Sunday, November 17, 2024
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किसने देखी ‘जवान’, मुझे तो बूढ़े स्टारडम को सहारा देती नयनतारा दिखी: शाहरुख खान के फिल्म की कमाई को भूलिए, असली रिव्यू इधर पढ़िए

फिल्म की कहानी का न सिर है न कोई पैर, कि कहीं ये टिक भी जाए। यकीन मानिए, ये फिल्म इस बॉलीवुडिया कमाऊ फैक्ट्री की बर्बादी में एक कील ही साबित होने वाली है, भले ही आखिरी न हो।

जिस ‘जवान’ के 500 करोड़ कमा लेने के दावे किए जा रहे हैं, उस फिल्म को 23 सितंबर 2023 को मैंने भी देख ली। क्या वाहियात प्लॉट है और क्या ही कहानी। दिल्ली-बंबई में मॉनेस्ट्री बना दिए हैं और विलेन के नाम पर जबरन सेतुपति ठूँस दिए गए हैं। इस पूरी फिल्म में इकलौता चमकता चेहरा नयनतारा का है, जिसका इस्तेमाल शाहरुख के बूढ़े स्टारडम को बचाने में किया गया है। ये सब कुछ पढ़कर लग रहा होगा कि यार, इतनी सुपरहिट फिल्म, जो 500 करोड़ रुपए से ज्यादा का ग्रॉस कनेक्शन कर चुकी हो, उसके बारे में ऐसी बातें?

ऐसे लोगों से मेरा सवाल है कि यदि आपने जवान देख ली है तो आपको क्या समझ आई? फिल्म में पबजी स्टाइल के एक्शन सीक्वेंस और हद घटिया स्तर की नौटंकी के अलावे क्या है? न कहानी का सिर है न कोई पैर, कि कहीं ये टिक भी जाए। यकीन मानिए, ये फिल्म इस बॉलीवुडिया कमाऊ फैक्ट्री की बर्बादी में एक कील ही साबित होने वाली है, भले ही आखिरी न हो। वैसे, इस दुनिया में बुरा कुछ भी नहीं होता, न भावनाओं का दोहन, न पॉलिटिकल स्टंट, न ब्रीड की मिक्सिंग, न घटिया सा गेटअप। कैसे क्या लिखूँ इस फिल्म के बारे में, जिसमें ट्रेन में सैकड़ों लोगों को पट्टी लपेट दिया वो भी गंदा सा। कहाँ से आई इतनी गंदगी?

इस फिल्म के प्लॉट के बारे में चर्चा करें, तो फिल्म में तीन मेन प्लॉट दिखाए गए हैं, जिन पर डायलॉगबाजी हुई है। पहला- किसानों के खाते में सीधे पैसे पहुँचाने वाला। इसमें लोन वाला एंगल घुसाया गया है। दूसरा प्लॉट है- सान्या मल्होत्रा वाला प्लॉट- इसमें गोरखपुर के डॉ. कफील वाला लाइनअप उड़ाकर जोड़ दिया गया है, वो भी बेहद घटिया तरीके से। तीसरा है बैकग्राउंड स्टोरी- बाप की। फिल्म का नाम जवान रख दिया और पूरी फिल्म में दिखा दी पबजी स्टाइल ऐसी फिल्म, जिसके किसी भी कैरेक्टर को विस्तार नहीं दिया गया।

सोचिए, एक रॉबिनहुड टाइप का आदमी है। हाइटेक विलेन हैं। अरबों रुपए का ट्रांसफर वो भी किसानों के खाते में सीधे और सुरक्षा के ऐसे इंतजाम कि तुरंत एनएसजी जैसी चीजें आ जाती हैं, लेकिन ‘बड़का जेलर’ सबके मुँह पर पट्टी बाँध कर निकल जाता है। इस फिल्म का प्लॉट चुराया गया है एक तेलुगू मूवी से। रेफरेंस देंगे, तो तुरंत आप लोग सर्च में लग जाएँगे। खैर, तेलुगु में एक एक्टर हैं। एनटीआर जूनियर के चचेरे भाई हैं। नाम है- कल्याण राम। डकैती, जनता के हित वाली जैसी फिल्में देखनी हो, असल जैसे कहानी के प्लॉट का फील लेना हो, तो कल्याण राम की पिछले कुछ सालों में आई उसकी डबिंग फिल्में देख डालिए, लाख गुना अच्छी फिल्में हैं।

इस फिल्म में विक्रम राठौड़ का नाम क्यों इस्तेमाल किया गया, ये भी समझ से परे है। दीपिका की प्रेग्नेंसी दिखा दी। जेल में माँ वाला एंगल डालने के लिए फाँसी भी दिलवा दी। वैसे, लॉजिक देखो- जेल में बच्चे का जन्म, फिर अचानक 5 साल का मामला बीत जाता है। फिर फाँसी दे दी जाती है। इत्तेफाक ये कि आजाद भारत में किसी महिला को फाँसी दिला दे रहे हैं शाहरुख खान और उसके बाद जेल में तैनात एक महिला कॉन्स्टेबल आजाद को पालकर उसी जेल का जेलर बना देती है।

चलो, अब तकनीकी तौर पर बता देते हैं कि फिल्म क्यों नहीं देखने लायक है

जवान की कहानी: फिल्म में कहानी जैसा कुछ नहीं है। छोटी-मोटी अखबारी कटिंग को जोड़कर कुछ-नई पुरानी और दूसरी भाषा की फिल्मों का प्लॉट उधार लेकर जवान की कहानी को बुना गया है।

