजन की तरह ‘मिर्जापुर’ का दूसरा सीजन भी गालियों से भरा पड़ा है, जहाँ गालियाँ न सिर्फ गुस्से में दी जाती है, बल्कि ये भी दिखाया गया है कि यूपी-बिहार के युवक आपस में बातचीत करते हुए मजाक में भी एक-दूसरे के माँ-बाप और परिवार को माँ-बहन की गालियाँ बकते हैं। अश्लीलता के प्रदर्शन में भी कोई कमी नहीं रखी गई है। हाँ, ‘वफादार’ मुस्लिम किरदारों का महिमामंडन ज़रूर जारी रखा गया है।
‘मिर्जापुर’ के दूसरे सीजन के पहले ही एपिसोड में एक दृश्य आता है, जहाँ मुन्ना त्रिपाठी किसी तरह बच कर अपने घर में ही बिस्तर पर पड़ा होता है और उसका इलाज चल रहा होता है। उसके पिता अखंडानंद त्रिपाठी उर्फ़ ‘कालीन भइया’ उसकी ‘लम्बी उम्र’ के लिए पूजा रखवाते हैं। वैसे भी बॉलीवुड में पूजा करते हुए उन्हीं लोगों को दिखाया जाता है, जो या तो एकदम ‘डम्ब’ होते हैं, या फिर पुराने ख़यालात वाले होते हैं।
इसमें भी ऐसा ही होता है। पूजा वाले दृश्य में मुन्ना त्रिपाठी पूजा-अर्चना की प्रक्रिया में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहा है, क्योंकि वो ‘कूल’ है और ‘नए जमाने’ का है। इतना ही नहीं, वो पंडित की तरफ हिकारत भरी नजरों से भी देखता नज़र आता है। यहाँ पूजा कराने वाले पंडित का जो चित्रण किया गया है, वो बॉलीवुड की दशकों पुरानी प्रथा का निर्वहन है, जिसके हिसाब से ब्राह्मण चुगलखोर, लालची और रूढ़िवादी होता है।
सामने पंडित की बैठ कर प्लेट में खीर खाते हुए ‘सुर्र-सुर्र’ की आवाज़ कर रहे होते हैं। पूरे दृश्य में एक एक ही अनाड़ी बैठा हुआ है और वो है ब्राह्मण, जिसका किरदार पंडित शिवेश शर्मा ने निभाया है। अचानक से मुन्ना त्रिपाठी को गुस्सा आता है और वो कहता है, “हो गया आपका? क्या इतनी देर से सुर्र-सुर्र करने में लगे हुए हैं। बाल्टी मँगवा दें? खा लीजिएगा उसमें।” इसके बाद मुन्ना धोती पहने हुए पंडित को वहाँ से भगा देता है।
I will be honest
— Ramesh Solanki (@Rajput_Ramesh) October 23, 2020
I loved #Mirzapur on @PrimeVideoIN and I was literally waiting to see #Mirzapur2
But I love my country infinite times more than such web series
“Jo mere desh kaa nahi woh mera nahi”
So its a complete no no for me#JaiSriRam pic.twitter.com/4nPhvnw6oj
यह एक दृश्य ये बताने को काफी है कि ब्राह्मणों को लेकर बॉलीवुड का नजरिया अभी भी वहीं का वहीं है। धोती पहने एक अनाड़ी सा आदमी, जिसे पूर्व-पश्चिम कुछ भी पता नहीं, एक जोकर और एक लालची इंसान – पंडितों को इसी तरह से दिखाया जाता रहा है और इसमें भी ऐसा ही किया गया है। एक और दृश्य ऐसा आता है, जहाँ ‘कालीन भइया’ के बूढ़े पिता और ‘भूतपूर्व गैंगस्टर’ सत्यानंद त्रिपाठी जाति-प्रथा को लेकर ज्ञान देते हैं।
बूढ़े त्रिपाठी का ‘दिव्य ज्ञान’ ये है कि जाति-प्रथा बनाई ही इसीलिए गई थी, ताकि सत्ता ब्राह्मणों के हाथ में रहे। ऐसे डायलॉग्स जानबूझ कर लिखे जाते हैं, जिसके पीछे न तो कोई ऐतिहासिक तर्क होता है और न ही कोई रिसर्च। ऐसे डायलॉग्स के जरिए समाज के एक वर्ग को ये एहसास दिलाया जाता है कि देखो, कैसे ब्राह्मणों ने तुम्हारा सैकड़ों सालों से शोषण किया है। इसी बात को यहाँ त्रिपाठी परिवार के सबसे वृद्ध सदस्य से बुलवाने की कोशिश हुई है।
