अयोध्या के नवनिर्मित राम मंदिर में भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 11 दिनों का अपना व्रत तोड़ा। उनका व्रत स्वामी गोविन्द गिरी ने तुड़वाया। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविन्द गिरी ने अपने संबोधन में बताया कि प्रधानमंत्री ने कैसे भगवान की प्राण प्रतिष्ठा के लिए कैसे कठिन व्रत रखा था।
स्वामी गोविन्द गिरी ने कहा कि उस समय उन्हें आश्चर्य हुआ, जब प्राण प्रतिष्ठा के लिए जरूरी नियम एवं व्रत के बारे में प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे जानकारी माँगी। उन्होंने कहा कि 20 दिन पहले पीएम ने व्रत के लिए नियमावली माँगी थी। गोविंद गिरी ने कहा, “अपने आप को सिद्ध (व्रत के लिए) करने की भावना कहाँ होती है। यह भावना यहाँ (मोदी जी में) होती है।”
Govind Dev Giri Ji Maharaj praises 11-day long "Anusthan" observed by PM Modi for Ram Mandir Pran Pratishtha pic.twitter.com/o4ZVJXI3DS
— MANOJ SHARMA/ मनोज शर्मा (@manojpehul) January 22, 2024
उन्होंने कहा कि कर्म, वाणी और मन से प्रधानमंत्री मोदी ने अपने आप को सिद्ध करने के लिए कठिन तप किया। तप से ही विशेष परिशुद्धि होती है। गोविंद गिरी ने कहा, “हम लोगों ने महापुरुषों से परामर्श करके प्रधानमंत्री से कहा था कि आपको मात्र 3 दिन का उपवास करना होगा, लेकिन उन्होंने 11 दिन का उपवास किया। हमने 11 दिन एकभुक्त (अनुष्ठान से पहले अन्न खाने का विधान) कहने के लिए कहा था, उन्होंने अन्न का ही त्याग कर दिया।”
प्रधानमंत्री के कठिन व्रत के विषय में बताते हुए कहा कि उन्हें 3 दिन जमीन पर सोने की बात कही गई थी लेकिन वह इस कड़कड़ाती ठण्ड में 11 दिनों तक जमीन पर सोते रहे। वह इस दौरान भावुक भी हो गए। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री के तप से तप की कमी हो गई। प्रधानमंत्री की तुलना गोविन्द गिरी ने छत्रपति शिवाजी महाराज से की और एक किस्सा भी सुनाया।
उन्होंने यह बताया कि प्रधानमंत्री ने इस दौरान सांसारिक दोषों से बचने के लिए विदेश यात्राएँ टाल दी थीं। स्वामी गोविन्द गिरी ने कहा कि देश को ऐसा तपस्वी राष्ट्रीय नेता मिले, यह सामान्य बात नहीं है। स्वामी गोविन्द गिरी ने बताया कि वह प्रधानमंत्री मोदी की माता से मिले थे। इससे उन्हें मालूम हुआ था कि वह 40 वर्षों से ऐसा ही तप कर रहे हैं।
गोविंद गिरी ने प्रधानमंत्री की दक्षिण के मंदिरों के यात्राओं के विषय में भी बताया। उन्होंने कहा कि भारत के हर कोने में जाकर वह अयोध्या आने का निमंत्रण दे रहे थे, ताकि ये दिव्य आत्माएँ आकर भारत को महान बनाने के लिए आशीर्वाद दें।
कौन हैं स्वामी गोविन्द गिरी?
स्वामी गोविन्द गिरी एक मराठी परिवार से आते हैं। संन्यास से पहले उनका नाम आचार्य किशोरजी मदनगोपाल व्यास था। उनका जन्म 1949 में महाराष्ट्र के बेलापुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह वेद, उपनिषद पढ़े हुए हैं और उन्हें दर्शनाचार्य की उपाधि मिली है। ये उपाधि वाराणसी में मिली है। इसके अतिरिक्त वे रामायण, महाभारत और शिव पुराण जैसे पुराणों के ज्ञाता हैं। उन्होंने साल 2006 में कांची कामकोटि पीठ के स्वामी जयेंद्र सरस्वती से दीक्षा लेकर संन्यास लिया था।