आज रात लोग पार्टी करते हैं। कैसी पार्टी? पतंगों के कन्ने बाँधने के लिए इकट्ठा होने की पार्टी। नॉर्थ इंडिया वाले सर पकड़ लेंगे। पतंगों के कन्ने बाँधने के लिए भी इकट्ठा होना पड़ता है, पार्टी करनी होती है? हाँ जी, गुजरात में तो होती है।
अलग-अलग रहते कुटुम्बों में कल 14 जनवरी को एक साथ इकट्ठे होकर किसी एक के घर ऊँची छत पर इकट्ठे पतंग उड़ाने की परंपरा है। अकेले-अकेले मज़ा भी कहाँ और कितना आ सकता है। त्यौहार तो मिल-जुलकर ही मनाए जाते हैं। इसलिए, कल पतंगे उड़ेंगी, आज रात कन्ने बँधेंगे। एक जगह बैठकर गपशप की जाएँगी, डब्बा पार्टीज़ होंगी, देर रात वाली चाय बनेगी, भजिया तले जाएँगे और इस सब से वक्त मिला तो कन्ने भी बँधेंगे और ‘अरे जल्दी सो जाते हैं, सुबह छत पर भी तो चढ़ना है’ कहते-कहते देर रात तक जागेंगे।
सुबह खाना बाहर से आएगा या फिर उजाणी (सामूहिक भोज) की व्यवस्था की जाएगी और पूरा गुजरात अपने-अपने घर, मुहल्ले, सोसायटी, ग्रुप, परिवार की एक डिसाइडेड थीम के कपड़े पहनकर घर के बच्चों से लेकर दादा-दादी समेत सब छत पर होंगे। पतंगें एक तरफ सुरक्षित रखी होंगी। पानी से भरे बड़े जग एक तरफ होंगे । खाने-पीने के चिप्स, नाश्ते वगैरह अलग तरफ रखे होंगे। वडीलों की कुर्सियाँ लगी होंगी। पुरूष पतंगे जमाएँगे और महिलाएँ हुचका पकड़ेंगी। सर पर हैट या टोपी और काला चश्मा आज के लिए अत्यावश्यक है।
एक गुजराती दुनिया मे कहीं भी रहे, लेकिन 14 जनवरी को उसका दिल हमेशा छत पर रहता है। मैं बता नहीं सकती, मतलब बता तो रही ही हूँ, पर पूरी तरह समझा नहीं सकती कि मैंने जब ये फेस्टिवल पहली बार देखा था तो मुझे कैसा लगा। हमारे यहाँ एक तो पतंग उड़ाना आवारागर्दी माना जाता था और ऊपर से लड़कियों के पतंग उड़ाने की तो कभी कल्पना ही नहीं की।
गुजरात में पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका, भाई-बहन, सब मिलकर पतंग उड़ाते हैं। शादी से पहले सगाई किए हुए कपल्स एक साथ पतंग उड़ाते हैं। नियम यही है कि हुचका लड़कियाँ पकड़ेंगी लेकिन बहुत सारी लड़कियाँ खुद भी पतंग उड़ाने में गजब की माहिर होती हैं।
किसी पतंग के कटते ही पूरा इलाक़ा ‘काय पो छे’ की आवाज़ से गूँज उठता है। म्यूज़िक बजता है, लोग ब्रेक में मौज करते हुए गरबा करने लगते हैं। बच्चे छोटी-छोटी पतंगों से खेलते हैं। दादियाँ दादा जी को अपने समय की पतंगबाजी याद दिलाती हैं और दादा ताव में आकर खड़े हो जाते हैं दादी को ये दिखाने कि मैं अभी बूढ़ा नहीं हुआ हूँ। अब भी ये लड़के मेरी पतंग के आगे नहीं टिक सकते और पतंग कटते ही, “सालो चाइनीज़ माँझो वापरे छे” कहकर वापस आकर बैठ जाते हैं। वाकई में गुजराती होना नशे जैसा है। आप जितना ज़्यादा गुजराती संस्कृति के मूल में उतरेंगे, उतना तर रहेंगे।
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