Monday, November 18, 2024
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राजा-रानी की शादी हुई, दहेज में दे दिया बॉम्बे: मात्र 10 पाउंड प्रति वर्ष था किराया, पुर्तगाल-इंग्लैंड ने कुछ यूँ किया था खेल

चार्ल्स II जैसे बड़े राजा बॉम्बे से शासन तो करते नहीं, जो उनके लिए उतनी महत्वपूर्ण जगह नहीं थी। क्या आपको पता है कि बॉम्बे को कितनी रकम में रेंट पर दिया गया था? 'ईस्ट इंडिया कंपनी' बॉम्बे के रेंट के रूप में मात्र 10 पाउंड (अभी 10 पाउंड 1037 भारतीय रुपया के बराबर है) प्रतिवर्ष देती थी।

क्या आपने ‘ब्रागांज़ा की कैथरीन’ का नाम सुना है। उनका जन्म नवंबर 1638 में हुआ था। वो पुर्तगाल की राजकुमारी थीं। उनकी शादी इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय के साथ हुई थी। इस तरह वो अप्रैल 1662 से लेकर फरवरी 1685 में अपने पति की मृत्यु तक इंग्लैंड (स्कॉटलैंड और आयरलैंड भी) की महारानी के पद पर थीं। लेकिन, क्या आपको पता है कि उनकी शादी में ही जून 1661 में पुर्तगाल द्वारा बॉम्बे को दहेज के रूप में इंग्लैंड को दे दिया गया था?

16वीं और 17वीं शताब्दी के स्पेन को ‘हैब्सबर्ग स्पेन’ भी कहते हैं। ‘ब्रागांज़ा की कैथरीन’ के पिता और पुर्तगाल के राजा जॉन IV (ब्रगांजा के 8वें ड्यूक) के काल में ही पुर्तगाल ने ‘हैब्सबर्ग स्पेन’ से आज़ादी मिली। उन्होंने ‘हाउस ऑफ ब्रगांजा’ की स्थापना की 60 साल पुराने उस ‘लिबरल यूनियन’ को ख़त्म किया जिससे स्पेन वहाँ राज कर रहा था, जिससे उन्हें ‘जॉन द रीस्टोरर’ भी कहा गया। कैथरीन इंग्लैंड में लोकप्रिय नहीं थीं, लेकिन उन्होंने ही वहाँ चाय पीने की परंपरा शुरू की थी।

कैथरीन एक रोमन कैथोलिक ईसाई थीं, इसीलिए इग्लैंड में वो लोकप्रिय नहीं थीं। उनके काल में एडमंड बेरी गॉडफ्रे नामक एक जज की हत्या हुई थी, जिसका आरोप रानी पर लगा। इसके बाद पूरे इंग्लैंड में कैथोलिक विरोधी आंदोलन शुरू हो गया। उन पर राजा को ज़हर देने की साजिश के आरोप लगे। अंततः हाउस ऑफ कॉमन्स ने प्रस्ताव पारित कर सभी रोमन कैथोलिकों को ‘पैलेस ऑफ व्हाइटहॉल’ (मिडलसेक्स के वेस्टमिंस्टरमें स्थित महल, जो 1530-1698 में इंग्लैंड के राजपरिवार का निवास स्थान से) से निकाल बाहर करने का आदेश दे दिया।

वहीं दूसरी तरफ कैथरीन से 8 साल पहले मई 1930 में जन्मे चार्ल्स II की बात करें तो इंग्लैंड के चार्ल्स I के ज़िंदा बचे संतानों में सबसे बड़े थे। उस समय इंग्लैंड में सिविल वॉर का दौर था और उनके पिता की हत्या कर दी गई थी। उन्हें राजा तो बनाया गया, लेकिन सेनापति ओलिवर क्रॉमवेल तानाशाह बन बैठा और उन्हें फ़्रांस भागना पड़ा। 9 सालों तक वहाँ रहने के बाद क्रॉमवेल की मृत्यु के बाद वो लौटे और इंग्लैंड में फिर से राजशाही आई।

तो ये था इन दोनों का परिचय, जिनकी शादी में पुर्तगाल ने दहेज के रूप में बॉम्बे (आज की मुंबई) को ही दे दिया। भले ही ‘ब्रागांज़ा की कैथरीन’ का इससे कोई खास लेनादेना नहीं था, लेकिन उनकी शादी का असर भारत में अंग्रेजों और पुर्तगालियों के राज़ पर पड़ा। जब ये सब बदलाव हो रहा था, तब औरंगज़ेब दिल्ली की गद्दी पर बैठा, जिसका एक ही लक्ष्य था – साम्राज्य विस्तार। रानी की शादी से 4 साल पहले ही उसने सत्ता संभाली थी और अगले 45 वर्षों तक उसे गद्दी पर रहना था।

भारत में अंग्रेज तब कंपनी के रूप में थे और प्लासी के युद्ध में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराने में अभी भी 100 साल थे, लेकिन उन्होंने जहाँगीर से आंध्र प्रदेश के मछलीपत्तनम और गुजरात के सूरत में फैक्ट्री स्थापना करने का आदेश 17वीं सदी का दूसरा दशक शुरू होते ही ले लिया था। वहीं पुर्तगाल तो भारत में पहले से ही सक्रिय था और 16वीं शताब्दी की शुरुआत में ही उसने गोवा, दमन-दीव और बॉम्बे को अपने कब्जे में रखा हुआ था।

