आर माधवन की फिल्म ‘रॉकेट्री : द नांबी इफेक्ट’ (Rocketry: The Nambi Effect) बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा रही है। 1 जुलाई, 2022 को रिलीज हुई इस फिल्म को पूरे देश में पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिल रहे हैं। फिल्म में मुख्य किरदार निभाते हुए आर माधवन ने ISRO के क्रायोजेनिक्स के पूर्व प्रमुख नांबी नारायणन की भूमिका निभाई है। बता दें कि 1994 में कॉन्ग्रेस के दौर में नंबी नारायणन पर जासूसी का झूठा आरोप लगाया गया, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। लेकिन चार साल बाद, सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था।
वहीं इस फिल्म से इंडस्ट्री में आर माधवन ने एक्टिंग के अलावा राइटिंग और डायरेक्शन में भी कदम रखा है। माधवन इसमें वैज्ञानिक नंबी नारायण की भूमिका निभाई है। इस फिल्म को लेकर माधवन ने लम्बी बातचीत की है। जिसमें उन्होंने बॉलीवुड में फिल्म मेकिंग के ढर्रे पर टिप्पणी भी की है।
दैनिक भास्कर से बात करते हुए माधवन इस फिल्म को अपना राष्ट्रीय कर्तव्य बताते हैं। माधवन बात करते हुए कहते हैं, “ऐसी फिल्में और नंबी नारायण जैसों पर फिल्म बनाना एक नेशनल ड्यूटी है। हालाँकि, यह थॉट फिल्म बनाने से पहले नहीं आया था। वह इसलिए कि मैं तो इसमें बस एक्ट करने वाला था। फिल्म को डायरेक्ट करने वाले काम पर तो मैं बहुत लेट आया। मैंने नंबी नारायण पर रिसर्च कर जाना कि इनकी कहानी दुनिया को पता चलनी ही चाहिए।”
आगे फिल्म को कई भाषाओं में बनाने की बात पर माधवन ने जवाब दिया, “लोगों को शायद पता ना हो, मगर नंबी नारायण इंडिया से ज्यादा फ्रांस में पॉपुलर हैं। वहाँ उनके कम्युनिकेशन की लैंग्वेज इंग्लिश थी। ऐसे में मैं अगर सिर्फ तमिल और इंग्लिश में यह फिल्म बनाता तो वह एक तरह का मैनिपुलेशन होता। लिहाजा हमने इसे तीन लैंग्वेज हिंदी, इंग्लिश और तमिल में बनाया।”
माधवन बहुत गर्व से आगे बताते हैं, “बॉर्डर पर लड़ने वाले देशभक्तों की कहानी तो सब जानते हैं। हमारे बीच ऐसे देशभक्त भी हैं, जो रोजाना अपनी जान जोखिम में डालते हैं। यह जानते हुए कि उनके बारे में कोई कभी नहीं लिखेगा। नंबी नारायण वैसे ही गुमनाम हीरो हैं।”
वहीं फ्री प्रेस जर्नल को दिए इंटरव्यू में जब माधवन से सवाल पूछा जाता है कि क्या आपको लगता है कि भारतीय सिनेमा ने अभी तक एयरोस्पेस जॉनर की खोज नहीं की है?
इस प्रश्न के जवाब में माधवन ने कहा, “भारतीय फिल्म निर्माता इस तरह की विशिष्ट शैली में फिल्में बनाने के लिए उस तरह की पृष्ठभूमि के साथ नहीं आएंगे। यह बजट के बारे में बिल्कुल नहीं है। अगर आप राज कपूर परिवार या सत्यजीत रे परिवार से आते हैं, तो आप इस तरह की फिल्में ही बना रहे हैं। आर्यभट्ट पर कोई फिल्म नहीं बनाना चाहता था। इसके बजाय, उन्होंने मुगल-ए-आज़म बनाया, और इसमें कुछ भी गलत नहीं है। कहानीकारों का भारत में वैज्ञानिक झुकाव नहीं है, जिसने एक बड़ा अंतराल पैदा किया है। जब मैं फिल्मों में आया तो बहुत से लोगों ने मुझसे पूछा कि अगर मैं इंजीनियर हूँ तो मैं अभिनेता क्यों बन रहा हूँ? रॉकेट्री: नांबी इफेक्ट अभी शुरुआत है।”
माधवन ने नम्बी नारायण पर फिल्म बनाना क्यों चुना? इस पर बात करते हुए बताया कि नम्बी नारायण का अंतरिक्ष में भारत की तरक्की में जो योगदान है, उस बारे में किसी को ज़्यादा नहीं पता। मालूम है तो बस उनसे जुड़ी कंट्रोवर्सी कि उनका तो अफेयर था और उन्होंने दुश्मन देश को भारत की गुप्त बातें लीक कर दीं। जबकि भारत के रॉकेटों के प्रक्षेपण उनके बनाए इंजन की वजह से होते हैं। लिहाजा मैंने उन पर फिल्म बनाना तय किया।
फिल्म की एक और खास बात ये है कि फिल्म में सिर्फ नम्बी नारायण का महिमामंडन नहीं है। बल्कि आर माधवन नम्बी नारायण की खामियों पर भी जोर देते हुए कहते हैं, “दर्शकों को जब तक उनकी खामियों के बारे में नहीं बताता, तब तक उनकी अचीवमेंट भी लोगों को समझ नहीं आती। मैं खुद नहीं समझ पाया कि बॉलीवुड में करोड़ों की मेगाबजट फिल्में मुगलों और बाकियों पर बनती रही हैं, मगर विज्ञान और वैज्ञानिकों के विषय पर हमारा बॉलीवुड दूर रहा है। हॉलीवुड वाले साइंस पर बेस्ड ‘इंटरस्टेलर’ वगैरह बनाते हैं तो लोग खुश हो जाते हैं।”
वहीं फिल्म में नम्बी नारायण के हस्तक्षेप के सवाल पर माधवन कहते हैं कि एक तो नंबी नारायण खुद सेट्स पर नहीं रहते थे। अगर रहते भी तो सिर्फ इसलिए कि साइंस वाला पार्ट सही से शूट हो। माधवन ने फिल्म में नम्बी नारायण के द्वारा किसी भी तरह के अनावश्यक हस्तक्षेप से इनकार किया है।