कोई कहाँ से आता है, कहाँ को जाता है? : जवान फिल्म में सभी लोग मिसफिट हैं। कौन कहाँ से आया है, कहाँ जाएगा। सालों खोया रहेगा, फिर अचानक आकर स्टंट करने लगेगा। टिपिकल तमिल एक्शन फिल्म, लेकिन कहानी के नाम पर हिंदी में बड़ा सा जीरो है। इस फिल्म में एक कैरेक्टर जो आपको बेहतर दिखेगा, वो है नयनतारा का निभाया नर्मदा राय का कैरेक्टर। लेकिन कब वो फोर्स वन की अधिकारी हो जाती हैं। कब बच्चा पैदा हो जाता है, वो भी इतना बोल्ड।

सिनेमैटोग्राफी: मैं अभी तक समझ नहीं पा रहा हूँ कि इस फिल्म में मॉनेस्ट्री कैसे आ गई? कैसे वहाँ पूरी की पूरी सेना ही पहुँच जाती है और कैसे सिर्फ एक आदमी पूरी फौज को मार गिराता है और दोबारा उसे खत्म करने के लिए कोई कोशिश ही नहीं की जाती। क्या रे एटली, क्या ही डायरेक्टर बनेगा रे तू? बहुत बार एक्शन सीक्वेंस दोहराव लिए सा दिखते हैं। कब फिल्म समंदर के किनारे से पुरानी कबाड़ वाली गोदाम और कब हाइवे से जेल की गली में पहुँच जाती है, इसका जवाब शायद ही कोई दे पाए।

एक्टिंग: सबसे जरूरी बात एक्टिंग की, इस मोर्चे पर फिल्म नौटंकी से ज्यादा कुछ नहीं लगती। कहीं पूरी फिल्म का प्लॉट हॉलीवुड की तर्ज पर जेल में शिफ्ट हो जाता है, तो कहीं सड़क पर। सान्या मल्होत्रा चुक गई लगती हैं। प्रियमणि की रेंज जैसे ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ के वन-टू-थ्री-फोर जैसे गाने से निकालकर यहाँ अधेड़ उम्र की महिला तक दिखा दिया जाता है। चेहरे पर भाव भी नहीं हैं, एकदम सपाट दिखती हैं। मानों, जबरन उनसे काम कराया गया हो।

विजय सेतुपति ने सिर्फ शाहरुख खान के नाम पर फिल्म की है, तो बाकी चीजें समझ सकते हैं कि उस जैसी रेंज वाले एक्टर की क्या ही ऐसी-तैसी की गई है। दीपिका पादुकोण ने ये फिल्म क्यों किया, उनके हिस्से क्या आया? ये तो वही बता सकती हैं। संजीता भट्टाचार्य एथिकल हैकर हैं, तो ऐजाज खान को बॉडी दिखाने और मर जाने के लिए रखा गया है।

शाहरुख खान के बारे में इसलिए नहीं लिख रहे हैं, क्योंकि बाबू भइया, पैसा उसी आदमी ने लगाया है। एटली को भी उसी आदमी ने रखा है। नयनतारा से लेकर दीपिका और विजय सेतुपति से लेकर सनाया और प्रियमणि तक उसी के लिए आए हैं। वो आदमी खुद कहीं छिला आलू, तो कहीं बहरा और हकला… कहीं पट्टी लपेटी लाश बन गया है, तो कहीं पबजी वाला प्लेयर।

हाँ, शाहरुख खान के सामने नयनतारा जब-जब पड़ी हैं, वो शाहरुख को सहारा भी देती हैं और फिल्म को आगे भी बढ़ाती हैं। ये अलग बात है कि सुनील ग्रोवर वाला फालतू का कैरेक्टर उसे थप्पड़ मारकर पूरी सरकारी मशीनरी का लीडर बन जाता है। बात रही सुनील ग्रोवर की, तो संजय दत्त के साथ उसका भी काम सिर्फ इतना है कि वो शाहरुख का भौकाल टाइट रख सकें, बस।

गीत-संगीत : ये क्या होता है? ये सवाल जवान फिल्म के लिए नहीं है। एक बढ़िया पबजी स्टाइल गेम जैसा तगड़ा बैकग्राउंड स्कोर क्रिएट कर लो, उसमें सबको नचाते रहो। कुछ ऐसा ही है। मुझे एक भी गाना याद नहीं है और न ही सिचुएशन ऐसी बन पाई कि कुछ याद रखा जाए।

कुल मिलाकर जवान एक ऐसी अच्छी फिल्म है, लेकिन इसमें खामियाँ ही खामियाँ हैं। इस फिल्म से शायद आखिरी साँसें गिन रहे शाहरुख के करियर को एक-दो और फिल्मों का सहारा मिल जाए।

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श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
Shravan Kumar Shukla (ePatrakaar) is a multimedia journalist with a strong affinity for digital media. With active involvement in journalism since 2010, Shravan Kumar Shukla has worked across various mediums including agencies, news channels, and print publications. Additionally, he also possesses knowledge of social media, which further enhances his ability to navigate the digital landscape. Ground reporting holds a special place in his heart, making it a preferred mode of work.

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