मकर संक्रान्ति का त्योहार आज पूरा देश बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मना रहा है। इस त्योहार को मनाने के पीछे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक पक्ष तो शामिल हैं ही, इनके अलावा वैज्ञानिक पक्ष भी शामिल है।
शास्त्रीय मत के अनुसार, प्रकाश में अपना शरीर छोड़ने वाले व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता जबकि अँधकार में मृत्यु को प्राप्त करने वाले का पुनर्जन्म होता है। यहाँ प्रकाश और अंधकार का मतलब सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थिति से है। सूर्य के उत्तरायण के इस वैज्ञानिक महत्व के कारण ही भीष्म ने अपने प्राण तब तक नहीं छोड़े थे, जब तक मकर संक्रान्ति यानि सूर्य की उत्तरायन स्थिति नहीं आ गई थी। इसके अलावा सूर्य के उत्तरायण की स्थिति के महत्व के बारे में छांदोग्य उपनिषद में भी वर्णन किया गया है।
मकर संक्रान्ति का महत्व हम भारतवासियों के लिए बहुत है और इसके मनाने का तरीका विविध। वैज्ञानिक महत्व को जानने के बाद आइए अब हम आपको बताते हैं कि यह त्योहार देश के अलग-अलग हिस्सों में किस नाम से और कैसे मनाया जाता है।
पंजाब की लोहड़ी
पंजाब में रहने वालों के लिए मकर संक्रान्ति या लोहड़ी सर्दियों के आख़िरी दिन का प्रतीक होता है। इसके अलावा यह फसलों से संबंधित एक त्योहार होता है, जिसे पंजाब के लोग बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। महिलाएँ एक दिन पहले ही ‘सरसों दा साग’, ‘खिचड़ी’ और ‘गन्ने के रस से बनी खीर’ बनाना शुरू कर देती हैं। यही इनके अगले दिन का भोजन होता है।
एक दिन पहले बनने वाली ये सभी खाद्य सामग्री ही त्योहार के पूरे दिन खाते हैं। सुबह गुरुद्वारा में जाने के अलावा, दावत खाने का भरपूर आनंद लिया जाता है और फिर परिवार के साथ समय बिताया जाता है। रात में एक अलाव (आग) का आयोजन होता है, जो वास्तव में पारंपरिक लोहड़ी है। इस अलाव में कुछ पके हुए चावल, तिल के बीज, लड्डू, गुड़, मक्के का लावा (पॉपकॉर्न) के साथ अपनी सर्वश्रेष्ठ फसल अग्नि देव को समर्पित की जाती है और आग के चारों ओर घूमकर खुशहाल और समृद्ध खेती की प्रार्थना की जाती है। इस त्योहार की समाप्ति अपने पसंदीदा भाँगड़ा नाच, ताश खेलने, ‘साग’ और ‘मक्के दी रोटी’ के साथ ‘गुड़’ और ‘घी’ खाने के साथ होती है।
गुजरात की पतंग वाली संक्रान्ति
गुजरात में भी मकर संक्रान्ति का काफी महत्व है। सूर्य की उत्तरायण स्थिति गुजरात के लोगों के लिए और पूरे राज्य के गुजराती परिवारों के एक साथ मिल जाने जैसा होता है। इस ख़ास दिन की तैयारी लोग एक महीने पहले से ही शुरू कर देते हैं। दरअसल यहाँ के लोग यह योजना बनाते हैं कि वे अपने दिन को विशेष कैसे बनाएंगे क्योंकि यह पूरे सप्ताह मनाया जाता है।
हर साल गुजरात में इस ख़ास दिन पर अलग-अलग छटा बिखरी देखी जा सकती है। यहाँ आपको विभिन्न प्रकार की पतंगें, भोजन और अद्भुत सामान देखने को मिलेंगे। पतंग उड़ाने के लिए लोग दुकानदार के पास खड़े होते हैं, जब वे उनके लिए धागा (मांझा) बुन रहे होते हैं। भोजन का मेन्यू हमेशा पहले से तय कर लिया जाता है। त्योहार के लिए ‘जलेबी के साथ तिल गुड़ चिक्की, उधिंयू पुरी (Undhiyu Puri) और फ़रसाण (Farsaan)’ यहाँ के लोगों की पसंदीदा खाद्य सामग्री होती है। युवा वर्ग महीने की शुरुआत से ही पतंग उड़ाना शुरू कर देते हैं। महिलाएँ विभिन्न भोजन-पकवान बनाना शुरू कर देती हैं।
रात में, परिवार और दोस्त अलाव के लिए इकट्ठे होते हैं। म्यूजिक स्पीकर्स या डीजे की व्यवस्था छत पर की जाती है और विभिन्न प्रकार के खेल खेले जाते हैं। चायनीज़ लालटेन (उच्च न्यायालय द्वारा प्रतिबंधित किए जाने से पहले) को आकाश में उड़ाया जाता था, जिसके बाद आसमान का नज़ारा देखते ही बनता था।
बिहार का तिलकुट
बिहार में मकर संक्रान्ति का त्योहार काफ़ी मायने रखता है। इसमें दान आदि किए जाने का भी विशेष महत्व होता है। मकर संक्रान्ति के दिन, सभी सुबह जल्दी उठकर स्नान (नहाए बिना बिहार में कुछ भी खाने की परम्परा नहीं इस दिन) करते हैं। फिर मंदिर के पंडितों को और कुछ ज़रूरतमंदों को भोजन व अन्य चीजें दान की जाती हैं। उसके बाद, दिन की ‘पूजा’ में शामिल होने की परंपरा है।
