Sunday, November 17, 2024
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बड़े परदे पर दिखेगा तीजन बाई का ‘संघर्ष’: पंडवानी गायिका बनेंगी विद्या बालन, अमिताभ बच्चन होंगे नाना

पंडवानी का मतलब होता है ‘पांडवाओं की वाणी’ यानी महाभारत और पांडवों से जुड़े किस्सों को इस लोककला के माध्यम से कहना। इस लोककला के दो प्रकार हैं, कापालिक और वेदमती। जिसमें कापालिक शैली का पालन आदमी किया करते थे और वेदमती शैली में औरतें कथाएँ कहती थीं।

पद्म विभूषण तीजन बाई के जीवन पर हिन्दी फिल्म बनने वाली है, छत्तीसगढ़ के दुर्ग की रहने वाली तीजन बाई का किरदार बॉलीवुड अभिनेत्री विद्या बालन निभाएँगी। वहीं अमिताभ बच्चन इस फिल्म में उनके नाना का किरदार निभाने वाले हैं, फिल्म की शूटिंग अगले साल फरवरी से मार्च के बीच शुरू हो सकती है। 

फिल्म को लेकर तीजन बाई से मुलाक़ात करने, उनका किरदार समझने और छत्तीसगढ़ी भाषा सीखने के लिए विद्या बालन जल्द ही छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर का सकती हैं। तीजन बाई पंडवानी गायन के लिए पूरे देश-विदेश में प्रसिद्ध हैं। तीजन बाई के जीवन पर फिल्म बनाने के लिए निर्माताओं ने लगभग सारी औपचारिकताएँ पूरी कर ली हैं।

तीजन बाई मूल रूप से छत्तीसगढ़ के दुर्ग स्थित गनियारी (भिलाई) गाँव की निवासी हैं। उनका जन्म 24 अप्रैल 1956 में हुआ था, उनके पिता का नाम हुनुकलाल परधा और माता का नाम सुखवती देवी था। वह बचपन में अपने नाना ब्रजलाल से महाभारत की कहानियाँ सुनती थीं। कुछ ही सालों में उन्हें महाभारत की अधिकाँश कथाएँ याद हो गई थीं, तीजन बाई तंबूरे के साथ पंडवानी गायन करने वाली पहली महिला बनीं।   

पंडवानी का मतलब होता है ‘पांडवाओं की वाणी’ यानी महाभारत और पांडवों से जुड़े किस्सों को इस लोककला के माध्यम से कहना। इस लोककला के दो प्रकार हैं, कापालिक और वेदमती। जिसमें कापालिक शैली का पालन आदमी किया करते थे और वेदमती शैली में औरतें कथाएँ कहती थीं। कापालिक खड़े होकर कही जाती है और वेदमती बैठ कर लेकिन तीजन बाई ने इस चलन को सिरे से नकार दिया। तीजन बाई ने कापालिक शैली में पंडवानी कहना शुरू किया और वह ऐसा करने वाली पहली महिला थीं। उनके गाँव वालों ने ऐसा करने पर उन्हें गाँव से निकाल दिया था और यहीं से उनका संघर्ष शुरू हुआ था।  

तीजन बाई अक्सर साक्षात्कारों में कहा करती हैं, “वह समय उनके लिए बहुत कठिन था, कभी-कभी तो एक वक्त की रोटी मिलना भी मुश्किल हो जाता था।” शुरू-शुरू में उनके लिए सब कुछ बहुत कठिन था, भले वह कितने भी मन से किस्से सुनातीं लेकिन लोग उन्हें तवज्जो नहीं देते थे और विरोध अलग करते थे। इसके बावजूद तीजन बाई ने हार नहीं मानी और मात्र तेरह साल की उम्र से ही सार्वजनिक स्थानों पर पंडवानी गायन शुरू किया था। 

गाँव के गली, मोहल्लों और नुक्कड़ से शुरू हुआ सफ़र इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, रोमानिया, माल्टा जैसे तमाम देशों तक पहुँचा। भारत रत्न के अतिरिक्त तीजन बाई भारत के लगभग हर बड़े सम्मान से सुशोभित की जा चुकी हैं। तीजन बाई के साथ एक और ख़ास बात है, वह जहाँ कहीं भी जाती हैं पंडवानी की पूरी वेश-भूषा अपने साथ लेकर जाती हैं। यहाँ तक कि विदेशों में भी वह पंडवानी की पोशाक अपने साथ रखती हैं।  

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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