तो, ‘ब्रागांज़ा की कैथरीन’ और चार्ल्स II की शादी में पुर्तगाल ने ‘बॉम्बे के सात द्वीपों’ को दहेज में इंग्लैंड को दे दिया। इस शादी के प्रस्ताव को तैयार करने में कई महीने लगे थे। चार्ल्स ने बॉम्बे को ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ को रेंट पर दे दिया, जिन्होंने वहाँ अपनी प्रेसिडेंसी स्थापित की। आज मुंबई 2 करोड़ से भी अधिक जनसंख्या के साथ दुनिया का 7वाँ सबसे बड़ा महानगर है और भारत की आर्थिक राजधानी भी कही जाती है।

अब चार्ल्स II जैसे बड़े राजा बॉम्बे से शासन तो करते नहीं, जो उनके लिए उतनी महत्वपूर्ण जगह नहीं थी। क्या आपको पता है कि बॉम्बे को कितनी रकम में रेंट पर किया गया था? ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ बॉम्बे के रेंट के रूप में मात्र 10 पाउंड (अभी 10 पाउंड 1037 भारतीय रुपया के बराबर है) प्रतिवर्ष देती थी। इसे आज की पूरी दक्षिणी मुंबई का रेंट समझ लीजिए। गेराल्ड एंजीयर ने गर्वनर के रूप में मुंबई में वेयरहाउसेज बनवाए और यहाँ पहला ब्रिटिश मिंट स्थापित किया।

इसके अलावा इंग्लैंड को दहेज में उत्तरी अफ्रीका में स्थित टैनजियर, ब्राजील और हिंद महासागर में व्यापार की छूट, पुर्तगाल में धार्मिक/व्यापारिक स्वतंत्रता और 20 लाख पुर्तगाली क्राउन्स (2.66 करोड़ भारतीय रुपए में) मिले। बदले में इंग्लैंड ने भी अपनी सेना और नौसेना के माध्यम से पुर्तगाल की मदद का आश्वासन दिया। पुर्तगाल को स्पेन के खिलाफ लड़ाई में इसका फायदा भी मिला। इसीलिए, उस समय स्पेन इस समझौते का विरोध कर रहा था।

इधर मुंबई का कद बढ़ता जा रहा था और सायन में 1669 में किला बनवाया। 1666 की आग में लंदन तक राख हो चुका था, ऐसे में उसे पुनर्निर्मित करने के लिए जो योजना तैयार की गई, उसका खाका गेराल्ड को भी मिला। इंग्लैंड में सही मायने में अपने ‘दहेज’ का विकास करने में लगभग एक दशक लगे, लेकिन मात्र 8 वर्षों में भी बॉम्बे की जनसंख्या में 65,000 का इजाफा आ चुका था। हालाँकि, आज जिसे सबअर्बन मुंबई कहते हैं, वो 1740 में मराठों के हाथ जाने तक पुर्तगाल के कब्जे में ही रहा।

एक और अजीब बात आपको ये लग सकती है कि लिस्बन और लंदन में बैठे लोगों ने समझौते पर हस्ताक्षर तो कर किए, लेकिन उनमें से शायद ही किसी ने मुंबई को देखा तक हो। स्थानीय पुर्तगाली अधिकारियों ने पूरी कोशिश की कि बॉम्बे इंग्लैंड के हाथ में न जाए। चार्ल्स ने मामले को सुलझाने के लिए ‘Earl Of Marlborough (मालबर)’ को 400 सैनिकों के साथ भेजा, लेकिन वो सभी गोवा में अन्गेदिवा के द्वीपों पर घिर गए।

इस दौरान दोनों तरफ से मोल-जोख का दौर चालू रहा। कई अंग्रेजी सैनिक तो मलेरिया और अन्य बीमारियों के कारण मर गए। उनमें से शायद 100 ही बचे रहे होंगे, जो किसी तरह बॉम्बे तक पहुँचने में कामयाब रहे। लेकिन, पुर्तगाल ने कोरोबा, धारावी, माहिम और सायन जैसे द्वीपों को देने से मना कर दिया। फिर अंग्रेजी राजपरिवार ने बॉम्बे प्रेसिडेंसी के पहले गवर्नर हम्फ्रे कूक को मामले को सुलझाने के लिए कहा।

उन्होंने इंग्लैंड को ‘बॉम्बे के 7 द्वीपों’ के अधिकार का ट्रांसफर कराया। पूरी प्रक्रिया समाप्त होते-गोते सन् 1665 तक का समय लग गया। हालाँकि, इस दौरान पुर्तगाल की एक सेना बॉम्बे में ही रही, सन् 1827 तक। उनमें अधिकतर बॉम्बे के स्थानीय निवासी ही थे और उन्हें वेतन भी नहीं मिलता था। इस ‘बॉम्बे-पुर्तगाल सेना’ का गठन 1672 में हुआ था। इस तरह आज जिस मुंबई को हम देखते हैं, वो इस तरह के कई दौर से गुजरी है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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