‘तिलकुट’ (तिल के साथ चीनी या गुड़ से बना) खाने के साथ दिन की शुरुआत की जाती है। दिन का मुख्य भोजन दही, दूध और गुड़ के साथ ‘चूड़ा’ (चिड़वा – जिससे पोहा बनता है) ही होता है। इसके साथ पारंपरिक सब्ज़ियों के साथ आलू, गाजर, मटर और फूलगोभी वाली तरकारी खाई जाती है। मुख्य रूप से केवल यही एक खाद्य सामग्री होती है, जिसे दिन भर खाया जाता है। दिन के समय घर में और कोई खाना नहीं बनता। यहाँ ‘पतंग उड़ाना’ इस त्योहार का सबसे मनोरंजक पहलू है। पूरा आसमान ढेरों रंग-बिरंगी पतंगों से सज जाता है। शाम तक, घर की महिलाएँ खिचड़ी तैयार करना शुरू कर देती हैं, जिसे चोखे (मैश किए हुए आलू), टमाटर की चटनी, बैंगन का भर्ता और पापड़ के साथ रात के खाने में परोसा जाता है।
ओडिशा-झारखण्ड-बंगाल में टुसू
मकर संक्रान्ति को टुसू पर्व के रूप में भी मनाए जाने की परंपरा है। टुसू पर्व ओडिशा, झारखंड और पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों में मनाया जाने वाला फसलों से संबंधित एक उत्सव है। लोग देवी टुसू की मूर्तियाँ बनाते हैं और उनकी पूजा करते हैं। एक महीने तक चलने वाला यह मेला मकर संक्रान्ति के दिन टुसू देवी की मूर्तियों के विसर्जन के साथ समाप्त हो जाता है। महिलाएँ चमकीले रंग के कपड़े पहनती हैं और कलाकृतियों और कपड़ों से सजे बाँस के फ्रेम को उठाकर देवी से प्रार्थना करती हैं और टूसू गीत गाते हुए नदी तक जाती हैं।
यह फसल से संबंधित एक उत्सव है, इसलिए युवा लड़कियाँ अपनी प्रजनन क्षमता और अच्छे पति की भी प्रार्थना करती हैं। पूरा नदी तट एक ऐसी जगह में बदल जाता है, जहाँ लड़के अपने समुदाय की समृद्धियों की कामना करते हैं, उसे और विकसित करने की प्रार्थना करते हैं।
पश्चिम बंगाल में इस दिन परंपरागत रूप से लोग स्नान करते थे और सूर्य देव की प्रार्थना के लिए गंगा तट पर जाते थे, लेकिन अब यह प्रक्रिया अपने घरों में ही की जाती है। धार्मिक समारोहों के बाद, लोग ‘दही और चूरा’ (चिड़वा, जिससे पोहा बनता है) के साथ ‘पेठा’ (चावल, नारियल और दूध से बने) खाते हैं। इस दिन घर आए लोगों का स्वागत पेठा खिलाकर किया जाता है।
पश्चिम बंगाल के बोलपुर में शांतिनिकेतन रोड में, पौष मेला (मेला) आयोजित किया जाता है, जिसमें बहुत सारे लोग आते हैं। बड़ी संख्या में लोग हर साल इस मेले में शिरक़त करते हैं, जिसे रंग-बिरंगे तरीक़े से सजाया जाता है। यहाँ हस्तनिर्मित उत्पादों जिनमें खाद्य, बैग, आभूषणों की काफ़ी क़िस्में देखने को मिलती है। यह सभी वस्तुएँ ज़्यादातर स्थानीय कारीगरों और निवासियों द्वारा बनाई जाती हैं।
तमिलनाडु में पोंगल
तमिलनाडु में पोंगल नाम से विख्यात त्योहार असल में मकर संक्रान्ति का ही रूप है। पोंगल तमिलनाडु के लोगों के लिए चार दिन तक मनाया जाने वाला त्योहार है। चार दिन तक मनाए जाने वाले इस त्योहार को वो एक उत्सव की तरह मनाते हैं। पहला दिन, ‘भोगी पोंगल’ मनाए जाने का होता है, जिसमें पुराना सामान जलाने की परंपरा है। दूसरे दिन, पोंगल का वास्तविक त्योहार ‘सककारई पोंगल’ होता है, जिसे घर पर ही मनाया जाता है।
इस दूसरे दिन मीठे ‘पोंगल’ को सात या नौ सब्ज़ियों से बनी कढ़ी के साथ परोसा जाता है। तमिलवासी इस दिन सूर्य देव को धन्यवाद देते हैं और उन्हें ये खाद्य सामग्री प्रसाद स्वरूप भेंट करते हैं।
तीसरे दिन ‘मट्टू (गाय) पोंगल’ का होता है। चूंकि इस त्योहार का संबंध फसलों से होता है, तो किसानों को जिन उपयोगी उपकरणों की मदद से अच्छी फसल प्राप्त होती है, उनका भी विशेष महत्व होता है। अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए गायों के योगदान को भी नहीं भूला जा सकता। इसलिए इस दिन गायों के सींग को रंगा जाता है। मुख्य द्वार पर सजे हुए तोरण लगाए जाते हैं। गाड़ियों के पहिए सजाए जाते हैं और गाँव में जल्लीकट्टू व अन्य खेल आयोजित किए जाते हैं।
फिर चौथे दिन, ‘कन्नम (देखते हुए) पोंगल’ का होता है। परंपरागत रूप से इस दिन लोग अपने परिवार के साथ पर्यटन स्थलों का भ्रमण करते हैं।