एक और दृश्य है एपिसोड-6 में, जहाँ हर तरह के अवैध और उटपटांग कारनामों में लिप्त ‘रॉबिन’ अपनी गर्लफ्रेंड और गुड्डू पंडित की बहन डिम्पी को अपना असली नाम बताता है – राधेश्याम अग्रवाल। यहाँ भगवान श्रीकृष्ण के बारे में भी ‘चर्चा’ होती है। वो समझाता है कि अंग्रेजी नाम होने पर जनता ज्यादा भरोसा करती है। फिर डिम्पी उसे बताती है कि ये नाम उस पर सूट करता है, क्योंकि वो ‘रंगीन’ है। रंग की बात आते हैं राधेश्याम कहता है, “भगवान कृष्ण के भी वैसे काफी रंग थे। लेकिन, प्रेम उनका एक से ही था।“
यहाँ डिम्पी ‘फ़िल्मी बातें’ करने के लिए उस पर तंज कसती है और पढ़ाई करने लगती है। अर्थात, इनके लिए महाभारत और रामायण ‘फ़िल्मी बातें’ हैं। जो हिन्दुओं का इतिहास है, जो हमारी प्राचीन गाथाएँ हैं, उनके लिए इनके मन में यही भावना है कि वो फिल्मों के जैसे ही हैं। जहाँ भी कृष्ण की चर्चा होती है, केवल ‘रासलीला’ को गलत सन्दर्भ में पेश कर के इसी तरह से रंग और रंगीनियत की बातें की जाती हैं।
Meet “Bina Tirpathi’ a Brahmin woman in Farhan Akhtar produced #Mirzapur
— Ritu (सत्यसाधक) #EqualRightsForHindus (@RituRathaur) October 23, 2020
In 1st season she was shown having sex with step son&servant
In season two all maryadas were broken & she is shown having sex with her Sasur
Nothing can be a more filthy&dirty presentation of a Hindu woman pic.twitter.com/gZa1kuMzPP
साथ ही महिलाओं का हर लिहाज से इसमें अपमान किया गया है। एक ब्राह्मण परिवार में एक महिला का अपने ससुर के साथ सम्बन्ध होता है और नौकर के साथ सम्बन्ध होता है। जब घर में नई बहू आती है तो ससुर की उस पर गलत नजर होती है। वेश्याओं को ‘विधवाओं के गेटअप’ में लाया जाता है और फिर वो कपड़े खोल कर नाचने लगती हैं। फिर ऐसे ही सीरीज बनाने वाले लोग महिला अधिकारों के झंडाबरदार भी बनते हैं।
वहीं, जो किरदार मुस्लिम है, वो अपने उसूलों का पक्का है। मकबूल त्रिपाठी खानदान का वफादार है और चाहे कुछ भी हो जाए, वो तब तक अपमान का घूँट पीता रहता है जब तक त्रिपाठी उसकी अम्मी को नहीं मार डालते। लाला भी मुस्लिम हैं, लेकिन वो खुद को व्यापारी बताता है और गुंडे-बदमाशों से दूर रहने की बातें करता है। जब कोई गवाह गोलीकांड पर बयान देने को राजी नहीं होता, तो बूढ़ा इमरान ही क़ानून का सहायक बन कर सामने आता है, सबसे हिम्मती वही है।
देखा जाए तो सीजन-1 में जो हिन्दू-विरोधी प्रोपेगंडा की नींव खड़ी की गई थी, सीजन-2 में उस पर एक कमरा बना दिया गया है। ब्राह्मण परिवारों में महिलाओं का आदर नहीं होता है, ये दिखाने का प्रयास किया गया है। त्रिपाठी, शुक्ला और पंडित सरनेम वाले तो पहले से ही गुंडे-बदमाश थे, अब बिहार के त्यागी को लाया गया है। यानी, चारों के चारों गुंडे घराने ब्राह्मण ही हैं। और अच्छा है तो सिर्फ इमरान, मकबूल और लाला।